मुख पृष्ठदादी जीदादी प्रकाशमणि जीहलचल को समाप्त करने का साधन है - बाबा से बातें करना

हलचल को समाप्त करने का साधन है – बाबा से बातें करना

दूसरों को संतुष्ट करना – यह बहुत बड़ा पुण्य है, इससे हमारी आत्मा को बल मिलता है। किसी के गुणों पर मोहित नहीं होना है। सदा बाबा को आगे रखो। बाबा को आधार बनाओ तो किसी में भी फँसेंगे नहीं।

संगठन को एकमत बनाने का आधार है फेथ। जब आपस में एक-दो में फेथ रखते हैं तो सहयोग अवश्य मिलता है। आपका कार्य सो मेरा कार्य। फेथ के पीछे मैं और तू, तेरा और मेरा सब समाप्त हो जाता है। फेथ रहे तो कभी भी अभिमान नहीं आयेगा। आपकी महिमा सो मेरी महिमा। आपकी बड़ाई सो मेरी बड़ाई इसलिए हम अपने समान साथी को इतना रिगार्ड दें जो वह आपेही हमें दें, कहना न पड़े यह भी मर्यादा है।
हरेक की विशेषताओं को देखना है। हरेक में बाबा ने कोई न कोई खूबी ज़रूर भर दी है। बड़ी बड़ाई बाबा की है, मेरी नहीं। सदैव अपने सामने लक्ष्य हो बाबा। बाबा ने हमें निमित्त बनाया है।
लॉ उठाना, टोन्ट कसना, टोक देना, यह मेरा काम नहीं है। मैं कभी भी अपने हाथ में लॉ नहीं उठा सकती। हमें बाबा जो सेवा देता है उसे प्राण देकर करनी है, यह हमारा लक्ष्य हो। फेथ को तोडऩे वाला कांटा है रीस। तो मुझे आत्माओं से रीस नहीं करनी है। रीस करो तो बाबा से क्योंकि हमें बाप समान बनना है।
ईष्र्या करना मंथरा का काम है। यह वायदा करो कि मैं मंथरा नहीं बनूँगी। ईष्र्या अथवा विरोध भावना दूसरे की निंदा करायेगा। ईष्र्या करना यह रावण की मत है। बाप की नहीं।
हरेक की बात का भाव समझना है, स्वभाव को नहीं देखना है। अगर किसी की गलती दिखाई भी देती है तो बाबा ने हमें समाने की शक्ति भी दी है। कभी एक की बात दूसरे से वर्णन नहीं करना है। भल सुनो, लेकिन उसे वहीं पर सुनी-अनसुनी कर दो। भूल को अन्दर रखने से वायब्रेशन खराब होता है। दूसरे की भूल को अपनी भूल समझो।
अपनी स्थिति को सदैव सुखमय रखो। कभी भी तंग दिल, उदास दिल नहीं बनना है। कोई झूठा अपमान करेगा कोई सच्चा। दुनिया की टक्करें अनेक आयेंगी लेकिन हमें उदास नहीं होना है। पत्थर भी पानी की लकीरें खा-खाकर पूज्यनीय बनता है। तो हमें भी सबकुछ सहन करके चलना है। हलचल को समाप्त करने का साधन है – बाबा से बातें करना। बाबा के पास जाओ तो बाबा आपेही कदमों में बल भर देगा।
मुझे किसी भी आत्मा पर डिपेन्ड नहीं करना है। आत्मा पर डिपेन्ड करने से बैलेन्स बिगड़ जाता है। बाबा पर डिपेन्ड करो। एक-दो का आधार लेकर चलना बिल्कुल गलत है। मुझे तो साथी चाहिए, सहयोग चाहिए… नहीं। मेरा साथी एक बाबा है। मैं बाबा से ही सहयोग लूँ।
दूसरों को संतुष्ट करना – यह बहुत बड़ा पुण्य है, इससे हमारी आत्मा को बल मिलता है। किसी के गुणों पर मोहित नहीं होना है। सदा बाबा को आगे रखो। बाबा को आधार बनाओ तो किसी में भी फँसेंगे नहीं।
हमारा संसार बाबा है इसलिए कभी भी अन्दर में यह भावना नहीं आनी चाहिए, यह मेरा स्टूडेंट, यह तेरा। किसी भी प्रकार का स्वार्थ न हो। स्वार्थ अधीन बना देता है। किसी देहधारी में स्नेह जाता है माना स्वार्थ है। इस स्वार्थ से ईश्वरीय मर्यादाओं का उल्लंघन होता है इसलिए साकार बाबा ने हमेशा हमें स्नेह दिया लेकिन स्वार्थ का स्नेह नहीं दिया। तो जैसे हमारा बाबा नि:स्वार्थी था वैसे नि:स्वार्थी बनो। तो सबसे न्यारे और प्यारे बन जायेंगे।
ऐसा कभी नहीं सोचना कि मेरा कोई सहारा नहीं है। लेकिन विघ्नों से घबराओ नहीं। विघ्न भल कितना भी बड़ा हो लेकिन अपने संकल्प से कभी भी बड़ा नहीं करो। जड़ को समझकर उसके बीज को काटो।
माया से डोन्टकेयर करना ठीक है, आपस में नहीं। जो आपस में डोन्ट केयर करते उनकी जबान पर लगाम नहीं रहता। जो आता वह बोल देते, यह स्वभाव भी डिससर्विस करता है।

RELATED ARTICLES

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

Most Popular

Recent Comments