राजयोग मेडिटेशन से मन ही नहीं शरीर भी स्वस्थ रहता है। इसमें जीवन के प्रत्येक मर्ज का इलाज समाया हुआ है। इस प्रक्रिया में हमें स्वयं को आत्मा समझ कर अपना ध्यान सर्वशक्तिमान परमपिता परमात्मा शिव पर केन्द्रित करना होता है। राजयोग में आत्म अनुभूति के साथ जब हम परमात्मा से संबंध जोड़ते हैं तो परमात्मा की शक्तियां धीरे-धीरे हमारे अन्दर समाने लगती हैं। ये प्रक्रिया लगातार चलने से हमारे मन में सकारात्मक विचारों की एक श्रृंखला बन जाती है। जो मन को सशक्त एवं शक्तिशाली बनाती है। राजयोग से हमारे अन्दर सुषुप्त शक्तियां जागृत हो जाती हैं। जो जीवन के प्रत्येक मोड़ पर हमें सही रास्ता दिखाती है।
ज्ञान: यह आत्मा का पहला गुण है। इसका सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है, दिमाग से होता है। हम देखते हैं बचपन से ही कोई बहुत बुद्धिमान होता है तो कोई मंदबुद्धि। यह आत्मा के पूर्व जन्म व संस्कारों के कारण होता है। मस्तिष्क का कनेक्शन शरीर के प्रत्येक अंग से होता है। कौन-सी बात नकारात्मक होती है और कौन-सी बात सकारात्मक इसका हमें गहराई से ज्ञान होना बहुत ज़रूरी है। इससे हम व्यर्थ कर्मों से बच जाते हैं। मन, आत्मा और स्वास्थ्य का ज्ञान होना सभी के लिए ज़रूरी है।
पवित्रता: आत्मा के गुण का सीधा सम्बन्ध हमारे इम्यून सिस्टम से होता है। पवित्रता(ब्रह्मचर्य) की शक्ति से ही यह सिस्टम कार्य करता है। यदि पवित्रता कम होगी तो शरीर में हमेशा इंफेक्शन होता रहेगा। पवित्रता का पता हमारी आँखों और चेहरे से लगता है। इसका अनुसरण करने से मनुष्य निरोगी रहता है। पवित्रता के तेज से हमारी आयु भी बढ़ती है और आत्मा में बल भी बढ़ता है। परमात्मा आज्ञानुसार एक जन्म पवित्र रहने से 21 जन्म सुख-शांति के राज्य-भाग्य के अधिकारी बन जाते हैं।
शांति: शांति आत्मा का स्वधर्म है। जितना हम शांति से रहते हैं उतना हमारा मस्तिष्क और शरीर अच्छे से कार्य करता है। शांति प्रत्येक व्यक्ति को पसंद होती है। शांति की स्थिति में शरीर का प्रत्येक अंग सुचारू रूप से कार्य करता है। श्वास गहरी और धीरे चलती है और फेफड़े शरीर के रोम-रोम तक ऑक्सीजन पहुंचाते हैं। डर एवं चिंताग्रस्त रहने से हमारी श्वास तेज और ऊपर-नीचे चलती है। इससे आयु कम हो जाती है। शांति से जीवन में आनंद और खुशी रहती है।
प्रेम: प्यार के दो बोल परेशान, दु:खी और अशांत आत्मा को प्रसन्न कर देते हैं। प्रेम व स्नेह में वो शक्ति होती है जो पत्थर को भी मोम बना देती है। प्रेम भाव से व्यक्ति में दु:ख, असुरक्षा, दीन-हीन की भावना दूर होती है। प्रेम रोते हुए को हँसना, निराश को उमंग-उत्साह दिलाता है। किसी ने कहा है कि इस दुनिया को सिर्फ प्रेम से जीता जा सकता है। आपका प्रेम व स्नेह भरा व्यवहार किसी के जीवन में खुशी भर देता है। प्रेम से हार्ट मजबूत होता है और उसकी कार्य क्षमता बढ़ती है।
सुख: आत्मा की इस शक्ति से हमारी आंतों का सिस्टम मैनेज होता है। सुख अर्थात् खुशी से लिवर और आंतें ठीक तरह से कार्य करती हैं। कहा भी जाता है कि खुशी जैसी कोई खुराक नहीं। खुश रहने से जीवन में शांति आती है। दीनता, हीनता और गरीबी दूर होती है। परमात्मा का आशीर्वाद मिलता है और हमारा व्यक्तित्व निखरता है। स्वयं परमात्मा ने कहा है कि सदा संतुष्ट और खुश रहने वाली आत्मायें मुझे अति प्रिय हैं। सुख आत्मा का मूल गुण है।
आनंद: खुशी की चरम सीमा आनंद कहलाती है। आनंद शरीर के हार्मोन्स, पिट्यूटरी ग्रंथि, पैंक्रियाज़ आदि को कंट्रोल करता है। आनंद हमारी सांसारिक वस्तुओं, वैभव और देह के सम्बन्धों से प्राप्त नहीं होता बल्कि यह परमात्मा का ध्यान करने से प्राप्त होता है। परमात्मा से योग करने से प्राप्त होता है। हमारी पूरी त्वचा और बाल तीन महीने में बदल जाते हैं। शरीर की हड्डियां छह महीने में बदल जाती हैं। बस मस्तिष्क की कोशिकायें ही बचती हैं। जिन्हें मेमोरी सेल्स कहते हैं। यह आनंद की प्रतिशत पर निर्भर करता है।
शक्ति: हमारी अष्ट शक्तियां मिलकर ही हमारे अस्थि तंत्र का निर्माण करती हैं। सहन करने की शक्ति, परखने की शक्ति व अन्य शक्तियों की कमी के कारण हमारे जोड़ों में व हड्डियों में दर्द होना शुरू हो जाता है। इस प्रकार हम देखते हैं आत्मा के सातों गुण मिलकर शरीर को चलाते हैं। इन सातों गुणों के सुचारू रूप से संचार करने का माध्यम हमारा मन है। हमारा मन ही हमारा सूक्ष्म शरीर है। यदि मन में प्रेम, सुख, शांति, पवित्रता और सकारात्मक विचार चलते हैं तो इससे मन भी स्वस्थ रहेगा।