बार्शी ,महाराष्ट्र:
हर कोई चाहता है कि उसके परिवार में सुख-शांति बनी रहे। परिवार में क्षणिक खुशी तो रहती है लेकिन शाश्वत खुशी लाने के लिए स्वभाव में सकारात्मक बदलाव लाना जरूरी है क्योंकि हमारे रिश्ते में खुशी खत्म होने का कारण हमारे स्वभाव में नकारात्मकता है। यह कोई नहीं है जो आपको दुखी करता है, यह आपका स्वभाव है जो आपको दुखी करता है। ‘
‘ उक्त विचार ब्रह्माकुमारीज़ के महिला प्रभाग की राष्ट्रीय समन्वयक डॉ. राजयोगिनी सविताबहनजी, माउंट आबू इन्होने व्यक्त किये ।
वह ब्रह्माकुमारी सेवाकेंद्र पर महिला स्नेहमिलन के दौरान उपस्थित महिलाओं को मार्गदर्शन कर रही थीं। उनके मार्गदर्शन का विषय सुखी और स्वस्थ परिवार के लिए सकारात्मकता था।
इस कार्यक्रम का आयोजन ब्रह्माकुमारीज़ के बार्शी सेवाकेंद्र द्वारा किया गया था। कार्यक्रम की अध्यक्षता सोलापुर उप-क्षेत्र निदेशक सोमप्रभाजी ने की। कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्ज्वलन और केक काटकर किया गया
उज्वलताई सोपाल (सामाजिक कार्यकर्ता), ब्र. कु नंदादीदी (लातूर सेवाकेंद्र के निदेशक),
ब्र. कु सुनीतादीदी (अंबेजोगई सेवाकेंद्र निदेशक) डॉ. अर्पणताई शाह (स्त्री रोग विशेषज्ञ),
कुसुमताई राठौड़ (महिला कार्यकर्ता), विनिताताई भानुशाली (अध्यक्ष इनरविले क्लब)
अर्चनाताई आवटे (अध्यक्ष, लायंस क्लब बार्शी तेत्सवानी), रागिनीताई वास्कर (तालुका प्रबंधक, उम्मेद) इन विशिष्ट महिलाओं की अतिथियों के रूप में उपस्थित थीं।
सविता बहनजी ने आगे कहा, ‘घर के माहौल को खुशहाल और शांतिपूर्ण बनाना हर किसी की जिम्मेदारी है। हालाँकि यह सच है, लेकिन उनकी अधिकतर ज़िम्मेदारी महिलाओं पर आती है। क्योंकि महिलाएं ही सही मायने में परिवार की मुखिया होती हैं। ‘
परिवार में शांति की कमी का कारण बताते हुए उन्होंने कहा, ‘परिवार में दूसरों से अपेक्षा करना. दूसरों के दोष देखने, ईर्ष्या करने से मन छोटी-छोटी बातों पर चिंतित हो जाता है, उदास हो जाता है, कष्ट सहता है, तनावग्रस्त हो जाता है। परिवार में सुख-सुविधाएं भरपूर होने पर भी हम खुशियों से दूर होते चले जाते हैं। ‘
मां की भूमिका दाता की होती है। वह वस्तुतः परिवार के प्रत्येक सदस्य की संरक्षक है। वह सेवा भाव से सभी की सेवा करती हैं। लेकिन यह सब करते समय अगर उसके मन में उम्मीदें जागती हैं तो वह खुद को दुखी ही करती है। ‘
हम परिवार में अपनी सास, बहू, ननंद की कमियों, खामियों और बुरे व्यवहार से परेशान रहते हैं। लेकिन यह याद रखना जरूरी है कि हर इंसान में गुण और अवगुण दोनों होते हैं। जिस प्रकार हम सब्जी बाजार में टमाटर, बैंगन, आलू की टोकरी से खराब टमाटर, बैंगन, आलू को हटाकर अच्छे टमाटर, बैंगन, आलू का चयन करते हैं। इसी प्रकार हमें दूसरों के जीवन में निन्यानबे दोषों को हटाकर उनमें सौवां गुण देखने की दृष्टि विकसित करनी चाहिए। ‘
क्योंकि हम स्वयं इन सभी गुणों से सम्पन्न नहीं हैं। हमारी कमियों, दोषों एवं व्यवहार की गलतियों के कारण परिवार के अन्य सदस्य परेशान रहेंगे। इसलिए अगर हम दूसरों को देखने का दृष्टी बदल लें तो हमारी सृष्टी बदल जाएगी। ‘
संयुक्त परिवार प्रणाली में अगली पीढ़ी को दादा-दादी द्वारा शिक्षित किया जाता है। लेकिन नौकरी पेशा या बहू की चाहत के कारण आज विभाजित परिवार व्यवस्था का उदय हो गया है। माता-पिता के काम-धंधे में व्यस्त रहने और परिवार में दादा-दादी के न होने के कारण बच्चे संस्कारों से वंचित रह जाते हैं। इसलिए माता-पिता बच्चों के चरित्र को लेकर चिंतित रहते हैं। ‘
‘जीवन में खुशियों की कमी महसूस करना, दुखी, निराश और हताश महसूस करना ही अवसाद का कारण है।
