हम अपने इन-चार्ज बनें…

0
43

कुछ विशेष प्राप्त करने के लिए व्यक्ति व्रत रखते हैं, मन्नत मांगते हैं, इसके पीछे उनका उद्देश्य यही होता कि जो रुकावटें, बाधायें, कठिनाइयां हैं, उनसे मुक्त होना, आगे बढऩा, जो प्राप्त करना चाहते हैं उसे गति देना। ये हर वर्ग के लोगों पर लागू होता है वह चाहे साधारण व्यक्ति हो, बिज़नेसमैन हो, प्रोफेशनल हो, चाहे स्टूडेंट हो, सभी अपने-अपने तरीके से आगे बढऩे के लिए इस तरह के नियम व व्रत रखते हैं। इसी कड़ी में साधना के पथ पर चलने वाले भी समय-प्रति-समय अपने को और उच्चता की ओर अग्रसर करने के लिए कठोर साधना, उपासना व दृढ़ संकल्प करते हैं।
कहने का भाव यह है कि जहाँ हम हैं, उससे उच्चता व विकास की ओर आगे बढ़ें। साधना करने वाले जैसे कोई त्योहार आता है, शिवरात्रि, नवरात्रि, जन्माष्टमी तो उसमें वे व्रत रखते हैं ताकि वे सफलता की सिद्धि को प्राप्त कर सकें। स्थूल रूप में कोई सिर्फ जल पर अपना जीवन यापन करते, कोई उपवास करते, कोई नंगे पांव चलते, ऐसे-ऐसे अपने शरीर को कष्ट देते हैं। किंतु ये सब आंशिक रूप से तो ठीक है लेकिन उनसे कोई उनकी कामनायें पूर्ण रूप से अर्जित नहीं होती। जबकि आध्यात्मिक मार्ग में भी ऐसे ही साधक अपने आत्म-गौरव के लिए या उन्नति के लिए कुछ कठोर नियम व सिद्धान्त बनाते हैं। हम कहना ये चाह रहे हैं कि जब हमें आगे बढऩा है आध्यात्मिक रूप से तो आत्मोन्मुख होना बहुत ज़रूरी है। उसके लिए अपने आप को आध्यात्मिक शक्तियों से चार्ज करना है अर्थात् सूक्ष्म शक्तियों को, वैल्यू को केंद्रित कर अपनी सच्चाई और सत्यता की कसौटी पर कसना है। कई बार कोई कहते हैं मैं इंचार्ज हूँ, इसका मतलब ये है कि जिस व्यवस्था को वो निर्देशित व संचालित करता है, उसकी उसे नॉलेज है, समझ है। अगर इंचार्ज शब्द को हम एनालाइज़ करें तो इन+चार्ज। इन माना अंदर, भीतर से अपने आप को चार्ज करना, जो भीतर में मौजूद है उसे एक्टिवेट करना, सशक्त बनाना, सशक्तिकरण करना। उसके लिए उसे इंट्रोवर्ट होना बहुत ज़रूरी है। यानी कि उसका स्वरूप बनना।
आत्मा में मौजूद जो शक्तियां हैं उससे व्यक्ति आज पूर्णत: परिचित नहीं है। उसके कारण वो व्यवहारिक जीवन में अपने आप को कमज़ोर व असहाय महसूस करता है। जब हम इंट्रोवर्नेस होते हैं तो हम अपने आप से अर्थात् अपनी क्षमताओं से रूबरू होते हैं, शक्तियों से रूबरू होते हैं। फिर हम उसपर निरंतर फोकस होते हैं तब हमारा स्वमान जागृत होता है। अर्थात् हममें वो कर गुज़रने की पॉवर व उमंग उत्साह पैदा होता है जिससे हम आत्मिक शक्तियों का व्यवहार में उपयोग व प्रयोग करने की दिशा में प्रेरित होते हैं। माना कि बाह्य प्रभाव व बाह्य फोर्स से लडऩे का एक जज़्बा हमारे अंदर काम करने लगता है।
तो जब हमें ये समय मिला है तो हम साधना के भिन्न-भिन्न मुकाम हासिल करने के लिए अपने आप से एक प्रोग्राम बनायें और उसका दृढ़ता से पालन करें, क्योंकि हम जानते हैं समय नाज़ुक दौर से गुज़र रहा है, उसमें हमें न सिर्फ खुद को सुरक्षित रखना है अपितु दूसरों को भी सुरक्षा प्रदान करना हमारा कत्र्तव्य है। कहने का भाव ये है कि विश्व परिवर्तन के कार्य के लिए परमात्मा ने हमें चुना है, हमें योग्य समझा है तो उस कत्र्तव्य को हमें ईमानदारी से निभाना है। तो साथियों, हमें ज्ञान है और सबसे बड़ी बात, स्वयं परमात्मा का साथ हर पल हमारी मदद के लिए उपलब्ध है। ये बात स्वयं परमात्मा के शब्दों में- क्रमैं हर पल आपके साथ हूँ, कम्बाइंड हूँ, आप अकेले नहीं हो।ञ्ज तो उसका लाभ लेते हुए अपने कत्र्तव्यों का पालन करना हमारे लिए बहुत सहज भी है। सिर्फ हमें अपने अंदर मौजूद स्वमान को सही प्रारूप देकर परमात्मा के कार्य में मददगार बनना है। तो हम स्वयं को न सिर्फ ऊपरी तौर पर इंचार्ज समझें अपितु इन+चार्ज यानी भीतर से चार्ज होकर स्वरूप बनें।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें