याद के बल से पुरानी बातें भूल जायेंगी, देहधारियों का लगाव छूट जायेगा

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संगमयुग पर हम ईश्वरीय गुण धारण करते हैं, सतयुग में दैवी गुण होंगे। द्वापर के बाद गुण-अवगुण मिक्स होंगे। अवगुण भी आ जायेंगे। परन्तु अभी हमें ईश्वरीय गुण धारण करने के लिए बाबा पढ़ा रहा है। कैसा हमारा सतगुरू है। गुरू तो हज़ारों-लाखों हैं। गुरुओं की कितनी महिमा करते हैं, पर सतगुरू एक है। हम किसी गुरू के चेले नहीं हैं। सतगुरू एक है, वो कहता है मामेकम याद करो। यह मंत्र है, मनमनाभव। मन से मुझ एक को ही याद करो या एक के होकर रहो तभी बाप के गुण खींच सकेंगे। गुणों को धारणा की शक्ति से खींच लेंगे। फिर बाप वर्से में क्या देगा? मुक्ति जीवन मुक्ति। पहले गुणों को धारण करना होगा, सिर्फ याद करेंगे तो फरियाद नहीं होगी। याद का बल अलग है, पुरानी बातें भूल जायेंगी। याद से और देहधारियों का लगाव छूट जायेगा। संकल्प, वाणी, कर्म पर ध्यान रहेगा। जिसकी याद आती है उसका नाम भी याद आयेगा, रूप भी याद आयेगा।
चढ़ती कला, तेरे भाने सर्व का भला। जिस बच्चे की चढ़ती कला, उस निमित्त बने हुए के साथ अनेकों का भला। याद में देखना है मेरा तो कल्याण हुआ, मेरे निमित्त कितनों का भला हुआ क्योंकि राजाई हमने गंवाई है, बाबा न राजाई करता, न गंवाता है। अभी आसुरी गुणों को खत्म करने के लिए, दैवी गुण सम्पन्न बनने के लिए ईश्वरीय गुण चाहिए। ईश्वरीय गुणों से फिर शक्ति आयेगी।
बुद्धि स्वच्छ बनने से ज्ञान के सागर, प्रेम के सागर को स्वयं में समाने की शक्ति आ गई। सागर बाबा है, हमको पतित पावनी गंगा बनाता है। गंगा निकली भागीरथ के मस्तक से। पावन बनते जाओ और बनाते जाओ। ऐसे नहीं पहले पावन बनें फिर बनायें, समय थोड़ा है। संकल्प, वाणी, कर्म, सम्बन्ध, इसमें कमाई जमा हुई या गंवाया? गंवाते हैं तो अपना ही खर्च नहीं चला सकते हैं। कमाते भी जाओ, दान भी करते जाओ। इतनी कमाई हो जो सारा परिवार सुखी हो, भविष्य की प्रालब्ध ऊंची हो। भविष्य के लिए फिकर न करनी पड़े।

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