ज्ञान माना अन्दर डीप जाना

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जो न्यारा बनने की प्रैक्टिस नहीं करते उनको माया छोड़ती नहीं। माया उसका पीछा करती है, देखती है यह भगवान का तो बने हैं पर मेरे बिगर रह नहीं सकते। मेरे पास घर है, धन है, पदार्थ है, माया दिखाती है सब। बाबा कहता है मैं दिखाता नहीं हूँ, मेरे पास जो है, इन आँखों से देख नहीं सकते हो और बॉडी कान्सेस से समझ नहीं सकते हो। मेरे पास है तेरे को देने के लिए, उसके लिए सोल कॉन्शियस रहो तो सोल को पता चले। जब तक थोड़ा बॉडी कॉन्शियस है तो बुद्धि ऊपर नहीं जाती है, इधर-उधर जाती है। जब सोल कॉन्शियस है तो ऊपर जाती है। बाबा ऊपर से इतना देता है, जो उसकी भेंट में सब किचड़ा है। बाबा स्वच्छ बना देता है। अन्दर से इतनी स्वच्छता, मैं शुद्ध आत्मा हूँ फिर शान्त, मैं बाप की हूँ तो प्यार पैदा हो जाता है। किसी ने कहा मुझे प्यार का अनुभव नहीं होता है। अरे तुम प्यार करके देख। वो प्यार कर रहा है, यहाँ-वहाँ से निकालके प्यार करने के लिए आया है। परन्तु झूठा प्यार भी चाहिए, जिस प्यार में दु:ख समाया है वो भी नहीं छोडऩा है। और सच्चा प्यार करने वाला बाबा जो सदा सुख देता है, वो भूल जाता है!
ज्ञान माना अन्दर डीप जाना, मैं क्या सोचती हूँ, क्या बोलती हूँ। अपनी करनी को देख, वाणी को देख, विचार को देख। बाबा का आत्माओं से प्यार है। हर आत्मा से प्यार है। कोई भी आत्मा हाँ-हाँ करती है तो पकड़ लेता है। अचानक भी कोई अच्छा अनुभव कराके पकड़ लेता है। फिर वो जो पुराने अनुभव हैं उनको छोड़। कम से कम चार बातें बुद्धि में रखो। बिचारी बुद्धि को भटकने से छुड़ाओ। मन भी उसके साथ है। संस्कार हैं तो आत्मा में ही। मन भटकता क्यों है! बुद्धि ठीक काम क्यों नहीं करती है! संस्कार पुराने खत्म क्यों नहीं होते हैं? फिर ज्ञान का सिमरण भी नहीं कर सकते हैं। बाबा ने कहा है हे आत्मा तुम मन को शान्त करके बुद्धि से योग लगा, प्रैक्टिकली बुद्धि लगाई तो संस्कार चेंज हो जाते हैं। संस्कारों में पुराने विकारी कर्म सम्बन्ध भर गये थे, जो अभी समझ में आया है, वह चेंज हो रहा है।
बुद्धि ठीक काम करती है तो दिमाग ठण्डा रहता है। जब मन शान्त होता है, दिल में बड़ी खुशी आती है। पहले मेरा दिल-दिमाग कैसा था, अभी कैसा है। चेंज आता है सुनते-सुनते। अन्दर इंसान को फीलिंग आती है कर्म के अनुसार। अभी अगर मैं चेंज होती हूँ तो फील होता है। अभी तक अलबेलाई है, फील होता है। यह अन्तिम जन्म है, अन्तिम घडिय़ां हैं, आदि में बाबा के थे, होंगे यह सब स्मृति में है। जिसका स्व पर ही राज्य नहीं है वो स्वदर्शन चक्रधारी नहीं हो सकता। या तो चक्कर में है या किसके साथ टक्कर में है वो स्वदर्शन चक्र क्या घुमायेगा। अपने को चेक करना है किसके चक्कर या टक्कर में तो नहीं हूँ? परन्तु यह चेक करने की फुर्सत ही नहीं है, बाकी सब काम हो रहा है। चक्कर में हैं तो बाबा की याद है ही नहीं, फिर बहाना कुछ हो। अन्दर की आँख खोलकर बाबा को देख, खुद को न देख, पर बाबा को तो देख। बाबा देख रहा है पर बाबा दिखाई नहीं देता है।

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