तब मैंने अपनी जर्नी शुरु की….

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आज आप यहाँ आये हैं। आज आप जो डिसिज़न लेंगे वो आपके आज और आगे का डिसाइड करेगा। जैसे आज आप यहाँ बैठे हैं एक दिन मैं वहाँ बैठी थी। बीस साल पुरानी बात है। सिर्फ फर्क ये है कि वो हॉल इतना बड़ा भी नहीं था। एक छोटा-सा हॉल था। और जैसे आप ऊषा दीदी और शीलू दीदी को रोज़ सुनते हैं मैंने तीन दिन आकर, वहाँ बैठकर उनको ही सुना बस। तब तक मुझे बहुत ज्य़ादा समझ में भी नहीं आया था। लेकिन उन्होंने एक बात कही थी कि परमात्मा डायरेक्ट पढ़ाते हैं। मेरी माता जी ब्रह्माकुमारीज़ में आती थीं। वो मुझे हमेशा बतातीं कि भगवान पढ़ाते हैं, भगवान पढ़ाते हैं। तार्किक दिमाग को देखकर, वैज्ञानिक दिमाग, मैं प्रूफ(प्रमाण) चाहती थी। परमात्मा को प्रूव(साबित करना) नहीं किया जा सकता, आत्मा को प्रूव नहीं किया जा सकता। उनको सिर्फ महसूस किया जा सकता है। अब मेरी जि़द्द शुरु होती है कि आप पहले प्रूव करो। तब तो मैं जर्नी(यात्रा) शुरु करूँ। वो कहने लगे कि आप जर्नी शुरु करो तो प्रूफ अपने आप सामने आ जायेगा। ऐसे कौन जर्नी शुरु करेगा जब तक आप प्रूफ नहीं करोगे कि आप जो कह रहे हैं वो राइट है।
इतनी सारी चीज़ें आपने बता दी हैं कि पहले आप सुबह चार बजे उठो और फिर रोज़ स्टडी भी करो। और फिर ऐसे चलो, ये करो ये नहीं करो, ये खाओ, ये नहीं खाओ। ये राइट है इतना सब करो तो फिर उसके बाद आप प्रूफ दोगे! कभी-कभी न अपनी जि़द्द के कारण, अपने अहंकार के कारण हम अपना कभी-कभी क्या कर देते हैं? नुकसान कर देते हैं। फिर मुझे किसी ने एक बहुत सुन्दर बात बताई। किसी ने कहा कि आप मैथ स्टूडेंट हो तो फिर कहा कि अगर मैथ में कुछ प्रूफ करना पड़ता है तो कैसे शुरु करते हैं? फस्र्ट लाइन क्या लिखते हैं आप? ए इज़ इक्वल टू बी, और लास्ट लाइन क्या लिखते हैं देयर फॉर ए इज़ इक्वल टू बी। और बीच में क्या होता है जर्नी ऑफ लाइफ। आप प्रूफ करके दिखाएं कि ए इज़ इक्वल टू बी बिफोर स्टार्टटिंग लैट ए इज़ इक्वल टू बी। हमें ऐसे ही सिखाया है कि पहले अज़म्शन से स्टार्ट करना होता है फिर उसको प्रूफ करना होता है। और एंड में हम सॉल्यूशन पर आ जाते हैं। कहते बस वही करना है आप अज़म्शन से स्टार्ट करो कि गॉड इज़ यूअर(भगवान आपका है)। फिर ये भी बात राइट कि अज़म्शन से स्टार्ट करो।
