अरी आँखों बंद नहीं होना आज…

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‘कच्चे धागे से बंधी हुई है सरकार मेरी’ जिसको कहते हैं। धागा नहीं बंधा हुआ है लेकिन मेरी सरकार तो आ गई मेरे सामने ये मैंने देख लिया।

जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि जगदीश भाई जी को बाबा से कितना अथाह प्यार रहा। जो बाबा के बिना रह नहीं सकते। फिर आगे अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं कि बाबा… साइलेंस लाइट, बाबा… क्या देखता हूँ बाबा आ गये हैं, बाबा आके सामने खड़े हो गए। मैंने लाइट ऑफ की नहीं थी क्योंकि मुझे नींद तो आ नहीं रही थी। लाइट ऑन ही थी। और उसमें बाबा आके खड़े हो गए, मुझे दृष्टि देने लगे। साक्षात्कार जैसे होता है, बाबा साकार में हैं लेकिन साकार में मुझे साकार भी दिखाई दे रहे हैं, लाइट के भी दिखाई दे रहे हैं। जिसको सेमी ट्रांस की आप स्टेज कह दीजिए। दोनों जैसे वो कहते हैं ना गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागू पाये। तो दोनों ही जैसे मुझे इक_े दिखाई दे रहे हैं। अव्यक्त ब्रह्मा और ब्रह्मा। बाबा मुझे देख रहे हैं। मैं बाबा को देख रहा हूँ टकटकी बांध के। क्रअरी आँखों बंद नहीं होना आजञ्ज ये मुझे अच्छी तरह से निहार लेने दो। जी भरकर, देखता ही जाऊं, देखता ही जाऊं। वो गीत है ना तेरी याद का अमृत पीते हैं। बार-बार यही कहता तेरी याद का अमृत पीते हैं। तो मुझे भी यही था कि देखता ही रहूं, देखता ही रहूं। दिल कहता बाबा तूझे देखता ही रहूँ। तो मैं देखता ही रहा, देखता ही रहा। बाबा मुझे दृष्टि देते ही रहे। मैं यहाँ होते हुए भी यहाँ नहीं था। और फिर बाबा बोले, मैं फिर बाद में थोड़ा नीचे उतरा तो सोचने लगा कि ये मैं लाइट का देख रहा हूँ या बाबा साकार में उनको देख रहा हूँ। अपने ऊपर ही सोचने लगा। बाबा को मेरा वायब्रेशन पहुंचा होगा, बाबा ने कहा बच्चे…बच्चे अब लेट जाओ, रेस्ट करो। सुबह मिलेंगे। अच्छा बाबा, लेट गया मैं। अब मैंने ये एक और अनुभव कर लिया कि योग का, याद का कनेक्शन क्या होता है। उसमें तार कोई नहीं बीच में लेकिन मैसेज पहुंचता है और वहाँ से भी मैसेज आता है। क्रकच्चे धागे से बंधी हुई है सरकार मेरीञ्ज जिसको कहते हैं। धागा नहीं बंधा हुआ है लेकिन मेरी सरकार तो आ गई मेरे सामने ये मैंने देख लिया। ये सच्चा योग है और जैसे मैंने पहले बताया कि ये तो एक बहुत अपने प्रकार की कहानी है, दास्तान है उसको सुनायें तो बहुत टाइम की ज़रूरत है। उतना मैं नहीं कह पा रहा हूँ। ये जो लकड़ी की सीढ़ी आती है, मूवमेंट लेडर, लाठी का बना हुआ है। उसपर चढ़कर हमने कई दफा बाबा को कील लगाते हुए देखा। अकेले हथौड़ी और कील लेकर ठोक रहे हैं। आशियाना बना रहे हैं। कुछ बच्चे आने वाले हैं। जगह है नहीं रहने की, उनके लिए वो बना रहे हैं लेकिन माफ कीजिए आज मैं देखता हूँ सेन्टर्स पर सम्पन्न बहनें-भाई या दूसरे जो धनाढय हैं, या और किसी तरह वाले सेवा करते होंगे, चुनी हुई सेवा करते हैं। जिसको हड्डी-हड्डी देने वाली सेवा कहते हैं वो नहीं देखने में आती। और मैंने बाबा को उस आयु में भी येे सारा कार्य करते देखा। क्या फायदा यदि हम उन चर्चाओं को करेंगे और उससे रिज़ल्ट नहीं होगा, जीवन में कोई धारण नहीं करेंगे तो क्या फायदा! बाबा कहता है मैं चक्कर लगाता हूँ, बच्चों के कमरों में जाता हूँ देखता हूँ क्या कर रहे हैं! अरे विश्वास नहीं है, बाबा ऐसे ही कह रहे हैं! मैं वरदान देता हूँ उस टाइम। हाय-हाय तुम वरदान भी नहीं लेना चाहते! ऐसे बदनसीब हो! भगवान के घर में आके, उसके पास खाते-पीते रहते हो। उससे वरदान भी नहीं लेना चाहते, जाग भी नहीं सकते! मुरली भी नहीं सुन सकते! शिव बाबा परमधाम से आता है परमधाम से! उसकी डिसरिस्पेक्ट करते हो, इनस्ल्ट करते हो! कौन है वो, कितनी बड़ी अथॉरिटी है! अक्ल मारी तो नहीं गई। ये कितनी बदनसीबी है।

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