मन की बातें

प्रश्न- एक प्रोग्राम में आपने बताया था कि योग के अभ्यास से कैंसर की बीमारी ठीक हुई थी वह भी केवल एक हफ्ते में, काफी अच्छा रिज़ल्ट था। मुझे भी है। मैं पिछले 4 महीने से ये अभ्यास कर रही हूँ लेकिन वैसी प्रोग्रेस हमें नहीं मिल पाई है तो मन निराश रहता है। क्या करना चाहिए?

उत्तर- देखिए ये सबके कर्मों का खेल अलग-अलग है। मेडिकल साइंस तो इस बात को नहीं बताएगी किसी को कि कर्मों का भी खेल चल रहा है। वो तो वर्तमान का जो भी डायग्नोािसस है उसके आधार पर सब कुछ बताएंगे। तो आपको ये ऐसे करना चाहिए, कम से कम दो घण्टे इस बीमारी से मुक्त होने के लिए रोज़ योग अभ्यास करना चाहिए। दो संकल्प लेकर- मैं आत्मा मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ और इस देह की मालिक हूँ, स्वराज्य अधिकारी हूँ। दो घण्टे बहुत अच्छा योग करेंगे और देख लें अपने को कि कोई निगेटिव संकल्प तो नहीं चलते? माताओं के संकल्प चलते कि मैं मर गई तो मेरे बच्चों का क्या होगा? मैं मर ना जाऊं, डर बहुत रहता है क्योंकि कैंसर से दुनिया का बुरा हाल होता जा रहा है। लेकिन हमारे अनुभवों में ये बहुत बाते आई हैं कि बहुतों के ठीक हो गए, लंबा समय वो जियेंगे, ये भी निश्चितता उनको मिल गई है। तो पानी चार्ज करके पीना, योगभ्यास करना, जहाँ कैंसर हो वहाँ एनर्जी देना और रात को सोते समय ये 5-7 बार ये संकल्प करना है कि मेरा कैंसर बिल्कुल ठीक हो गया। एक है कि मैंने आपको बताया तो आप रिपीट करेंगे तो इफेक्ट नहीं होगा। लेकिन आत्म विश्वास से आप रिपीट करेंगे अपने मन में कि मेरा कैंसर बिल्कुल ठीक हो जाएगा, हो गया है और बहुत खुश रहेंगे। निगेटिव और निराश नहीं। ये ठीक होगा इस विश्वास के साथ करें।

प्रश्न- सुबह मेडिटेशन करने के बाद सारे दिन का शेड्यूल हमारा कैसा होना चाहिए? इस पर मार्गदर्शन करें।