फिर मैंने दूसरा क्वेशचन पूछा कि कितने दिन लगेंगे पहुंचने में! देयर फॉर ए इज़ इक्वल टू बी। वो बोले कि वो तो आप पर डिपेंड करता है ना कि आप बाकी पन्ने कितने प्यार से भरते हैं। कोई बहुत जल्दी पहुंच जाते हैं और किसी को टाइम लगता है। किसी को थोड़ा ज्य़ादा टाइम लगता है। लेकिन जो राइट तरह से लिख रहा है तो वो ए इज़ इक्वल टू बी पर ज़रूर पहुंच जायेगा। मुझसे कभी-कभी कोई न कोई पूछता कि आप यहाँ क्यों आये हैं? उनको लगता कि मेरे जीवन में कुछ प्रॉब्लम आई होगी इसीलिए मैं यहाँ आई हूँ। तो वो मुझसे प्यार से पूछते कि आपके जीवन में क्या हुआ था? मैंने कहा कुछ भी नहीं। बोले कि आप इंजीनियरिंग कर रहे थे आपने उसको छोड़ दिया और आप यहाँ आ गये। तो कुछ तो ज़रूर हुआ होगा! ये हमारे बिलीफ सिस्टम है। एक हमारा बिलीफ सिस्टम है कि एक ये हमारा जीवन है और एक दूसरी जीवन है। आध्यात्मिकता एक अलग जीवन नहीं है। हमें लगता है कि एक ये लाइफ है फैमिली, रिश्ते, जॉब, प्रोफेशन और एक है स्प्रिचुअलिटी। क्या ये सच है? इसीलिए आध्यात्मिक जीवन कोई अलग नहीं है।
एक ग्रुप हमारे साथ आया उसमें एक भाई था 40-45 की एज के आसपास होगा। कहते मैंने अपने सीनियर को बोला कि सर मैं शुक्रवार, शनिवार और रविवार छुट्टी पर जा रहा हूँ। उन्होंने कहा कि ठीक है चले जाओ। कहते फिर मैंने सोचा कि मैं इनको बता तो दूँ कि मैं कहाँ जा रहा हूँ। तो कहते मैंने उनको बताया कि सर मैं स्प्रिचुअल रिट्रीट के लिए माउण्ट आबू जा रहा हूँ। तो उनका फस्र्ट क्वेश्चन उसके बाद था कि ये थोड़ा जल्दी नहीं है? हम यही सोचते हैं? क्या हमने यह सोचा था कि यह जीवन का कौन-सा चरण है? सोचने की कला। सही सोचना, सही बोलना, सही व्यवहार करना और इमोशनली पॉवरफुल रहना ये जीवन की कौन-सी एज में शुरु करना चाहिए? उन्होंने बताया कि वो पहले से ही थोड़ा लेट हो गया। चालीस साल बीत गए जैसे उम्र बढ़ती है तो संस्कार थोड़े से कैसे होते जाते हैं, कड़क होते जाते हैं। और इगो थोड़ा-सा क्या होता जाता है? बढ़ता जाता है। लेकिन हमारी बॉडी, एज ये मतलब नहीं रखती है मेरे अपने संस्कारों को चेंज करने में। ये डिपेंड करता है हमारे दृढ़ निश्चय पर, मेरी इच्छा शक्ति पर। क्यों बदलना है, हम जानते हैं। कैसे चेंज करना है, हम जानते हैं। महत्वपूर्ण ये है कि हम चेंज होना चाहते हैं। चेंज होना चाहते हैं तो एक थॉट में चेंज हो जायेंगे। तो तब मैंने अपनी जर्नी शुरु की।

ये जो रोज़ यहाँ स्टडी करवाते हैं, ये परमात्मा के डायरेक्ट महावाक्य हैं। तो रोज़ इसको स्टडी करो। तो पूछा कि क्या क्या करना है इसके लिए? तो उन्होंने कहा कि जैसे तीन दिन आपने यहाँ किया रोज़ सुबह, वैसा रोज़ सुबह करना। घर पर जाने के बाद। और जैसे आपने रोज़ यहाँ क्लास की वहाँ जाकर रोज़ आप आधे घंटे के लिए करना और बाकी दिन अपने काम पर जाना। और क्या