मन की बातें

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प्रश्न : मेरा नाम अमृता कुमारी है। कई वर्षों से प्रतिदिन लगभग रात को सोते समय नींद में, सपने में मुझे भूत दिखाई देते हैं। जिससे मैं बहुत ज्य़ादा डर जाती हूँ और लगभग आधी रात को मेरी आँख खुल जाती है। ये जो समस्या है कई वर्षों से मेरे साथ चल रही है, कृपया इसका कोई निदान बतायें?

उत्तर : सब्कॉन्शियस माइंड में भिन्न-भिन्न तरह की फीलिंग भरी रहती हैं, जन्म जन्म की। स्वप्नों की बहुत सारी तरह की डेफिनेशन्स दी गई हैं – कहीं इनकम्पलीट डिज़ायर्स स्वप्नों में मनुष्य पूरी करता है। ड्रीम साइकोलॉजी एक बहुत बड़ी साइकोलॉजी है। पर सब्कॉन्शियस माइंड में लम्बे काल से, हज़ारों साल से भी क्योंकि रात को सब्कॉन्शियस माइंड एक्टिव हो जाता है। तो वो सब जागृत हो जाता है। तो इसी को हमें क्लीन करना है। इसी के लिए राजयोग, ज्ञान और हमारी ये सब जो प्रैक्टिस है, ये बहुत ही आवश्यक है। इसलिए राजयोग का बहुत अच्छा अभ्यास करके सोना चाहिए। ये जो स्वप्नों की समस्या है कई लोग तो ऐसा सोचते हैं कि ये तो बस सपना है, फिर क्यों घबराना। सपना पूरा हो गया लेकिन अगर वो ही रोज़ दिख रहा है तो चिंता तो होगी ही। तो इस ड्रीम को क्लीन करने के लिए, समाप्त करने के लिए एक छोटी-सी विधि अपनानी है। सोने से पहले सात बार याद करें मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ और सर्वशक्तिवान मेरे परमपिता मेरे साथ हैं, बस आपकी एनर्जी फैल जायेगी और आपके ब्रेन में भी जायेगी, आपके माइंड को भी इफेक्ट करेगी। और इस तरह के सपने जो बिना मतलब के होते हैं वो समाप्त हो जायेंगे। और जब आप घबरा कर उठते हैं तो नींद खुल जाती है। तो ऐसी स्थिति में अगर आपने ज्ञान लिया है तो आप 10-15 मिनट तक परमात्मा के अव्यक्त महावाक्यों का अध्ययन कर लें। ताकि वो विचार बदल जायें। अन्यथा वो विचार हावी रहते हैं। आपको लम्बे काल से हो रहा है तो वो विचार आप पर हावी रहना सम्भव है। उस समय तुरंत10-15 मिनट लगायें बजाय इसके कि आप लेटी रहें, डरती रहें, नहीं। बैठें, लाइट जलायें, बाहर बैठकर अव्यक्त मुरलियां जिन्हें हम कहते हैं ईश्वरीय महावाक्य जो हमारे पास भंडार हैं, कितनी बुक्स हैं। उनका अध्ययन करें। और उस टाइम भी सात बार याद कर लें कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ। ये सिर्फ सपना है, ये कुछ नहीं है। मैं इन सबसे पॉवरफुल हूँ।

प्रश्न : मेरा नाम भूपेन्द्र है। मैं चार साल से विद्यालय से जुड़ा हुआ हूँ और अभी मैं जिस ऑर्गेनाइजेशन में कार्य करता हूँ, वहाँ पर जो मेरे बॉस हैं वो चोर किस्म के हैं। जो ऑर्गेनाइजेशन में खर्च किया जाना चाहिए, वो खुद सारा हज़म कर लेते हैं। उनकी ये जो आदत आदत है उसके कारण मैं बहुत डिस्टर्ब रहता हूँ। क्योंकि मैं एक ऑनेस्ट किस्म का आदमी हूँ। तो अब मुझे क्या करना चाहिए? मुझे वहाँ से निकल जाना चाहिए या अपने बॉस को समझाने का कुछ प्रयास करना चाहिए?

उत्तर : देखिए जो ऑनेस्ट हैं संसार में उनको दूसरों की डिसऑनेस्टी प्रिय नहीं लगती है, ये बड़ी नैचुरल सी चीज़ है। लेकिन क्या करें अब कलियुग का अंत है और अनेक अधिकारी मनी माइंडेड हो चुके हैं चाहे वो सरकार से मिलें, चाहे कम्पनी से मिलें, उन्हें तो पैसा मिले। लेकिन ये फलीभूत नहीं होता है। क्योंकि ये पाप भी है। लेकिन आपको कहूँगा कि ये तो आपकी नौकरी का प्रश्न है, ऐसा न हो कि आप अपनी नौकरी छोड़ दें और भटकते रहें इधर-उधर, इसकी अभी ज़रूरत नहीं है। अगर आपको ऐसा करना ही है तो पहले नौकरी ढूंढ लें फिर रिज़ाइन करें। दूसरी जगह भी ऐसा मिल गया तो क्या करोगे? क्योंकि हर जगह कलियुग का अंधकार छाया हुआ है। इस क्रप्शन के लिए हमारी सरकारें कितना भी वायदा करें लेकिन ये जैसे वाजपेयी जी कहते थे कि ये बहुत गहरी जड़ें जमा चुका है अन्दर। कैंसर के रोग की तरह व्याप्त हो चुका है। अब इसको निकालना एक व्यक्ति के बस की बात नहीं होती। और अगर आप बात को ऊपर पहुंचायेंगे तो मारे जायेंगे। क्योंकि अभी सत्य का समय नहीं है। हो सकता है जहाँ बात पहुंचायें वहाँ पर भी जाता हो हिस्सा! वो ही आपको कर देंगे कि निकालो इसको। कहाँ से आ गया ये लड़का, खराब बात कर रहा है, जैसे आजकल हो रहा है। हम इस बात को सुनते रहते हैं कि सत्य की हार हो रही है। स्लोगन तो है सत्यमेव जयते। लेकिन कलियुग में ये हो रहा है कि सत्य हार रहा है, असत्य जीत रहा है। इसलिए ये काम आपको बहुत सोच-समझकर करना है। अपना कार्य करते रहें और आपको चाहिए कि आप अपने बॉस को रोज़ आधा घंटा गुड वायब्रेशन दें, योग अभ्यास करके। माइंड टू माइंड रोज़ सवेरे उनसे बात करें दो मिनट, तीन मिनट एक समय फिक्स करके। ताकि उनके अन्दर भी उनके जो प्युअर संस्कार हैं वो जाग्रत हो जायें और वो इस बुरी चीज़ से बच जायें। ऐसा हो रहा है जो लोग ऐसे कार्यों में लगे रहते हैं, वो कहीं न कहीं तो फंसते ही हैं। फिर पकड़े जाते हैं और फिर वो जेल में भी रहते हैं। सारी धन सम्पत्ति भी चली जाती है। फिर कंगाल के कंगाल। कई केस तो हो चुके हैं। ये सब देखते हुए भी मनुष्य सुधर नहीं रहा है। वो सोचता है ठीक है जब होगा तब देखा जायेगा। तब तक तो कमा लूं। परंतु ये उचित नहीं है। ये हमारे देश के कल्याण के लिए भी नहीं है। मैं तो कहूँगा कि ये तो देश द्रोह है। जिस कम्पनी के लिए आप काम कर रहे हो उसके लिए बहुत डेडिकेटेड, बहुत ऑनेस्ट होना चाहिए।

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