मेरे मन में ये प्रश्न था कि कैसे होगा? हरेक व्यक्ति कैसे कहेगा कि हमारा बाबा आ गया लेकिन ऐसा नज़ारा बाबा ने दिखाया कि सचमुच जब प्रत्यक्षता होगी तो किस तरह खुशी में आकर, जैसे अभी एक राम मन्दिर बना तो खुशी में आकर जो भी, जहाँ भी देखो तो बस हमारा राम आ गया, हमारा राम आ गया।
बाबा ने हम सभी बच्चों को समय अनुसार यही पुरूषार्थ कालक्ष्य दिया है कि बच्चे तुम्हें अनेक आत्माओं को अपने दिव्य दर्शनीय स्वरूप के द्वारा अनुभव कराना है और समय की मांग भी यही है कि अब पुरूषार्थ ऐसा करें, क्योंकि अचानक का पार्ट है और समय की तीव्रता को देखते हुए अभी बहुत कम समय रह गया है। जिस तरह आदि में ब्रह्मा बाबा के द्वारा अनेक दादियों को ये साक्षात्कार होता था कि बाबा का दिव्य स्वरूप और कृष्ण का स्वरूप देखते थे। और वो इशारा करते थे कि आप इनके पास जाओ। ये अनुभव दादियों ने जब किया तभी उन्होंने अपने सम्पूर्ण जीवन को समर्पित किया, बाबा की ईश्वरीय सेवा में। इसी तरह आगे चलते-चलते जैसे-जैसे विदेश सेवा हमारी आरम्भ हुई तो दादियों के द्वारा भी कईयों को साक्षात्कार होता था।
मुझे याद आता है कि एक बार दादी प्रकाशमणि जी ने विदेशी भाई-बहनों से जब मिलना हो रहा था तो विदेशी भाई-बहनों से पूछा कि आप सभी में कितनों को साक्षात्कार हुआ और बाबा के बने? तो देखा गया मैजॉरिटी भाई-बहनों ने हाथ उठाया कि हम साक्षात्कार के माध्यम से बाबा के पास आये, बाबा का ज्ञान लिया। जब और डिटेल से पूछा गया कि कहा किसी को दादी प्रकाशमणि का साक्षात्कार हुआ, किसी को दादी जानकी का साक्षात्कार हुआ, किसी को दादी गुल्ज़ार जी का साक्षात्कार हुआ और वो साक्षात्कार में उन्हें यही जैसे इशारा मिलता था कि सफेद वस्त्रधारी के पास आप जाओ। और उस साक्षात्कार के बाद उनका जीवन एकदम परिवर्तन होकर बाबा के सम्पर्क में आये। और सम्पूर्ण जीवन ही बदल गया।
तो जब बाबा कहते कि आदि सो अन्त। जो पार्ट आदि में चला, नैचुरल है अन्त में भी चलेगा। लेकिन अभी तो बाबा है नहीं साकार में। ना दादियां साकार में हैं, अव्यक्त हो गये। एडवांस पार्टी में पार्ट बजाने को गये। तो अन्तिम समय में साक्षात्कार कौन करायेगा? बाबा ही हम बच्चों के द्वारा साक्षात्कार करायेगा। और अनेक आत्माओं को ये महसूसता होगी। तभी तो अन्तिम समय ये नगाड़ा बजेगा या हरेक आत्मा के दिल से ये भाव निकलेगा, ये अनुभूति होगी कि हमारा बाबा आ गया है। प्रैक्टिकल में बाबा ये बात कहते थे कि अन्तिम समय, प्रत्यक्षता के समय हर कोई कहेगा कि ”हमारा बाबा आ गया”।
