परमात्म ऊर्जा

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आजकल के कहलाने वाले महात्माओं ने तो आप महान आत्माओं की कॉपी की है। तो ऐसी श्रेष्ठ आत्मायें कहाँ भी, किसी रीति झुक नहीं सकती। वे झुकाने वाले हैं, न कि झुकने वाले। कैसा भी माया का फोर्स हो लेकिन झुक नहीं सकते। ऐसे माया को सदा झुकाने वाले बने हो कि कहाँ-कहाँ झुक करके भी देखते हो? जब अभी से ही सदा झुकाने की स्थिति में स्थित रहेंगे, ऐसे श्रेष्ठ संस्कार अपने में भरेंगे तब तो ऐसे हाइएस्ट पद को प्राप्त करेंगे जो सतयुग में प्रजा स्वमान से झुकेगी और द्वापर में भिखारी हो झुकेंगे। आप लोगों के यादगारों के आगे भक्त भी झुकते रहते हैं ना। अगर यहाँ अभी माया के आगे झुकने के संस्कार समाप्त न किये, थोड़े भी झुकने के संस्कार रह गये तो फिर झुकने वाले झुकते रहेंगे और झुकाने वालों के आगे सदैव झुकते रहेंगे। लक्ष्य क्या रखा है, झुकने का व झुकाने का? जो अपनी ही रची हुई परिस्थिति के आगे झुक जाते हैं- उनको हाइएस्ट कहेंगे? जब तक हाइएस्ट नहीं बने हो तब तक होलीएस्ट भी नहीं बन सकते हो। जैसे आपके भविष्य यादगारों का गायन है सम्पूर्ण निर्विकारी। तो इसको ही होलीएस्ट कहा जाता है। सम्पूर्ण निर्विकारी अर्थात् किसी भी परसेन्टेज में कोई भी विकार तरफ आकर्षण न जाए व उनके वशीभूत न हो। अगर स्वप्न में भी किसी भी प्रकार विकार के वश किसी भी परसेन्टेज में होते हो तो सम्पूर्ण निर्विकारी कहेंगे? अगर स्वप्नदोष भी है व संकल्प में भी विकार के वशीभूत हैं तो कहेंगे विकारों से परे नहीं हुए हैं। ऐसे सम्पूर्ण पवित्र व निर्विकारी अपने को बना रहे हो व बन गये हो? जिस समय लास्ट बिगुल बजेगा उस समय बनेंगे? अगर कोई बहुत समय से ऐसी स्थिति में स्थित नहीं रहता है तो ऐसी आत्माओं का फिर गायन भी अल्पकाल का ही होता है। ऐसे नहीं समझना कि लास्ट में फास्ट जाकर इसी स्थिति को पा लेंगे। लेकिन नहीं। बहुत समय जो गायन है- उसको भी स्मृति में रखते हुए अपनी स्थिति को होलीएस्ट और हाइएस्ट बनाओ। कोई भी संकल्प व कर्म करते हो तो पहले चेक करो कि जैसा ऊंचा नाम है वैसा ऊंचा काम है? अगर नाम ऊंचा और काम नीचा तो क्या होगा? अपने नाम को बदनाम करते हो? तो ऐसे कोई भी काम नहीं हो – यह लक्ष्य रखकर ऐसे लक्षण अपने में धारण करो। जैसे दूसरे लोगों को समझाते हो कि अगर ज्ञान के विरूद्ध कोई भी चीज़ स्वीकार करते हो तो ज्ञानी नहीं अज्ञानी कहलाये जायेंगे। अगर एक बार भी कोई नियम को पूरी रीति से पालन नहीं करते हैं तो कहते हो ज्ञान के विरूद्ध किया। तो अपने आप से भी ऐसे ही पूछो कि अगर कोई भी साधारण संकल्प करते हैं तो क्या हाइएस्ट कहा जायेगा? तो संकल्प भी साधारण न हो। जब संकल्प श्रेष्ठ हो जायेंगे तो बोल और कर्म ऑटोमेटिकली श्रेष्ठ हो जायेंगे। ऐसे अपने को होलीएस्ट और हाइएस्ट, सम्पूर्ण निर्विकारी बनाओ। विकार का नाम निशान न हो।

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