जिसमें नम्रता, धैर्यता और सच्चाई है उनका योग अच्छा लगता

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हम बाबा के बच्चे ईश्वरीय सन्तान, ईश्वरीय फैमिली हैं। अपने को आत्मा समझना, देह के भान से परे रहना है, यह है पढ़ाई। यह भी वन्डरफुल बात है कि हम सब एक के बच्चे हैं। किसी का भी माँ-बाप दूसरा नहीं है। हम सब एक बाप के बच्चे हैं। वैसे लौकिक में कहते हैं एक ब्लड है। फिर भाई-बहन का आपस में प्यार न हो तो क्या कहा जायेगा? रूहानी बच्चे हो, रूहों को कहा है तुम मेरे बच्चे हो। आत्मा फिर कहती है बाबा मैं आपका बच्चा हूँ। बच्चे-बच्चे कहके बाबा ने ब्राह्मण बना दिया। एडॉप्ट करके कहा तुम ब्राह्मण कुल के हो। यह अन्दर से संस्कारों में नशा हो, स्मृति हो। देखा गया है, नुमाशाम के समय किसी को भी योग में नींद नहीं आती है। तो यह नियम भी हमारा पक्का हो, खींच हो। इधर-उधर घूमने के बजाय, संगठन में आकर याद में बैठ जायें। संगठन के योग का सुख बहुत है। इसमें अलेबेले न हों। इस नियम में जो फायदा है, वह बहुत मदद करता है। अमृतवेले भी घड़ी सोने नहीं देगी। दिन में कार्य करते भी डिटैच रहकर काम करेंगे तो थकावट नहीं होगी। थकते वह हैं जिनमें नम्रता, धैर्यता की कमी है। जो नम्रचित्त हैं उनके अनेक सहयोगी बन जाते हैं। जो धैर्यता और प्रेम से काम करते हैं, उन्हें कोई भी काम बड़ा नहीं लगता। उनका योग भी अच्छा होता है। जिसमें नम्रता की कमी है, वह वहाँ भी काम करते हैं, जिनके साथ भी करते हैं वो जल्दी थक जाते हैं। तो दोष किसका? अगर मेरे में नम्रता है, धैर्यता है, सच्चाई है तो अच्छा वातावरण बन जाता है। जो थकावट में काम करते हैं उन्हें योग में भी थकावट लगती है। सच्चाई, स्नेह और सहयोग से काम सहज हो जाता है। जो दिल से काम नहीं करते वो अच्छा काम भी बिगाड़ देते हैं। अच्छा किया हुआ भी बिगाड़ देते हैं। उस समय पता नहीं पड़ेगा पर नुकसान बहुत होगा। वही हाथ सभी अंगुलियां मिलकर लड्डू बना सकती हैं, उसी हाथ से थप्पड़ भी मार देते हैं। हमारे एक हाथ में मुरली हो, दूसरे हाथ में स्वर्ग का गोला। हम दुनिया को स्वर्ग बना रहे हैं। स्वर्ग में रहेंगे पीछे पर संस्कार अभी बनायेंगे। हमारे चेहरे और चलन को देखकर कहें कि ये तो स्वर्ग में रहते हैं। हमारी रॉयल पर्सनैलिटी को देख दूसरे भी पीछे-पीछे आने लगेंगे। हम अपना बैग बैगेज पहले से रवाना कर देते हैं। वहाँ पहुंचेंगे तो मिल जायेगा, साथ में क्यों ले जाऊं। जो संगम पर कर रहे हैं वह भविष्य के लिए कर रहे हैं। उसका उजूरा है सदा सन्तुष्ट। ऐसे नहीं कोई सीट मिले, कोई पोजीशन मिले, वो देवता कैसे बनेंगे! कोई को बहाना बनाने की बड़ी आदत होती है। याद और सेवा में बहाना देने वाले को अधीनता ज़रूर होगी। उन्हें प्रकृति भी साथ नहीं देगी। कोई न कोई कर्मबन्धन निकल आयेगा, जो ऊंचा पुरूषार्थ करने नहीं देगा क्योंकि बहाना बनाने की आदत ने भाग्य बनाने से वंचित कर लिया। उसमें भी सूक्ष्म है ईष्र्या। भले कोई भाषण करे, लेकिन परिवार में मीठी जुबान न हो… तो कौन उन्हें पसन्द करेगा। कई हैं जो बर्तन मांजते भी सबसे बहुत स्नेह भरा सम्बन्ध रखते हैं। तो प्रालब्ध ज्य़ादा किसकी बनेगी? जो कम्पलेन करता है उसका भाग्य क्या होगा? अति सूक्ष्म है, सच्चा पुरूषार्थी न किसी की कम्पलेन करता, न उसकी कोई कम्पलेन करता। हम सब मेहमान हैं, पर दूसरों की मेहमानवाजी करना भी अक्ल का काम है, जिसमें मेरेपन का अभिमान होगा वो मेहमान नहीं है। उसमें ट्रस्टीपन नहीं होगा। तो नुमाशाम के समय ऐसी स्थिति बनाके रखें। जो बच्चा, जो स्टूडेंट अच्छा होता है वो माँ-बाप टीचर की शिक्षा अनुसार चलता है। फिर जीवन भर याद रखता है कि यह मेरी माँ ने सिखाया, यह बाप ने सिखाया है। उनके प्रति अन्दर बहुत प्यार, रिगार्ड रहता है। वह अपने शिक्षक का नाम बाला करता है। सभी के मुख से निकलता है कि यह तो बिल्कुल एक्यूरेट है। तो बाबा हम सबको अपने समान महिमा योग्य बनाना चाहता है।

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