अन्दर में एक विचार चलता था कि ऐसे कैसे होगा? परंतु अभी जब बाबा ने अयोध्या की यात्रा कराई तो एक बहुत सुन्दर अनुभव का एक रिहर्सल देखा। क्योंकि अयोध्या के अन्दर जहाँ भी जाते थे तो ये गीत बजता था कि हमारे राम आयेंगे, हमारे राम आयेंगे। तो भले वो निमित्त मात्र राम के तस्वीर को सामने रखते हुए कहते थे कि हमारे राम आयेंगे लेकिन अन्दर कहीं न कहीं भाव तो उस परमात्मा के लिए ही था। और इसी तरह जब प्राण प्रतिष्ठा होने के बाद माननीय प्रधानमंत्री जी ने स्टेज पर आकर तीन बार कहा कि हमारा राम आ गया, हमारा राम आ गया, हमारा राम आ गया। तो उस समय मुझे सामने बैठे यही अनुभव हो रहा था कि एक दिन आयेगा शायद माननीय प्रधानमंत्री जो भी होगा वो ये कहेगा, चाहे लाल किले के मैदान से कहे, या डायमंण्ड हॉल की स्टेज से कहेगा कि हमारा बाबा आ गया… हमारा बाबा आ गया… हमारा बाबा आ गया। इस तरह की एक ऐसी अनुभूति हो रही थी वहाँ बैठे-बैठे, ये सुनते हुए कि बाबा एक रिहर्सल दिखा रहा है कि कैसे होगा? क्योंकि मेरे मन में ये प्रश्न था कि कैसे होगा? हरेक व्यक्ति कैसे कहेगा कि हमारा बाबा आ गया लेकिन ऐसा नज़ारा बाबा ने दिखाया कि सचमुच जब प्रत्यक्षता होगी तो किस तरह खुशी में आकर, जैसे अभी एक राम मन्दिर बना तो खुशी में आकर जो भी, जहाँ भी देखो तो बस हमारा राम आ गया, हमारा राम आ गया।
भाव यही अब वो दिन शायद दूर नहीं क्योंकि जैसे कहा जाता है कि कई बार बाबा कहते हैं कि बच्चे अभी तो रजो तक पहुंचे हैं, अभी सतोप्रधानता की स्टेज तक तो वो दूर हैं, साकार मुरलियों में हम सुनते रहे ये बात। लेकिन ये राम मन्दिर बनने के समय ऐसा महसूस हुआ कि सेमी सतो तक तो पहुंच गये हैं। और सेमी सतो के बाद क्या होगा? सतोप्रधान, तो ये कहेंगे कि हमारा कृष्ण आ गया, हमारा कृष्ण आ गया। ये कहेंगे? और उसके बाद जब फाइनल प्रत्यक्षता होगी तो क्या कहेंगे? हमारा बाबा आ गया, हमारा बाबा आ गया। तो एक बहुत सुन्दर अनुभूति हुई। तभी जैसे ये बात कही गई और हेलीकॉप्टर से जैसे पुष्प वर्षा हो रही थी तो मुझे ऐसा अनुभव हो रहा था कि जब ऐसा प्रत्यक्षता का नगाड़ा बजेगा तो बाबा वतन से गोल्डन पुष्पों की वर्षा हरेक आत्मा पर करेगा। एक बहुत सुन्दर अनुभव था। जिसको मैं कितना भी चाहूँ वर्णन करने के लिए लेकिन मैं वर्णन नहीं कर पा रही हूँ उस बात को। उस समय मुझे इतनी खुशी हो रही थी कि सचमुच बाबा अधर्म का नाश और सतधर्म की स्थापना कर रहे हैं और उस समय हर आत्मा जैसे वहाँ पर भी देखा कि एक राम मन्दिर बनने के बाद कई लोगों की आँखों में आंसू थे, झर-झर रो रहे थे। तो लगा कि जब बाबा की प्रत्यक्षता होगी तो आत्मायें झर-झर रोयेंगी। किसी के अन्दर खुशी के आंसू होंगे तो किसी के अन्दर पश्चाताप के आंसू होंगे, कि हमने पहचाना नहीं। तो एक बहुत अद्भुत अनुभूति थी वो, कि कैसे बाबा की प्रत्यक्षता होगी और हम सब आत्मायें निमित्त बनेंगी। वो दिव्य दर्शनीय मूर्त द्वारा साक्षात्कार कराने के लिए।