मुख पृष्ठब्र. कु. सूर्यविश्व नाटक में तुम हीरो एक्टर हो…!!!

विश्व नाटक में तुम हीरो एक्टर हो…!!!

विश्व रंगमंच पर आप ही हीरो एक्टर हैं, यह राज़ परमपिता परमात्मा ने हमें याद दिलाया। हर कोई अपना-अपना पार्ट बजा रहा है। इसी साइकलिंग में खेल चल रहा है। आप इस दृष्टि से सबको देखें तो किसी का भी कोई दोष नहीं है। इस वास्तविकता को जानकर निश्चिंत रहें, अचल रहें, स्थिति को श्रेष्ठ और स्थिर बनाएं।

ज्ञान के सागर परम शिक्षक ने जो स्वयं आकर हमें सम्पूर्ण ज्ञान दिया, उसमें एक ज्ञान सृष्टि के आदि-मध्य-अंत का भी है। आदि क्या थी इस सृष्टि चक्र की, बीच में क्या-क्या हुआ, अंत में क्या होगा, कैसा होगा, तो इसकी तुलना भगवान ने एक फिल्म से, एक नाटक से, एक ड्रामा से की है। ये धरा रंगमच है। तुम आत्माएं एक्टर्स हो। तुम्हारा घर परमधाम है, ब्रह्मलोक। वहाँ से तुम आये हो। ये जो शरीर तुमने पहना है, ये तुम्हारा वस्त्र है। इसको पहनकर तुम अपना पार्ट यहाँ बजा रहे हो। सभी मनुष्यात्माएं एक्टर्स हैं। सभी को अपना-अपना पार्ट मिला हुआ है, जैसे फिल्म में मिल जाता है। जैसे किसी सीरियल में मिल जाता है।

तो देखिए ये विश्व एक विशाल नाटक है। और सबका पार्ट रिकॉर्डिड है आत्मा में। शरीर रूपी डे्रस पहनकर सभी आत्मा अपना पार्ट यहाँ प्ले कर रही हैं। इस विश्व ड्रामा के बारे में कई बातें बाबा ने हमें गुह्य रूप से बता दी हैं। कई प्रश्न किया करते हैं कि क्या इस ड्रामा को हम चेंज कर सकते हैं? पर चेंज करने की ज़रूरत तो तब पड़े जब वो खराब हो। भगवान ने कह दिया कि ये ड्रामा एक्यूरेट चल रहा है। ये ड्रामा मुझे बहुत प्रिय है। ये ड्रामा क्रियेटर को प्रिय है तो तुम सबको भी तो प्रिय होना चाहिए। इसमें सबकुछ बहुत अच्छा चल रहा है। चिंतन करें कि रात भी अच्छी, दिन भी अच्छा। ये हार-जीत और सुख-दु:ख का खेल चल रहा है। इसमें सभी मौसम आते हैं। सभी अच्छे हैं। बरसात भी अच्छी, गर्मी भी अच्छी, तो सर्दी भी अच्छी, इसका सम्पूर्ण ज्ञान हमें दिया है। और हमारा दृष्टिकोण दूसरों के लिए बदल गया।

सबसे पहली चीज़ हमें पता चल गई कि इस ड्रामा के प्रारम्भ में जो हमारा पार्ट था वो देवी-देवता के रूप में था। हम सब देवी-देवता धर्म की महान आत्माएं हैं। तब हम सम्पूर्ण पवित्र थे, ये संसार स्वर्ग था। ये धरा भरपूर थी। यहाँ अथाह सम्पदा, सोना, हीरे, मोती, माणिक, सब बहुत ज्य़ादा थे। उस समय केवल भारत ही था। भारत बहुत-बहुत साहूकार इतना साहूकार कि सोने के तो महल और घर बनते थे। लेकिन जो साधारण भी देवता होगा उसके भी चांदी के घर, दरवाजों पर सोना मंढा हुआ, जो बिल्कुल साधारण है। और जिन्होंने संगमयुग पर श्रेष्ठ भाग्य बनाया है उनके पास तो सोना ही सोना होगा। घर भी सोने का, इंटें भी सोने की, छत भी सोने की, दरवाजे भी सोने के, बहुत सुन्दर आर्किटेक्ट, बहुत सुन्दर डिज़ाइन, ऐसे वहाँ मकान होंगे। जिन्हें देखते ही मन आनंदित हो जाए। तो बताया कि तुमने ही विश्व पर राज किया था तब, तुम्हारे अन्दर बहुत इनर पॉवर और इनर टैलेंट थे।