विदेशों में भौतिक सुख-सुविधाओं की प्रचुरता के कारण अवसाद के शिकार लोगों की संख्या सबसे अधिक है। उसी तरह आज भारत में भी करोड़ों लोग डिप्रेशन की भावना से उबरने के लिए दवाइयों का सेवन कर रहे हैं। डिप्रेशन का इलाज सिर्फ दवाएं नहीं बल्कि अपनी मानसिकता बदलना भी जरूरी है। प्रतिस्पर्धा के तनाव के कारण युवा अवसाद का शिकार हो रहे हैं। ‘
. ‘अपने स्वार्थ के लिए जीना एक बात है और दूसरों के लिए जीना एक बात है। मेरा जीवन मेरे लिए नहीं बल्कि दूसरों के लिए है। दूसरों को देना है. देने में लेन शामिल है। अगर आप इस विचारधारा को जीवन में अपना लेंगे तो आप डिप्रेशन का शिकार नहीं होंगे बल्कि जो व्यक्ति डिप्रेशन का शिकार है वह इस विचारधारा को अपनाने से डिप्रेशन से बाहर आ जाएगा। ‘
‘आध्यात्मिक ज्ञान मन के विचारों को सही दिशा देता है और राजयोग का अध्ययन करने से ईश्वर से जुड़ने की शक्ति मिलती है।’ ईश्वर शांति, प्रेम, आनंद और सुख का सागर है। राजयोग के कारण हमारा रिश्ता ईश्वर से जुड़ जाता है और हम उनके गुणों को अपने जीवन में अनुभव करने लगते हैं। प्रतिदिन अपनी दिनचर्या में आधे घंटे राजयोग का अभ्यास करने से हमें दिव्य आनंद का अनुभव करने में मदद मिल सकती है। जब हम सुख, शांति और प्रेम से परिपूर्ण हो जायेंगे तो हम ये गुण दूसरों को भी प्रदान कर सकेंगे।
‘हम अपने शरीर, कपड़ों, हेयर स्टाइल पर समय खर्च करते हैं, लेकिन साथ ही आंतरिक सुंदरता यानी गुणों के सुंदरता पर भी ध्यान देना जरूरी है। ‘
अंग्रेजी वर्णमाला में C अक्षर से शुरू होने वाले चार शब्द हैं कॉपिटीशन, कंपॅरिझन, क्रिटीसाईज, कंप्लेंट ( प्रतिस्पर्धा, तुलना, आलोचना और शिकायत) के कारण करोडपती होने पर भी सुख-सुविधा से वंचित रहते हैं। इसलिए, भगवान ने हमें जो दिया है उसके लिए अगर हम भगवान का शुक्रिया अदा करें तो हमें जीवन में संतुष्टि और संतोष का अनुभव होगा।
कार्यक्रम की शुरुआत माउंट आबू से पधारी सुप्रियादीदी ने राजयोग अभ्यास से की।
राजयोग की आवश्यकता को बताते हुऐ सुप्रियादिदी ने कहा ‘आज हमारा मन विचलित हो रहा है , अशांत हो रहा है भटक रहा है मन मे व्यर्थ संकल्प अधिक मात्रा मे चल रहे है तो इन बातों को नियंत्रित करने की विधी है राजयोग ।’
सुप्रियादिदी ने आगे कहा , ‘आजकल जादा सोचने की आदत बढ गई है । हम इतना सोचते है की छोटी बात बडी बन जाती है । परखने निर्णय सहन करने की शक्ती कैसे बढाये और बात बडी बनने के पहले साररुप मे कैसे ले यह कला सिखने के लिए राजयोग का अभ्यास जरुरी है । आध्यात्मिक ज्ञान और राजयोग के अभ्यास के द्वारा स्वचिंतन और परमात्म चिंतन करने से हम शांति का अनुभव कर सकते है । ‘
बार्शी सेवाकेंद्र संचालिका संगीताबहनजी ने स्वागत भाषण दिया जबकि महादेवी, सत्या, प्रज्ञा, मीरा, शिवरात्रि, दुर्गा, निशा, प्रीति ब्रह्माकुमारी बहनों ने सभी का तिलक, मालापर्णा, पुष्पगुच्छ और सांता टोपी से स्वागत किया। सवितादीदी एवं सोमप्रभा दीदी के शुभ हाथों से अतिथियों का दिव्य उपहारों से सत्कार किया गया। बार्शी में विभिन्न महिला संगठनों द्वारा सवितादीदी का विधिवत अभिनंदन किया गया. साथ ही पारंपरिक महाराष्ट्रीयन पोशाक में महिलाओं ने सवितादीदी और मेहमानों का सम्मान किया।
कार्यक्रम में सांता क्लॉज की वेशभूषा में शामिल हुए लेखराज शिंदे और शौर्य वलसांगे आकर्षण का केंद्र रहे।
अध्यक्षीय मनोगत एवं आभार प्रदर्शन सोमप्रभादीदी ने व्यक्त करने के बाद राजयोग का प्रयोग कर ये योग बड़ा अनमोल है गीत सुनाकर कार्यक्रम का समापन कियाकार्यक्रम का संचालन ब्र. कु. अनिता दीदी करवा ने बखूबी किया।