मैं आत्मा अजर, अमर, अविनाशी हूँ तो भविष्य के लिए कोई प्रकार का डर नहीं रहता। क्यों? क्योंकि हमें मालूम है कि आत्मा पर न पानी का, न आग का कुछ भी असर हो सकता, कोई चाकू चलाये कुछ भी करे परंतु आत्मा मैं अजर, अमर, अविनाशी हूँ। मैं भृकुटि के बीच में विराजमान हूँ।
आज के संसार की हालत देखकर अवश्य ही ये संकल्प आता होगा कि ये कलियुग चल रहा है। परंतु न ये कलियुग है बल्कि कलियुग की अंतिम घडिय़ों को हम देख रहे हैं। हर घर में झगड़ा चल रहा, और विश्व भर में भी, पूरे विश्व के कोने में झगड़े चल रहे हैं। प्रकृति जिसने हमें इतना सहयोग दिया है, पालना दी है, इतनी सेवा दी है, आज प्रकृति के जो भी तत्व हैं आज जैसे ही मनुष्यों के साथ युद्ध चल रही है। मनुष्यात्मा की स्थिति को देखकर ये प्रश्न आता है कि अभी यदि ये बातें बढ़ती जा रही हैं तो आगे चलकर कैसे इन बातों को मैं सहन कर सकेंगी, अथवा कैसे इन समस्याओं को पार कर सकेंगे! तो परमपिता परमात्मा शिव के महावाक्य ये हैं कि यदि हम अपने अन्दर की स्थिति को ठीक करके रखते हैं, परमपिता परमात्मा के साथ प्यार का नाता जोड़कर रखते हैं तो जो भी बातें सामने आयेंगी तो अवश्य ही ऊपर के द्वारा हमें ऐसी शक्ति मिलेगी जिससे हम हर बात सहज पार कर सकेंगे। आपने देखा होगा कि आज के संसार में बहुत कम लोग होंगे जिन्हों को खुद की पहचान होगी। बाहर की पहचान मैं नहीं बता रही। अन्दर की, खुद की पहचान कि आखिर मैं कौन हूँ? या ये चमड़ी है, मेरी पहचान देती है, रंग-रूप, रूपया या इन सब बातों के आधार से ही मेरी पहचान होगी या कुछ अन्दर चैतन्य शक्ति आत्मा हूँ। हम जब अपनी पहचान देते हैं किसी को तो टोटल ही अपनी बाहर की पहचान देते हैं। परंतु अन्दर की बातों से भी पहचान हो सकती है। वो ही सही पहचान है। क्योंकि आज मेरा रूप कुछ भी हो अचानक कुछ भी हो सकता। और अचानक कुछ न भी हो जैसे दिन बीतते जायेंगे, वर्ष बीतते जायेंगे इस रूप में अन्तर बहुत सारा आता रहेगा। कहने का मतलब तो ये कि रूप तो हमारी पहचान नहीं देता। बैंक बैलेंस, हमारा रूपया भी हमारी पहचान नहीं दे सकता कि मैं किस प्रकार का व्यक्ति हूँ? परंतु जब हम किसी के साथ कार्य-व्यवहार में आते हैं तब हमारे चलन से, हमारे बोल-चाल से, हमारे व्यवहार से जो हमारी आन्तरिक पहचान है वो खुद ही प्रकट हो जाती है। परंतु खुद अपने आपको किस तरह से पहचान सकती हूँ? बड़ी शांति में कुछ क्षण, आत्मा को जानने के लिए कुछ अभ्यास करते हैं और कुछ स्टडी भी करते हैं। उसमें भी मुझे तो जिन बातों की पहचान मिली है राजयोग के द्वारा, वो इस तरह से इतनी सुन्दर पहचान मिली है जिससे आत्मा बिल्कुल अपने आपको जानकर, अपने आदि स्वरूप को पहचानकर, वो जो अपने असली गुण हैं उसका अनुभव चल रहा है। तो आत्मा क्या है? आत्मा है ज्योति स्वरूप। आत्मा का स्वरूप क्या है? आत्मा का स्वरूप है शांति, प्रेम, सत्यता, पवित्रता और