करना है? तो उन्होंने कहा कि सात्विक भोजन खाना, मैंनें बोला अभी खाना भी चेंज करना पड़ेगा! तो बोले चेंज करना नहीं पड़ेगा, अगर आप चेंज करेंगे तो आपका एक्सपेरिमेंट जल्दी पूरा हो जायेगा। बिकॉज़ वि आर एक्सपेरिमेंटिंग अ प्युअर कॉन्शियसनेस। वि आर एक्सपेरिमेंटिंग सॉल कॉन्शियसनेस। वि आर एक्सपेरिमेंटिंग कनेक्टिंग विद द सुप्रीम कॉन्शियसनेस। वि आर एक्सपेरिमेंटिंग लाइफ ऑफ प्योरिटी। प्युरिटी एंड पॉवर। तो खाना भी कैसा होना चाहिए?जैसा अन्न वैसा मन, जैसा पानी वैसी वाणी। अब यहाँ से हम जर्नी शुरु करते हैं कि मुझे प्योर सोचना है, मुझे लव करना है, एक्सेप्ट करना है। वहाँ से हम ऐसा भोजन खा लेते हैं जिसमें कौन सी वायब्रेशन हैं? किसी को बांधा गया है और कैसी कैसी कैप्टीविटी में रखा जाता है। कैसी कंडीशन्स के अन्दर। और उसको पता है कि मुझे 15-20 दिन के अन्दर मारा जाने वाला है। सिर्फ एक मिनट आप अपने को उस स्थिति में रखना है। तो हमारे अन्दर कौन से इमोशन्स क्रियेट हो रहे होंगे उस टाइम? फीयर, एंगर, हेटरेड, हैल्पलेसनेस, मैं कुछ कर नहीं सकता। तभी तो कहा जाता है कि जैसा अन्न वैसा मन।यहाँ बैटरी को चार्ज करने की कोशिश की, एक लंच खाया फिर डिस्चार्ज। फिर शाम को मेडिटेशन किया, बैटरी चार्ज हुई, फिर रात को डिनर किया फिर बैटरी डिस्चार्ज। तो कितने दिन में पहुंचेंगे देयर इज़ ए इज़ीक्वल टू बी पर? फिर थोड़े दिन करेंगे और फिर कहेंगे कि ऐसे ही है कुछ नहीं है छोड़ दो। जैसे आपके पास पेशेन्ट आता है, आप डॉक्टर राइट हैं, आपका इलाज भी राइट है लेकिन मैं पेशेन्ट उस इलाज को विधिपूर्वक नहीं करती। तो जब मैं विधिपूर्वक नहीं करती, रिज़ल्ट नहीं मिलती तो मैं उंगली किस पर रख देती हूँ? ये डॉक्टर नहीं ठीक था, ये डॉक्टर बदलो। तो कई बार हम पूछते हैं कि क्या यहाँ वेजिटेरियन बनना पड़ेगा। बनना कुछ नहीं पड़ता, कोई मजबूरी नहीं, कोई जबरदस्ती नहीं। कोई फोर्स नहीं राय दी जाती है सिर्फ। राय उन बातों पर दी जाती है कि किन किन चीज़ों से आपकी फ्रिक्वेंसी बढ़ सकती है। और किन किन चीज़ों से आपकी फ्रिक्वेंसी घट सकती है।
एक एक्सपेरिमेंट करके देखते हें घर जाने के बाद। तीन महीने के लिए सिर्फ। सात्विक अन्न खाकर देखते हैं। सिर्फ एक एक्सपेरिमेंट के रूप में। जब हमारे घर में किसी की डेथ होती है, जब बॉडी घर में पड़ी है तो खाना नहीं बनता है उस घर में। आपसे ज्य़ादा किसको पता है डेड बॉडी के अन्दर क्या क्या होता है। तो और क्या उसकी एनर्जीस हैं। और क्या उसकी चीज़ें हैं। हमें तो नॉलेज भी नहीं है वो, वो आपको पता है। तो कुछ तो रीज़न होगा कि