कम्पेरिज़न में आप सोचो कि इससे पहले मेरी जीवन क्या थी! मीठी जीवन कौन सी? हम ये नहीं कहेंगे कि ये हमारी त्याग की जीवन है। हम ये कहेंगे कि ये हमारे बहुत भाग्य की जीवन है। तो भाग्य को देखते चलो और और बढ़ाते चलो।
जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि जब ज्ञान की पहचान होती उसमें भी खास बाबा की पहचान होती, और योग लगना शुरू होता तो योग के द्वारा बाबा शुरू में बहुत सुन्दर अनुभव कराते हैं मेरा तो अनुभव ये कहता। क्योंकि बाबा देखता है कि बिछड़ा हुआ बच्चा मेरे पास लौट के आया है तो बाबा खूब-खूब प्यार देते हैं। और फिर और आगे चलते तो बाबा की बहुत गहरी बातें समझ में आने लगती। तो जैसे-जैसे बाबा से सम्बन्ध जुटता जाता तो और गहरी प्राप्ति होती जाती। सहज वैराग्य वृत्ति उत्पन्न हो जाती…
खान-पान का परिवर्तन, रहन-सहन का परिवर्तन कितना सहज हो गया। मुश्किल नहीं लगा। जिन्हों को मुश्किल अनुभव होता उन्हों का फिर युद्ध शुरू में ही हो जाता तो कोई चलते और कोई नहीं चलते। परंतु जिन्हों को बाबा के प्यार का अनुभव होता तो बहुत फास्ट परिवर्तन होता। नहीं तो कोई सोच नहीं सकता था कि हम साढ़े तीन बजे उठकर परमात्मा की याद में बैठेंगे। और अभी हम सोचते हैं कि ये सहज-सहज जो परिवर्तन हुआ किस आधार से हुआ! वो हुआ बाबा के प्यार की शक्ति के द्वारा। तो मुझे विश्वास है और भी बातों के जो परिवर्तन की ज़रूरत है, आप जितना-जितना बाबा के साथ सम्बन्ध जोड़ते जायेंगे, बाबा को साथी बनाकर रखेंगे उतना-उतना जो बात आप चाहते हो कि ये बात मेरे से छूट जाये तो वो छूट जायेगी।
हम यही संकल्प करते कि ये छोडऩा है तो भारी लगता परंतु ये हम सोचते हैं कि बाबा से मुझे और क्या लेने की ज़रूरत है, वो आप बाबा से लेते जाओ। वैसे भी बाबा तो बिल्कुल बाहें पसारे खड़े हैं, सबकुछ देने के लिए। परंतु कई बार हम खुद ही इतना देही अभिमानी स्थिति नहीं बनाते हैं तो हमें इतनी प्राप्ति नहीं होती। परंतु जब हम जो बातें बाबा ने कहा इन बातों से दूर रहो तो वो जो हमारी स्थिति होती, बाबा से प्यार और शक्ति और सत्यता लेने की और जो ज़रूरत है आपको सहन शक्ति की, ज़रूरत है परख शक्ति की, जो भी ज़रूरत है बाबा आपको इतना भरपूर करके देते हैं जो फिर सहज-सहज जो बात छोडऩे की है वो छूट जाती। तो वैराग्य वृत्ति कोई मुश्किल बात नहीं है। प्राप्ति का अनुभव करो, प्राप्ति करते चलो तो वो और बातें सब फीकी लगेंगी। बच्चे को कोई बहुत अच्छी मीठी चीज़ दो और कोई कड़वी दो तो वो क्या पसंद करेगा? कड़वी चीज़ तो कोई भी पसंद नहीं करता है। दवाई के समान कभी डॉक्टर ने दे दिया वो ले लिया वो अलग बात है। परंतु कोई पसंद की तो कोई बात नहीं होती वो।
तो जब हमें इतना मीठा, सैक्रिन से भी मीठा बाबा मिला और जो आप चाहो सुख चाहो, शांति चाहो, शक्ति चाहो, सत्यता चाहो, बाबा के भण्डारे से, बाबा का भण्डारा बिल्कुल खुला है लेते चलो, लेते चलो। देने वाला थकता नहीं है जबकि बात है लेने वाले थक जाते हैं। अभी भी आप कभी बैठकर गिनती करो, लिखो, लिस्ट बनाओ कि कितनी बाबा से प्राप्ति हुई है और उसके कम्पेरिज़न में आप सोचो कि इससे पहले मेरी जीवन क्या थी! मीठी जीवन कौन सी? हम ये नहीं कहेंगे कि ये हमारी त्याग की जीवन है। हम ये कहेंगे कि ये हमारे बहुत भाग्य की जीवन है। तो भाग्य को देखते चलो और और बढ़ाते चलो। औरों को बांटते चलो तो बस और बातें ऐसे लगेंगी बिल्कुल कि हमारे काम की चीज़ कुछ नहीं है।
कभी आप अपने से पूछो कि आज की स्थिति में मुझे और क्या चाहिए! और मुझे तो लगता है कि आपकी लिस्ट में कुछ नहीं आयेगा। और क्या चाहिए? जबकि सबकुछ मिल ही रहा, बाबा दे ही रहा। लेने की देर है बस। लेकिन आप ये भी कॉन्ट्रास्ट देखो कि पहले हमारी स्थिति क्या थी, मन में क्या संकल्प चलते थे, क्या खोज चलती थी, इच्छाएं किस प्रकार की थीं, ज़रूरतें भी कुछ होती थीं। तन की हालत क्या थी और धन का तो ये देखा हुआ है कि जिसके पास जितना धन होता कभी भी वो सन्तुष्टता नहीं होती। हमेशा यही संकल्प आता कि इसको बढ़ायें कैसे, मल्टीप्लाय कैसे हो! कभी भी वो सन्तुष्ट नहीं होते, चाहे कितना भी हो। परंतु बाबा के बच्चे तन भी जो है, बाबा चला रहा, शुक्रिया बाबा। तन भी जो है फिर भी इससे सेवा होती रही है और आगे भी होती रहेगी। तो भी बाबा को थैंक्स देते। धन जितना भी है बस आत्मा सन्तुष्ट। बाबा ने एक बारी दादी जानकी को कहा था कि आपके पास इतना होगा जो ज़रूरत के अनुसार ऐसे भी कभी नहीं होगा जो आप सोचेंगे कि धन कम हो गया या कमी है धन की, नहीं। परंतु इतना भी नहीं सोचेेंगे कि बहुत ज्य़ादा अभी रखा हुआ है, अभी इसका क्या किया जाये। हमेशा इतना होगा जितनी ज़रूरत है। लास्ट तक भी बाबा का वो ही वरदान काम आता रहा।