आपका संकल्प, बोल और चेहरा ही बाप का साक्षात्कार करायेगा

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जब हम पास विद ऑनर्स हो तब तो धर्मराज की सजाओं से मुक्त हों। धर्मराज बाबा हमारा स्वागत करे। बाबा हमें अपनी भुजाओं में वेलकम करे। बाबा कहे ओ मेरे समान बच्चे! आओ। बाबा के समान की हमें माक्र्स मिलें, यह है इस भट्ठी का पुरुषार्थ।

यह मौन भी है ही विशेष मन का मौन करके अपना मनोबल बढ़ाने के लिए, इसके लिए हरेक को गहराई से अपने आपमें चेक करना है कि हमारे मन में कहाँ तक शुद्ध संकल्प चलते हैं? कहाँ तक हम मन का मालिक राजा बन, मन वजीर को बाकायदे शुद्ध संकल्पों में, मनन चिंतन में रखते हैं? या मैं-मैं के देह अभिमान में व्यर्थ संकल्प चलते हैं? स्व के बदले पर को(दूसरे को) देखते-सोचते, संकल्प करते या ज्ञान सागर बाप के ज्ञान के खज़ाने का मनन करते हैं? मन के संकल्प सर्व प्राप्तियों में मगन रहते हैं? सर्व प्राप्तियों के खज़ानों को पाकर अपार खुशियों में रहते हैं? मन में सकल्प पॉजि़टिव चलते या निगेटिव चलते? तो विशेष यह भी है खास इसी बात की चेकिंग करने की। हर प्रकार के निगेटिव थॉट्स को परिवर्तन कर पॉजि़टिव सोचो। जितना-जितना पॉजि़टिव सोचेंगे उतना मन की शुद्धि होती जायेगी, एकाग्रता बढ़ती जायेगी। पॉजि़टिव में भी स्व का चिंतन विशेष करना है। पर को देखने के बदली स्व को देखो। यह कभी नहीं सोचो कि मैं सेवाधारी हूँ, परन्तु मैं ईश्वरीय सेवाधारी हूँ, तो हमारा हर संकल्प, हर बोल, हर कदम सेवा में हैं या ईश्वरीय सेवा में हैं? यदि मैं सेवा में हूँ तो भी कहीं देह अभिमान या मैं पन आ जाता है। लेकिन मैं हूँ ही ईश्वरीय सेवा पर तो मेरा जो भी खाता है वह बाबा की दरबार में जमा है। तो हर एक अपना ईश्वरीय खाता चेक करो।
हम सभी का लक्ष्य है कि हमें बाप को प्रत्यक्ष करना है। तो बाप को प्रत्यक्ष करने के लिए हमें स्वयं में क्या धारणा करनी है? कई बार बाबा ने मुरली में कहा है तुम्हारा संकल्प, बोल, तुम्हारा चेहरा ही बाप का साक्षात्कार करायेगा। यह बहुत बड़ी जि़म्मेदारी बाबा ने हम सबको दी है। तो खुद को देखो कि मैं बाप समान सम्पन्न बना हूँ? बाप समान सम्पन्न बनना माना ही सर्व विघ्नों से ऊपर निर्विघ्न अवस्था बनाना। सम्पन्न बनने का अर्थ है ही सर्व कमियों कमज़ोरियों को समाप्त करना। जैसे पढ़ाई में परीक्षा के दिन होते तो होशियार स्टूडेंट का लक्ष्य होता कि मुझे फस्र्ट डिवीजन में पास होना है। पास विद ऑनर बनना है। जब हम पास विद ऑनर्स हों तब तो धर्मराज की सजाओं से मुक्त हों। धर्मराज बाबा हमारा स्वागत करे। बाबा हमें अपनी भुजाओं में वेलकम करे। बाबा कहे ओ मेरे समान बच्चे! आओ। बाबा के समान की हमें माक्र्स मिलें, यह है इस भी का पुरुषार्थ। भी में कमज़ोरी का चिंतन नहीं करो। यह-यह कमज़ोरी है, उसे सोचकर एक बार बुद्धि से निकाल दो। चाहे उसे लिखकर निकालो, चाहे बुद्धि में दृढ़ संकल्प करके निकालो लेकिन यह चिंतन करो कि हमें ऐसी ऊंची स्थिति बनानी है। अपने आपको इतनी ऊंची दृष्टि से देखो कि बरोबर हम ऊपर में बाबा के साथ फरिश्तों की दुनिया में उड़ रहे हैं। नीचेे में आकर, व्यक्तियों को देख व्यक्तित्व में अपना समय, शक्ति खर्च नहीं करो। यह बहुत बड़ी सूक्ष्म स्थिति बनाने की चैलेंज बाबा ने हमें दी है। कोई भी बात व्यक्त में आकर करेंगे तो जैसे पत्थर तोड़ेंगे लेकिन ऊपर से उड़ जाओ तो सभी बातें सहज ही क्रॉस को जायेंगी माना निवारण हो जायेंगी। तो जितना भी टाइम साइलेंस में बैठो उतना समय गहराई से अनुभव करो कि हम इस देह से परे उड़ गये हैं। उडऩा माना विदेही बन फरिश्तों की दुनिया में पहुंच जाना। जितना लाइट बन लाइट की दुनिया में, फरिश्ते स्थिति में रहने का अभ्यास करेंगे उतना ऑटोमेटिक मैंपन निकल जायेगा। और जितना यह अभ्यास करेंगे उतना जो भी कोई कमज़ोरी होगी, अपवित्रता के संस्कार आदि जो भी कुछ हैं वह सब खत्म हो जायेंगे।

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