कई इस ड्रामा को लेकर ये कहते हैं कि अगर बनी बनाई है तो फिर पुरूषार्थ क्यों करें? पार्ट है वो तो हमारा, पुरूषार्थ करना भी तो पार्ट है ना! वो भी फिक्स है, वो भी हमें करना ही होगा। इसलिए ये कभी नहीं सोचना है कि पुरूषार्थ क्यों करें? ये संसार का खेल पुरूषार्थ और प्रालब्ध, कर्म और फल, कर्म और भाग्य इससे ही तो चल रहा है। इसी साइकलिंग में खेल चल रहा है। तो आप इस दृष्टि से सबको देखें ज़रा कि सभी आत्माएं अपना-अपना पार्ट प्ले कर रही हैं। किसी का यहाँ दोष नहीं है, पक्का करें अपने में।

अभी मान लो रामायण में रावण का पार्ट बजाया, वो पण्डित अरविंद, वो जब हमारे यहाँ आये तो लोग उसका मज़ाक करते थे कि बहुत क्रोध करते हैं आप तो, उन्होंने कहा कि मुझे तो क्रोध आता ही नहीं, मैं तो शांत हूँ। लेकिन वो रावण के रूप में मुझे पार्ट प्ले करना था तो उसकी एक्टिंग करनी थी। वो क्रोध मुझे दिखाना था। तो देखिए दो रूप हो गये ना, दो फेसेज हो गए, एक उसका रियल फेस वो पण्डित अरविंद बहुत शांत, एक अच्छा व्यक्ति, दूसरी ओर उसको मिला हुआ पार्ट रावण का जिसमें उसका उग्र रूप दिखाया है। जिसमें बहुत क्रोधी और अभिमानी उसको दिखाया है, तो अगर कोई पण्डित अरविंद को देखकर ये सोच ले कि ये व्यक्ति तो बड़ा घमण्डी है, बड़ा अहंकारी है, क्रोधी है तो ये गलत होगा ना! तो इसी तरह इस ड्रामा केप्रति, लोगों के प्रति जो दृष्टिकोण है वो बदल जाएगा। इसको देखकर जो भिन्न-भिन्न क्वेश्चन उठते हैं, भगवान ने ऐसा क्यों रचा, ये मनुष्य ऐसा क्यों कर रहे हैं, इन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए।

हम जानते हैं पाप बहुत बढ़ गया है। क्रिमिनलिटी बढ़ गई है, अत्याचार, वायलेन्स सब बहुत बढ़ा हुआ है। और एक अच्छे व्यक्ति के मन में ये प्रश्न उठता ही है कि ये क्यों? इस समझदार मनुष्य को आखिर हो क्या गया? जो बात-बात में झगडऩे लगा है, आन्दोलन होने लगे, पत्थरबाजी होने लगी है, ये क्या होने लगा है इस इंसान को! क्या धर्म यही सिखाते हैं? मनुष्य का चिंतन तो चलता है। पर जो ज्ञानी, जो ब्रह्मावत्स इस ड्रामा के ज्ञान को पूरी तरह जान गए हैं। उनका चित्त शांत रहता है कि ये खेल पूरी तरह एक्यूरेटली चल रहा है। इसमें जो हो रहा है वही सत्य है और कर्म के अनुसार, समय के अनुसार वही तो होना चाहिए। देखिए कितनी गहरी बात है। जो हो रहा है, वही एक्यूरेट है, वही सत्य है, और वही होना चाहिए। तो एक बहुत सुन्दर चीज़ हम सबको मिलती है इस विश्व के ज्ञान में, चित्त शांत होता है। क्या,क्यों की उलझन से हम मुक्त हो जाते हैं और अपने श्रेष्ठ कर्म में लग जाते हैं। अपने भविष्य को सुन्दर बनाने में लग जाते हैं।

ये हमें नहीं सोचना है कि हमारा भविष्य तो सुन्दर था ही, देवी देवता थे हम पुरूषार्थ क्यों करें! क्योंकि वो सुन्दर था ही इसलिए क्योंकि इस समय हमने वो पुरूषार्थ किया था, वो हमें रिपीट करना ही है। तो ड्रामा के ज्ञान से अपने चित्त को पूरी तरह शांत करें।

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