संगमयुग की मौज कोई कम नहीं

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संगम की मौज कोई कम नहीं है! सतयुग में तो बाबा मिलेगा नहीं। इसलिए कोई यह नहीं सोचे कि बाबा टाइम बतायेगा, सतयुग जल्दी आये। जब भी विनाश हो हम एवररेडी रहें।

‘बाबा’ कहना माना आत्मा रूप में स्थित होना। कभी-कभी हम बाबा को याद करने बैठते हैं लेकिन आत्मा रूप में स्थित होकर बाबा को याद नहीं करते इसलिए मेहनत होती है। रबर उतारे बिना कनेक्शन जोडऩे लग जाते हैं। बाबा है लेकिन किसका बाबा है? शरीर का तो नहीं है। आत्मा का बाबा है ना तो पहले आत्मा समझकर बाबा को याद किया? लेकिन यदि खुद बॉडी कॉन्शियस में हैं और बाबा के साथ का, बाबा के प्यार का, बीज रूप स्थिति का अनुभव करना चाहते हैं तो यह कभी भी नहीं हो सकता। टाइम वेस्ट जायेगा, दिल शिकस्त हो जायेंगे। फिर कहेंगे मेरा माथा भारी हो गया। क्यों भारी हुआ? क्योंकि रबर उतारा ही नहीं, कनेक्शन जोड़ा ही नहीं तो भारी होंगे ना! प्राप्ति होगी नहीं, करेंट आयेगी नहीं तो ज़रूर माथा भारी होगा और नींद भी आयेगी ही। बुद्धि की, मन की थकावट नींद ले आती है, माथा भारी कर देती है। इसलिए प्राप्ति को पहले सामने लाओ। अनुभव में चले जाओ। ऐसे नहीं कि सुख का सागर है, शान्ति का सागर है- हम तोते तो हैं नहीं।
कहते हैं बाबा जानीजाननहार है, पहले ही विनाश की डेट क्यों नहीं सुना देता? लेकिन बाबा हमें सोल कॉन्शियस बनाने आया है। यदि मान लो आपको बता दें कि इस दिन विनाश होगा तो आप सोल कॉन्शियस होंगे या टाइम कॉन्शियस? टाइम बताने का काम तो ज्योतिष का है। आप एवररेडी रहो, कल भी विनाश हो जाये तो कोई हर्जा नहीं है। और जितना भी टाइम लगे आपका अभ्यास ज्य़ादा अच्छा होगा। एक बार किसी ने बाबा से पूछा – बाबा, आज की दुनिया बहुत गन्दी हो गई है, अब जल्दी विनाश हो जाये। तो बाबा ने कहा कि बच्चे आप यह कह रहे हो कि बाबा, आप जल्दी जाओ। संगम की मौज कोई कम नहीं है! सतयुग में तो बाबा मिलेगा नहीं। इसलिए कोई यह नहीं सोचे कि बाबा टाइम बतायेगा, सतयुग जल्दी आये। जब भी विनाश हो हम एवररेडी रहें। दिल से सदा ‘मेरा बाबा’ निकले। मेरा बाबा कहकर बाबा से कहकर चिपक जाओ।

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