उत्तर- ये बहुत अच्छा प्रश्न है। हम सुबह तो मेडिटेशन करते ही हैं और अवश्य करना चाहिए। लेकिन सारे दिन के लिए भी कुछ अभ्यास हमें तय कर लेने चाहिए अपने मन में। ये हम आज सारा दिन ये अभ्यास करेंगे। चाहे आप एक, दो या तीन ही अभ्यास ले जाएं। चाहे आप कई अभ्यास साथ में ले जाएं कि इस कर्म में हम ये करेंगे, ऑफिस में ये करेंगे, दुकान में ये करेंगे। तो सारा दिन अच्छा अभ्यास भी हो और हल्के बहुत रहें। कुछ बाबा ने ऐसी चीज़ें सिखाई हैं जिनको हमें सारे दिन की दिनचर्या में साथ रखना चाहिए। जैसे बापदादा का आह्वान, ये याद रखना कि वो मेरे लिए जि़म्मेदार हैं, वो मेरा साथी है या वे करन-करावनहार हैं… ऐसी एक-दो बाते याद रखना। तो मदद मिलती रहेगी, मन बहुत हल्का रहेगा। लक्ष्य ये हो कि हमें अपने कार्यों को, जो भी हम सारा दिन करते हैं उसको हमें एन्जॉय करना है और लाइफ को बहुत सरल बनाना है। तो ये कुछ अभ्यास भी सारा दिन करेंगे। बहुत अच्छा होगा अगर आप कर सकें दिन में तीन बार, ईश्वरीय महावाक्य देख लिया करें कुछ दो मिनट में। नोट करके रखें अपने पास। पॉकेट में भी रख सकते हैं, पर्स में भी रख सकते हैं। दो-तीन बार पढ़ लें। उससे क्या होगा कि फिर से जागृति आएगी और जो व्यर्थ कहीं भी चल रहा हो वो समाप्त हो जाएगा। अपने समय के अनुसार जितना मुरली पढऩा हो, योग करना हो कर सकते हैं। मुरली- ईश्वरीय खज़ानों की खान है, रत्नों की खान है। आंखें खुलती हैं मनुष्य की, जीवन जीने की राह मिलती है इससे, मन के बोझ समाप्त होते हैं, विचारों में महानता आती है, चित्त की शुद्धि होती है। ये तो अनमोल चीज़ें हैं। इन्हें तो जितना करेंगे उतना ही अच्छा होगा। लेकिन शाम का मेडिटेशन बहुतों का अनुभव है कि सवेरे से भी ज्य़ादा पॉवरफुल होता है। और सोने से पहले आधा घण्टा अवश्य करना चाहिए। जो हम दूसरी चीज़ सिखाते हैं। हमारे ही पांच स्वरूपों का अभ्यास और मेडिटेशन भी जितना करेंगे, प्रभु मिलन करते हुए विश्रामी होंगे तो नींद सतोप्रधान होगी और सवेरे का समय बहुत एनर्जेटिक, सुखदाई और आनन्दकारी बितेगा।

प्रश्न- मैं रोज़ आपका समाधान प्रोग्राम देखती हूँ, राजयोग करने पर मेरी कोई भी प्रॉब्लम ठीक नहीं हुई अभी तक। तो इसके लिए क्या करें?

उत्तर- राजयोग के साथ कुछ और चीज़ें भी करनी चाहिए। राजयोग को हम विघ्न विनाशक भट्टी कहते हैं, वो कराते हैं। कोई सफलतामूर्त, भिन्न-भिन्न संकल्पों से करते हैं लेकिन इसमें देखने की बात ये होगी कि ये इन्हें खुद चेक करना है कि योगाभ्यास में मन एकाग्र कितना होता है। कई लोग सोचते हैं शान्त में बैठे हैं, लाल लाइट में योग हो रहा है, ये नहीं। शिवबाबा से कनेक्ट कितने होते हैं, व्यर्थ से मुक्त कितने ज्य़ादा रहते हैं। अब मान लो कोई बीमार है, तो वो सोचे योग से ही ठीक हो जाएगा, ये गलत है। मेडिसिन भी उसको लेनी चाहिए, ट्रीटमेंट भी उसे लेनी चाहिए, मन को हल्का भी रखना चाहिए, अपने को प्रसन्न भी रखना चाहिए। अब बहुत सारी बातें एक साथ काउंट होती हैं। वो तो इनको बताना होगा कि कहाँ कमी रहती है लेकिन अगर बहुत अच्छा एकाग्रता के साथ योगाभ्यास किया जाए, तो हम तो सब देख रहे हैं कि बहुतों का ठीक हो रहा है। लेकिन जिनका नहीं हो रहा है यहाँ ये भी हो सकता है कि मनुष्य की जो कर्मों की गति है, उसका जो चिन्तन रहा है पूरा जीवन, अभी उसका चिन्तन निगेटिव है क्या, वो बहुत चिन्ताओं में रहते हैं, उनके घर में लड़ाई-झगड़ा है, पति की ओर से सदा इनसल्ट की गई है, इन चीज़ों का बुरा इफेक्ट सब-कॉन्शियस माइंड में समा जाता है। वो फिर बैड एनर्जी मनुष्य को ठीक होने नहीं देती है। तो एक साथ बहुत सारे परिवर्तन करने पड़ेंगे। दवाइयों के साथ, योगाभ्यास के साथ चिन्तन का परिवर्तन।

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