चुनाव आपको करना है

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जैसे ही मन इधर-उधर जाए, उसको वापस लेकर आओ। उसको कहो – तुमको मेरा कहना मानना होगा, मैं तुम्हारा कहना नहीं मानूंगा। मैं मालिक हूँ अपने जीवन का। इस तरह जीवन जीने का तरीका बदल जाएगा।

कुछ प्रश्नोत्तरी से आज की बात शुरू करते हैं। खुद से पूछिए कि मन खुश होता है तो शरीर स्वस्थ होता या शरीर स्वस्थ होता है तो मन खुश होता है? अब दूसरा सवाल – मन खुश होता है तो रिश्तेे प्यारे बन जाते हैं या रिश्ते अच्छे होते हैं तो मन खुश होता है? सारे रिश्ते अगर अच्छे हो जाएं तो हम खुद ब खुद खुश हो जाएंगे। ये सही है या मेरा मन अच्छा होगा तो रिश्ते सारे अपने आप अच्छे हो जाएंगे? प्रश्नोत्तरी का सिलसिला यहीं तक, बस खुद को आशीर्वाद दें कि हमें सबकुछ तो पता है, बस जीवन में जीना भी वैसे है।
ज्ञान का मतलब वह समझ है कि जो मालूम है उसको समझकर जीना है। क्योंकि जब हम इस समझ को भूल जाते हैं तो विपरीत तरीके से जीना शुरू कर देते हैं। तब हम कहते हैं क्या करें आज मेरी तबियत ठीक नहीं है तो मैं दु:खी होऊंगा/होऊंगी ना। मतलब शरीर ठीक नहीं है तो मन खट्टा होगा। अगर मैं दु:खी रहूंगा तो शरीर फिर ठीक हो जाएगा? नहीं। बल्कि उसका दर्द बढ़ जाएगा। फिर हम कहते हैं कि देखो ना वो ठीक से व्यवहार नहीं करते, इसलिए मैं दु:खी हूँ। वो ठीक हो जाएं तो मैं बिल्कुल खुश हो जाऊंगी। और इसका इंतज़ार करते रहेंगे तो दिन ब दिन हमारा दु:ख बढ़ता जाएगा।
राजयोग अर्थात् मन और अपने जीवन का मालिक बनना। हम मन के गुलाम की तरह चल रहे थे। हमने परिस्थितियों और लोगों पर मन को निर्भर किया। हमारा मन कहता था ऐसे हुआ ना इसलिए मुझे बुरा लगा, उसने ऐसा किया ना इसलिए मुझे गुस्सा आया, आज उसका एग्ज़ाम है, इसलिए मुझे चिंता है। मतलब मेरे मन की स्थिति दूसरों के ऊपर निर्भर थी। जिस दिन हम खुश भी थे तो किसी ने आकर पूछा क्या बात है आज आप बहुत खुश हो। तो कहेंगे ऐसे हुआ ना, इसलिए खुश हूँ। मतलब मन का रिमोट कंट्रोल दूसरों के पास था। क्योंकि मन की स्थिति बाहर की परिस्थितियों पर निर्भर थी, तो जाहिर है कि हम बाहरी चीज़ें ठीक होने का इंतज़ार करेंगे।
फिर हमें समझ में आया कि अपनी आत्मा के मालिक तो हम खुद हैं। ये मन मेरा है। आज से हम जीवन के तरीके बदल देंगे। जैसे ही मन इधर-उधर जाए, उसको वापस लेकर आओ। उसको कहो – तुमको मेरा कहना मानना होगा, मैं तुम्हारा कहना नहीं मानूंगा। मैं मालिक हूँ अपने जीवन का। इस तरह जीवन जीने का तरीका बदल जाएगा। इसको कहा जाता है आत्मनिर्भर जीवन। आत्मनिर्भर अर्थात् मैं आत्मा स्वयं पर निर्भर। परिस्थिति है लेकिन मेरे मन की स्थिति मुझ पर निर्भर है।
अब आप विचार कीजिए कि क्या मुश्किल परिस्थिति में शांत रहा जा सकता है? अगर किसी ने गलत व्यवहार किया तो क्या प्यार से बात की जा सकती है? अगर आपसे कोई गलत तरह से व्यवहार करे क्या आप उससे प्यार से बात कर सकते हैं? मान लो किसी ने हज़ारों लोगों के सामने आपकी निंदा की, आपको बहुत बुरा-भला कहा, तो ये किसका कर्म है, जब मैं इतना गलत-गलत करूंगी क्या आप प्यार से बात कर सकते हैं? नहीं कर सकते, कौन रोकेगा आपको? आप खुद रोकेंगे। विकल्प आपका है कि आपको अच्छे से बात करनी है या नहीं करनी है। फिर उसमें भी विकल्प है कि आपको कितने अच्छे से बात करनी है या फिर कितनी बुरी तरह से बात करनी है। फिर उसमें भी विकल्प है कि अगर बुरी तरह से बात की तो कब तक बुरी तरह से बात करनी है। और उसमें भी विकल्प है कि कब तक वो बुरी वाली फीलिंग पकडक़र रखनी है। सारे विकल्प हमारे पास हैं।
पहले हम नहीं कहते थे कि यह मेरा चुनाव है। हम कहते थे उसकी वजह से मुझे बुरा लगा। अब वो भाग खत्म हो गया। अब शक्ति आपके पास आ गई। अब आपका चुनाव है कि आपको प्यार से बात करनी है या कड़वी बात करनी है, बात को खत्म करना है या बात को पकडक़र रखना है। आप किस आधार पर चुनेंगे? आप वह विकल्प चुनेंगे जो आपके फायदे के हैं। अगर आप कड़वी बात करेंगे, जितनी कड़वी मैंने बोली तो इससे आपकी खुशी घटेगी या बढ़ेगी? वो जो खुशी की जगह कड़वाहट आ जाएगी उसके वायब्रेशन हमारे शरीर को जायेंगे। इससे आपका स्वास्थ्य बढ़ेगा या घटेगा? स्वास्थ्य घटेगा। इतना कड़वा-कड़वा होकर जब आप अपने घर, अपने परिवार के पास जाएंगे तो इसका प्रभाव आपके रिश्तों पर भी पड़ेगा। चुनाव आपको करना है।

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