वो ही है परमात्मा…ये पहचान कैसे हो !

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आखिर परमात्मा कौन हो सकता है? क्या अलग-अलग धर्म, वर्ग और पंथ का अलग-अलग परमात्मा है या इस सृष्टि और सृष्टि में हम सभी मनुष्यात्माओं को रचने वाला परमात्मा एक है? इसपर विचार करें तो देखने में आता है कि एक तरफ तो हम कहते हैं कि गॉड इज़ वन, सबका मालिक एक। वहीं दूसरी ओर हम कह देते कि मुझमें भी भगवान, तुझमें भी भगवान। फिर कोई कहते ये मेरा भगवान, वो तुम्हारा भगवान। फिर और कई तो प्रकृति को भी भगवान मानते हैं। सृष्टि में इन विभिन्न तरह के भाव लिए विभिन्न वर्ग हैं। यहां असमंजस की स्थिति पैदा हो जाती है कि आखिर वो है कौन? परमात्मा को कौन-सी ऐसी कसौटी पर कसें कि उसे यथार्थ रूप से पहचाना जा सके? ताकि अगर कल ही भगवान हमारे सामने आ जायें तो हम उसे पहचान सकें। तो इसके लिए हैं ये मुख्य पाँच कसौटियाँ जिससे उसे पहचाना जा सके…

  1. भगवान वो हो सकता है जो सर्वमान्य हो
    ग्लोबली एक्सेप्टेड हो। जिसको सभी धर्म वाले परमात्मा स्वीकार करें, जैसे हम कहते हैं कि राम भगवान है, लेकिन अन्य धर्म वाले तो कहते हैं कि ये आपके भगवान हैं। उसी श्रृंखला में यदि हमें ईशा मसीह कहें, तो हम कहेंगे कि ये तो क्रिश्चन धर्म के हैं। इसी तरह सभी ने अपने-अपने भगवान बना रखे हैं, तो ये तो सर्वमान्य नहीं हुआ ना! भगवान तो वो है ना जिसे सभी मानें। कोई भी स्पष्ट नहीं है, तो उसे भगवान कैसे मानें!
  2. परमात्मा वो है, जो सर्वोच्च हो
    जिसके ऊपर कोई ना हो। उसका न कोई माता-पिता हो, न बंधु-सखा, न शिक्षक, उसे कहेंगे परमात्मा। लेकिन जितने भी धर्म पिता हैं या दिव्य आत्मा हैं, उनके माता-पिता, बंधु-सखा सब हैं, तो ये भगवान कैसे हो सकते हैं!
  3. परमात्मा उसे कहा जायेगा जो सर्वोपरी हो
    अर्थात् जिसका जन्म-मरण के चक्र से कोई नाता न हो। परमात्मा को अजन्मा कहते हैं। अजन्मा के साथ-साथ ये भी कहा जाता है कि उसे काल कभी नहीं खा सकता। लेकिन सभी को यहां शरीर छोड़ते और जन्म लेते दिखाया जाता है। तो ये भी उस कसौटी के साथ खरा नहीं उतरा।
  4. परमात्मा उसे कहेंगे जो सर्वज्ञ हो
    जिसको तीनों कालों और तीनों लोकों का ज्ञान हो। जो त्रिकालदर्शी हो। लेकिन आज तक जो सुना व पढ़ा है कि विष्णु जी के पास समस्या का समाधान न होने पर शंकर जी के पास भेजते और वहाँ भी समाधान न हो तो ब्रह्मा जी के पास भेजते हैं।
  5. परमात्मा उसे कहेंगे जो सर्व गुणों में अनंत हो
    जिसकी महिमा के लिए कहते हैं कि धरती को कागज़ बनाओ, समुंदर को स्याही बनाओ और जंगल को कलम बनाओ, तो भी उसकी महिमा लिखी न जा सके। लेकिन यहां परमात्मा के गुणों को तो छोड़ो, अवगुणों की भी चर्चा है। इसलिए जो गुणों में अनंत होगा, उसमें अवगुण नहीं हो सकता।
    तो ये है परमात्मा को परखने की पाँच कसौटी, जिसपर हमें अपनी मान्यताओं को कस कर देखना है कि क्या वे सत्य हैं या असत्य?

जल्दी ही अपने सत्य पिता को पहचानो। कहीं उसे पहचानने में देर न हो जाये…

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