आनंद। ये हैं पाँच आत्मा के अनादि , अविनाशी गुण। जब हम खुद को भूल जाते हैं तो जो आन्तरिक स्थिति हमारी है, वो जो हमारा आन्तरिक स्वरूप है वो हमसे दूर हो जाता। हम वहाँ तक पहुंच नहीं पाते हैं। तो उसके नतीजे में बाहर जाते हैं, ठोकरे खाते हैं फिर सोचते हैं कि कोई ऐसी जगह हो जहाँ शांति मिले। कोई ऐसा व्यक्ति हो जहाँ से मुझे सुख मिले। परंतु ज्ञान के आधार से और योग अभ्यास के आधार से हमें ये पहचान होती रहती और अनुभव भी होता कि ये सब बाहर की वस्तुएं नहीं हैं ये है आन्तरिक आत्मा के निज गुण। जब हम साइलेंस की यात्रा करते हैं, शांति में अपने आपको देखते हैं वो जो बाहर की बातें हैं मटेरियलिज़्म की(भौतिकवाद), कंज्य़ूमरिज़्म(उपभोक्तावाद) की उन्हों को बाहर रख के हम खुद अपने आपसे वार्तालाप करके, रूहरिहान करके खुद को जानने का पुरूषार्थ करते। तो हमें अपने एक-एक गुण का अनुभव होता जाता। जब इस आधार पर हमें ये पहचान होती कि मैं आत्मा अजर, अमर, अविनाशी हूँ तो भविष्य के लिए कोई प्रकार का डर नहीं रहता। क्यों? क्योंकि हमें मालूम है कि आत्मा पर न पानी का, न आग का कुछ भी असर हो सकता, कोई चाकू चलाये कुछ भी करे परंतु आत्मा मैं अजर, अमर, अविनाशी हूँ। मैं भृकुटि के बीच में विराजमान हूँ। और शरीर को कुछ भी कष्ट होता, हाँ, बेशक आत्मा को तो अनुभव होता ही है परंतु यदि हम आत्म स्मृति का अभ्यास करते तो आत्म स्मृति द्वारा जो हम शरीर से डिटैच होंगे, न्यारेपन की स्थिति में हम अपने आपको मजबूत, शक्तिशाली बनाते हैं उससे कई बातों का हो सकता बीमारी आये, कठिन समय आये लेकिन मुझे ये याद रखना है कि मैं कौन हूँ और मेरे अन्दर किस प्रकार से खज़ाना जमा किया हुआ है। सिर्फ मुझे अपने साथ थोड़ा समय बिता करके खज़ाने को देखना होगा। आज के समय और भविष्य के बदलते समय में ये आत्म स्मृति का अभ्यास करना बिल्कुल एक फाउंडेशन बन जाता। भारत में या भारत से बाहर भी 85 प्रतिशत लोग आज तक भी कोई न कोई फेथ में मान्यता रखते हैं। वो भारत में तो विशेष हम देवी-देवताओं की भी पूजा करते हैं परंतु साथ ही साथ एक निराकार ज्योति स्वरूप परमपिता परमात्मा शिव कल्याणकारी जिसको हम इसकी प्रतिमा हम शिवलिंग के रूप में पूजा करते हैं। यदि हमें उस परम आत्मा के साथ शिवलिंग तो उसकी प्रतिमा है उसकी हम पूजा करते हैं। परंतु वास्तव में तो परमात्मा ज्योति स्वरूप, चैतन्य स्वरूप है। जैसे आत्मा का स्वरूप अति सूक्ष्म ज्योति स्वरूप उसी तरह से परमात्मा का रूप भी वो ही परंतु गुण बेअंत। परमात्मा के लिए हम कहेंगे वो ज्ञान का सागर, शांति का सागर, प्यार का सागर, पतित पावन, भिन्न भिन्न प्रकार से हम उसकी उपमा करते हैं। परंतु सर्व गुणों का सागर सिर्फ वो एक परम पिता परमात्मा है।