नवीन मानवीय सृष्टि की आधारशिला…महाशिवरात्रि

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धरा पर चल रहा परमात्मा शिव द्वारा महापरिवर्तन का कार्य
कहते हैं, एक बीज बिना आवाज़ किये उगता है
लेकिन एक पेड़ भारी शोर के साथ गिरता है।
विनाश में शोर है लेकिन सृजन शांत है।

आज किसी भी क्षेत्र में जाइये, तो शोर ही शोर है। दु:ख, अशांति, घृणा, नफरत, उदासीनता हर जगह व्यापक है। चारों ओर विनाश के दृश्य दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में शिवरात्रि के महा त्योहार को समझना बहुत ही ज़रूरी हो जाता है। रात्रि माना अंधकार और शिव माना प्रकाश, कल्याणकारी, मंगलकारी। इसको समझें तो ये पता चल रहा है कि सृष्टि के कालचक्र में हम 5000 साल की लम्बी यात्रा करके अब हम इसके अंतिम के भी अंतिम पायदान पर खड़े हैं। किसी को समझ में नहीं आता, मनुष्य की सोच से परे की चीज़ अभी घटित हो रही है, अचानक हो रही है, जिसके कारण दु:ख, अशांति अति में है। शास्त्रों में देखें तो कहीं ये वर्णन भी आता कि जब-जब इस दुनिया में पापाचार, अत्याचार सभी सीमायें लांघ चुका होगा तब परमात्मा का दिव्य अवतरण इस धरा दिव्य सृष्टि बनाने के लिए होगा। आप अगर थोड़ा साक्षी भाव से देखें और शांत मन से सोचें तो क्या ऐसा नहीं लग रहा कि वर्तमान समय में नये सृष्टि के सृजन का संधिकाल है! इसी वक्त में परमात्मा शिव शांति से नव विश्व के सृजन का कार्य कर रहे हैं। इस दुनिया के महापरिवर्तन का ये काल चल रहा है। जहाँ विश्व में चारों ओर अज्ञान अंधकार है, हंगामे हैं, त्राहि-त्राहि है, करुण पुकार है, वहीं दूसरी ओर परमात्मा द्वारा अरावली श्रृंखला के सुरम्य वातावरण में शांति के साथ शांति की दुनिया की आधारशिला रखी जा रही है। वैसे कहते भी हैं, चक्र के चार भाग हैं, सतयुग, त्रेता, द्वापर, कलियुग। कलियुग के बाद फिर पुन: सतयुग आयेगा। ऐसे में सतयुग में जाने के लिए हमें हमारे मन, बुद्धि, वृत्ति और कृति को श्रेष्ठ बनाने के लिए परमात्मा इस धरा पर अवतरित होकर हमें परमशिक्षक के रूप में सहज राजयोग की शिक्षा दे रहे हैं। और हमें नई दुनिया में जाने के योग्य बना रहे हैं।
जैसे किसी विशेष क्षेत्र में निपुण होने के लिए उसी विषय की पढ़ाई पढऩी होती है, तभी योग्य बन पाते हैं, उसी तरह सतयुग में जाने के लिए भी वहां की प्रकृति अनुसार हमें लायक बनना होगा। जिसकी ही शिक्षा सतयुग निर्माता, स्वयं परमशिक्षक परमात्मा शिव हमें दे रहे हैं। हमें एक श्रेष्ठ विद्यार्थी बनकर उस शिक्षा को आत्मसात कर सतयुग में जाने के योग्य खुद को बनाना है।
परमात्मा द्वारा सृष्टि के महापरिवर्तन में हम सब आत्माओं की भी विशेष भूमिका है। इस भगीरथ कार्य में हमें भी सहयोग करना है। तभी हमारी मनइच्छित पावन दुनिया इस धरा पर पुन: आयेगी। अब नहीं तो कब नहीं। बस, ये वक्त जा रहा है…

शिवरात्रि आई, अपने साथ ढ़ेरों खुशियां लाई:-
जाने हमने खुशियां प्राप्त करने के लिए जीवन में कितने हथकंडे अपनाएं हैं कि कहीं खुशी की झलक हमारे जीवन में मिल जाए। हम तो दर-दर भटकते रहे, तेरे-मेरे में, वस्तु-वैभव, पदार्थों में खुशी ढूंढने की कोशिश की। लेकिन जितना ही ढूंढा उतने ही दूर होते गए। लेकिन आज इस शिव जयन्ती के अवसर पर आपको खुशियों की विधि बताते हुए हमें अति हर्ष हो रहा है कि स्वयं खुशियों का दाता, वो प्राणेश्वर, परमेश्वर, परमपिता हमारी खाली झोली को खुशियों से भरने की राह दिखा रहे हैं। अब परमात्मा शिव ने स्वयं आकर ये बताया है कि हे मेरे लाडले बच्चों! खुशियां तो आपके पास ही हैं, लेकिन उसको कैसे अर्जित करना है, ये मैं आपको बताता हँू। आओ, इस शिवरात्रि के शुभ अवसर पर अज्ञान अंधकार के बादल को हटाएं और अपने आप से भी प्यार करें, अपनी शक्तियों को पहचानें और मुझ शक्तियों के सागर के साथ नाता जोड़ खुशियों के झूले में झूलें। यही तो सच्चे अर्थ में शिवरात्रि मनाना है।
तो आओ बढ़ायें एक कदम शिव पिता की ओर। तब दिखेगी जीवन में एक स्वर्णिम सुनहरी भोर।।

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