सबसे पहले स्वयं के भीतर रामराज्य लाना जरूरी – जगद्गुरु स्वामी यतींद्रानंद महाराज
– अखिल भारतीय श्रीमद भगवद गीता महासम्मेलन का शुभारम्भ
– ब्रह्माकुमारीज के ओम शांति रिट्रीट सेंटर में हुआ आयोजन
– 2000 से भी अधिक लोग कार्यक्रम में हुए सम्मिलित
भोरा कलां, गुरुग्राम,हरियाणा:
ब्रह्माकुमारीज के भोराकलां स्थित ओम शांति रिट्रीट में अखिल भारतीय भगवद्गीता महासम्मेलन के दो दिवसीय कार्यक्रम का शुभारम्भ हुआ। दादी प्रकाशमणी सभागार में आयोजित कार्यक्रम में देश के अनेक संत महात्माओं ने अपने विचार व्यक्त किए। दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम का उद्घाटन हुआ।
कार्यक्रम में बोलते हुए रुड़की से जगद्गुरु स्वामी यतींद्रानंद महाराज जी ने अपने उद्बोधन में कहा कि इंद्रियों के मार्ग सब विषयों तक जाते हैं, परमात्मा तक नहीं। जब हम स्वयं के अंदर जाकर, स्वयं को पाते हैं, तब परमात्मा तक पहुंचते हैं। आत्म चिंतन ही परमात्मा तक पहुंचने का सबसे सरल मार्ग है। ब्रह्माकुमारी बहनें 140 देशों में उसी चिंतन को जगा रही हैं। सबसे पहले रामराज्य हमें स्वयं के भीतर लाना है। हम किसी दूसरे को नहीं बदल सकते सिवाय स्वयं के।
अयोध्या से पधारे जगद्गुरु ओंकारानंद जी महाराज जी ने कहा कि निराकार का अर्थ अनंत से है। इस सृष्टि का कण-कण परमात्मा का सृजन है। इसका अर्थ ये नहीं कि परमात्मा कण-कण में है। परमात्मा भक्तों की भावना में है। उन्होंने कहा कि ब्रह्माकुमारी बहनों के साथ आज सभी मिलकर रामराज्य की नींव रखने को उत्सुक हैं।
– भारत सदा ही आध्यात्मिक चिंतन की भूमि रही
महामंडलेश्वर स्वामी अखिलेश्वरानंद जी ने कहा कि रामराज्य की संकल्पना भारत में ही की जा सकती है। क्योंकि भारत आध्यात्मिक चिंतन की भूमि है। किसी भी अनुष्ठान के बिना बल नहीं मिलता। उन्होंने कहा कि इस पवित्र मंच से हम सभी आज रामराज्य के पुनर्स्थापना के लिए संकल्पित हो रहे हैं।
– मनोविकारों से मुक्त होना ही रामराज्य की सच्ची संकल्पना है
अयोध्या से पीठाधीश्वर जन्मेजय शरण महाराज जी ने कहा कि एक महान संकल्प ही जीवन में सफलता का संचार करता है। मनोविकारों से मुक्त होना ही रामराज्य की सच्ची संकल्पना है। परमात्मा शिव ही पावनता के सागर हैं। वो ही मनुष्य आत्माओं को विकारों से मुक्त कर सकते हैं।
कटनी से आए आचार्य परमानंद जी ने कहा कि मैं कौन हूं? इसको जानने से ही रामराज्य स्थापन होगा। इसी से ही सब प्रश्नों का हल होगा। ब्रह्माकुमारी बहनें ही वास्तव में सच्ची-सच्ची महिषासुर मर्दिनी हैं।
जबलपुर से डॉ. गिरजानंद सरस्वती ने कहा कि चरित्र में सुधार से ही रामराज्य आयेगा। मन की निर्मलता ही श्रेष्ठ चरित्र का निर्माण करती है।
अयोध्या से आए आचार्य चंद्रांशु जी ने कहा कि रामराज्य की तीव्र इच्छा ने ही मुझे आज इस पवित्र आयोजन में सम्मिलित किया।
– निराकार शिव परमात्मा द्वारा ही रामराज्य की पुनर्स्थापना
ब्रह्माकुमारीज के अतिरिक्त सचिव राजयोगी बृजमोहन ने कहा कि रामराज्य केवल एक राजाराम के समय नहीं बल्कि सतयुग और त्रेता दो युगों तक ही भारत में था। रामराज्य सुख-शांति सम्पन्न राज्य की एक संकल्पना है। चरित्र की पावनता ही रामराज्य का प्रतीक है। सत्य, अहिंसा के द्वारा ही रामराज्य सम्भव है। रामराज्य की स्थापना निराकार शिव परमात्मा के द्वारा ही की जाती है। क्योंकि परमात्मा शिव ही हम सब आत्मा रूपी सीताओं के राम हैं।
ओम शांति रिट्रीट सेंटर की निदेशिका राजयोगिनी आशा दीदी ने कहा कि परमात्मा को नाम रूप से न्यारा कहना सबसे बड़ी भूल है। परमात्मा के तो हजारों नाम हैं। परमात्मा का असली नाम शिव है। उन्होंने कहा कि परमात्मा की याद सर्वव्यापी है, परमात्मा नहीं। परमात्मा के नाम उनके कर्तव्य और गुणों का बोध कराते हैं।
जबलपुर से पधारी डॉ. पुष्पा पांडे ने कहा कि परमात्मा स्वयं ही आकर अपनी पहचान देते हैं। उन्होंने कहा कि भगवद्गीता वास्तव में योग शास्त्र है। योग का मूल उद्देश्य ही पापों को भस्म करना है। योग से ही रामराज्य की स्थापना होगी।
माउंट आबू से पधारी प्रेरक वक्ता राजयोगिनी उषा दीदी ने कहा कि परमात्मा ही हमें परिवर्तन की शक्ति प्रदान करते हैं। उन्होंने कहा कि परमात्मा शिव परमधाम के निवासी हैं। परमात्मा को सर्वव्यापी मानना भावनात्मक है, सैद्धांतिक नहीं हो सकता। साथ ही उन्होंने राजयोग के अभ्यास से शांति की अनुभूति कराई।
कार्यक्रम में अहमदाबाद से पधारी बीके दामिनी ने अपनी सुमधुर आवाज से ईश्वरीय स्मृति के सुंदर गीतों की प्रस्तुति दी। सिरी फोर्ट के कलाकारों द्वारा भगवद्गीता पर आधारित रोचक जानकारी युक्त नाट्य प्रस्तुति दी गई। सिरसी कर्नाटक से पधारी बीके वीणा ने मंच संचालन किया। कार्यक्रम में 2000 से भी अधिक लोग सम्मिलित हुए।