जिस तरह से हम अपने मात पिता से , सखा से जो भी मित्र संबंधी हैं उनसे सम्बन्ध रखते हैं इसी तरह से जब परम पिता परमात्मा के साथ हमारा अनादि, अविनाशी सम्बन्ध है। उसे फिर से जोड़ कर उस सम्बन्ध का अनुभव करते हैं। उस समय परमात्मा हमारी माता किस तरह से है, परमात्मा हमारा पिता किस तरह से है, माता के रूप में अत्यंत प्यार, और रहम से हर प्रकार की आत्मा को परमात्मा स्वीकार करते हैं। और फिर परमपिता के सम्बन्ध से परमात्मा के पास एक बहुत विशेष खज़ाना है जो हमे वर्से के रूप में देते हैं। और वो है खुशी का खज़ाना। तो एक एक सम्बन्ध माता, पिता,सखा, स्वामी, शिक्षक, सतगुरू यदि हम विशेष इन सम्बन्धों के आधार से हर प्रेम से परमपिता परमात्मा के साथ अपना बहुत आंतरिक, साइलेन्स में वो रूहरिहान करते हैं तो हमें लगता है कि कोई भी समय, जिस भी समय मेरा संकल्प उस एक की तरफ गया तो उस द्वारा हमें हर प्रकार से प्राप्ति होगी। परमात्मा हमारा शिक्षक भी है इस तरह से मुझे अपनी जीवन चलानी चाहिए। और साथ-साथ परमात्मा मेरा रक्षक भी है। तो हर घड़ी परमात्मा के साथ डायरेक्ट कनेक् शन जोड़ कर, मनमनाभव बुद्धि के योग की तार जोड़कर हमें हर प्रकार से परमात्मा के गुणों द्वारा, परमात्मा की शक्तियों द्वारा आत्मा की रक्षा होती ही रहेगी। और सदा वो हमारे साथ में ही है। और जिस तरह से परमात्मा शिव को कल्याणकारी हम मानते हैं उसी तरह से ये जो सृष्टि चक्र का खेल है यदि मुझे जितना ही परमात्मा में विश्वास है उतना ही यदि हम इस सृष्टि चक्र अथवा इस बेहद के नाटक अथवा ड्रामा को हम यही समझें कि ड्रामा में जो सीन आती है मेरे लिए कुछ न कुछ कल्याण उसमें समाया हुआ है। व न केवल मेरे लिए परंतु पूरे विश्व के लिए जो कुछ भी बात सामने आ रही है कुछ कारण होगा इसके पीछे, परंतु कुछ भी कारण हो यदि मुझे परमात्मा में विश्वास है, इतना ही मुझे ड्रामा में विश्वास है कि जो घड़ी बितती है। मानवता के हिसाब से उसमें कुछ न कुछ कल्याण समाया हुआ है। और कुछ न कुछ तो क्या कहें, परंतु सचमुच कदम-कदम पर ड्रामा मेरा साथी है, ड्रामा मेरा रक्षक है, ड्रामा मेरे लिए कल्याणकारी है। यदि हम ये भावना रखते हैं तो आने वाले समय में हम अपनी स्थिति को बिल्कुल स्ििथरियम, बिल्कुल अचल-अडोल बना कर रख सकते हैं। जिसमें मुझे कोई डर का संकल्प न आये, परंतु साथ ही साथ औरों के कुछ निगेटिव फीलिंग्स या कुछ वायबे्रशन्स हों परमात्मा की शक्ति द्वारा, उसके साथ द्वारा ये शुभ वायब्रेशन्स ऐसे शक्तिशाली हों जो उन आत्माओं को भी सहयोग मिले, और उन्हों को भी तो अपने लिए भी अभी तैयारी करनी होती परंतु अपने परिवार के लिए और साथ साथ समाज के लिए भी, विश्व के लिए ये तीन बातों का कदम कदम पर याद करके, साथ लेकर चलना बहुत ही आवश्यक है। इससे हम हर सीन को पार कर सकेंगे, और हमें विश्वास है कि कलियुग जा रहा है। तो अवश्य सतयुग आने वाला है। ज्ञान सूर्य उदय हो चुका और अभी तो वो दिन का समय, सोझरा का समय, प्रकाश का समय सतयुग का समय जल्दी में जल्दी आ ही जाये।