उस दिन घर पर खाना नहीं बनता। रीज़न होगा कोई, वायब्रेशन कौन से हैं, एनर्जी कौन सी है, जब वो डेड बॉडी घर से निकल जाती है, शमशान में जाते हैं सब कर देते हैं, फिर क्या करते हैं हाथ धोते हैं, मुंह धोते हैं उधर ही। क्या धो रहे हैं? घर आते हैं सबसे पहली चीज़ क्या करते हैं? पहले नहाते हैं, कपड़े धोने में डालते हैं फिर पूरे घर को धोते हैं, फिर कीचन खुलता है।अपनी ही फैमिली मेंम्बर थी। अपनी ही फैमिली की बॉडी का घर में होते हुए कीचन में खाना नहीं बनता। और पता नहीं किस किस बॉडी का तो रोज़ खाना बन रहा है। फ्रिज में क्या क्या रखा हुआ है। शमशान घाट के नज़दीक घर नहीं लेते, कहते हैं वास्तु ठीक नहीं है। एनर्जी ठीक नहीं है। और फ्रिज में क्या बना हुआ है। एक महीना पुराना रेफिजरेटर में पड़ा हुआ है। क्या वास्तु होगा? एटलिस्ट जब तक वो इलाज करवा रहे हैं उनको हर चीज़ कैसी मिलनी चाहिए जो उनकी हीलिंग एनर्जी को जल्दी-जल्दी बढ़ाती है। लेकिन उसको हम तब कर पायेंगे जब हम उसको अपने जीवन में इम्पलीमेंट करेंगे। कोई भी ऐसा सब्सटेंस, आपमें से कई होंगे, जिनको कुछ आदतें होंगी जब आप यहाँ आ रहे थे तो आपको बताया गया होगा कि तीन दिन तो उस कैम्पस में अलाउड नहीं है। हम जब निमंत्रण देने जाते हैं तो कुछ लोग तो इसी कारण से मना कर देते हैं आने से कि हम तीन दिन तो उस चीज़ के बिना रह ही नहीं सकते। जब हम किसी भी चीज़ के लिए कहते हैं कि हम इसके बिना रह नहीं सकते, डिप्लीटिंग सॉल पॉवर। हम हीलर्स हैं, इतने कमज़ोर तो हम हो ही नहीं सकते। और कोई चीज़ हम क्यों ऐसे लें जो न आत्मा के लिए, जो न शरीर के लिए सही है। तो जो लेते थे और तीन दिन के लिए यहाँ छोड़ा है और ऐसे वायब्रेशन में आये हैं अभी तक लाखों लोगों ने छोड़ा है तो जो यहाँ वायब्रेशन हैं उसका छूट जायेगा। क्योंकि यहाँ बहुतों ने किया है। तो आज एक कनेक्शन उससे जोड़ कर, एक चीज़ को तो सरेन्डर करते हैं। अगर हम अपनी मोटी मोटी आदतों को नहीं छोड़ पायेंगे तो सूक्ष्म संस्कारों को चेंज करना, वो डिफिकल्ट हो जाता है। इसलिए पहलेे सयंम और नियम मोटी-मोटी चीज़ों का। डिसिप्लीन ऑनली इट इज़ निड टू क्रियेट ट्रांसर्फोमेशन और ये किसी भी चीज़ के लिए है। आप डॉक्टर भी नहीं बन सकते थे बिना सयंम और नियम के। जिन्होंने नहीं रखा वो नहीं पहुंच पाये आज जहाँ आप पहुंचे हैं।आपने कुछ किया है इसलिए आप वहाँ पहुंचे हैं। मेहनत की है कितने साल। तो जब एक डॉक्टर बनने के लिए इतने साल सयंम-नियम मेहनत की तो फरिश्ता बनने के लिए थोड़ी सी

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