मन की बातें – राजयोगी ब्र.कु. सूरज भाई

0
46

प्रश्न : मेरा नाम प्रीति है, मैं लखनऊ से हूँ। मैंने अभी लैब टेक्नीशियन का एग्ज़ाम दिया है और मैं मेडिकल में सिलेक्शन चाहती हूँ। इसके लिए मुझे आठ से दस घंटे पढऩा होगा। लेकिन मैं आधे घंटे में पढ़ के ही बोर हो जाती हूँ। आधे दिन में सिर्फ दो घंटे ही पढ़ पाती हूँ। मुझे क्या करना चाहिए?
उत्तर : अगर आपका पढ़ाई में इनट्रस्ट नहीं होगा तो आपकी मेमोरी सब चीज़ को ग्रहण भी नहीं करेगी। आप आधा घंटा ही पढ़ कर बोर हो जाती हैं तो आप आठ घंटे की तैयारी कैसे करेंगी ये आपका सोचना बिल्कुल सही है। इसलिए सवेरे उठते ही सब्कॉन्शियस माइंड में आपको कुछ थॉट्स भरने चाहिए। लेकिन क्या? पहले तो सात बार याद कर लें कि मैं मास्टर ऑलमाइटी हूँ, इससे आपकी शक्तियां एक्टिव हो जायेंगी। फिर दूसरा संकल्प करें कि मेरा ब्रेन एक अच्छी स्टडी के लिए तैयार है। मैं कई घंटे तक स्टडी को एन्जॉय कर सकती हूँ। मेरी बुद्धि अब कैपेबल है सबकुछ ग्रहण करने के लिए। फिर अभ्यास कर लें मैं आत्मा स्वराज्य अधिकारी हूँ। जो राजयोग का अभ्यास करते हैं वो इस शब्द से बहुत अच्छी तरह से परिचित हैं। मैं आत्मा यहाँ हूँ, इस देह की मालिक हूँ। मन, बुद्धि की मालिक हूँ। इसको नाम दिया गया है मैं स्वराज्य अधिकारी हूँ। ऐसी फीलिंग में आकर कि मैं मन-बुद्धि की मालिक हूँ। इसको ज़रा अच्छी तरह से भर दें अपने कॉन्शियस में। फिर अपने ब्रेन को, बुद्धि को ऑर्डर दें कि हे मेरी बुद्धि अब मुझे आठ घंटे स्टडी करनी है तुम अपने को तैयार कर। तुम कैपेबल हो जो मैं पढूं उसको याद करने के लिए। तुम बहुत अच्छी बुद्धि हो। बस ऐसे संकल्प तीन-चार बार करेंगे गुड फीलिंग के साथ। बुद्धि बिल्कुल कैपेबल हो जायेगी, सब्कॉन्शियस माइंड एक्टिव हो जायेगा, आपका साथ देने लगेगा। और पढऩे में दो-चार दिन में तेजी से आपको दिखाई देने लगेगा कि पहले आधा घंटा, फिर दो घंटे, फिर चार घंटे, फिर आठ घंटे आप अपने उस लक्ष्य तक पहुंच जायेंगी और अच्छी स्टडी करेंगी, अच्छी तैयारी हो जायेगी। कॉन्फिडेंस भी बढ़ेगा। इस तरह से करने से आप सफल हो जायेंगी।
प्रश्न : मेरा नाम गायत्री है। सात साल हो गये हैं मुझे इस विद्यालय से जुड़े हुए। संगमयुग का महत्व मैं जानती हूँ लेकिन संगमयुग में जैसे बाबा कहते हैं कि पांच विकारों के बाद छठवें विकार का जो स्थान आता है वो आलस्य का है। उस आलस्य के विकार का अभी मुझपे बहुत ही भयंकर आक्रमण हुआ है। मैं बहुत ही अलबेली और आलसी हो गई हूँ। कृपया बतायें इस विकार पर मेरी विजय कैसे प्राप्त हो?
उत्तर : ये भी अच्छी बात है जाग्रति होना। उदाहरण ले लें विद्यार्थियों का। अभी युवाकाल होता है, किसी की 18 साल आयु है, किसी की 19,20, 21 है। उनमें सोने का तो रहता ही है ना ज्य़ादा। और युवाकाल में नींद भी 7-8 घंटे तो चाहिए। तो हम देखते हैं उन्हें पढऩे का शौक है, उन्हें रहता है कि हमें इतने परसेंटेज माक्र्स लाने हैं। तो वो बहुत कम सोते हैं। और जो ब्रेन है वो उसको मैनेज करता है। तो ये हमारे ब्रेन की कैपेबलिटी है कि जो हम करना चाहते हैं सच्चे मन से वो उसी अनुसार अपने को सैटअप कर लेता है। शरीर भी सब उस तरह से कार्य करता है। मैं युवकों को पूछता हूँ कि कितने घंटे सोते हो? वो बोलते हैं कि पाँच घंटे। तो मैं पूछता हूँ कि नींद नहीं आती? तो वो कहते हैं कि आती तो है पर हम चुस्त रहते हैं। लक्ष्य मनुष्य को अलबेलेपन और आलस से मुक्त करता है। आपको कुछ काम ले लेने चाहिए अपने ऊपर। संकल्प कर लें कि मुझे उठते ही सबके लिए चाय बनानी है। डयूटी दे दें आप अपने को। तो ये डयूटी आपको जगाती रहेगी। कुछ अच्छा लक्ष्य, आपको कुछ एक्सरसाइज़ भी करनी चाहिए। कुछ प्राणायाम करने चाहिए। मसाज इसके लिए बहुत अच्छी रहती है। रोज़ एक बार मसाज कर लें। कभी-कभी शरीर के सेल्स बहुत सारी इसमें चीज़ें है वो डल होने लगती हैं कुछ कारणों से। वो भी चुस्त हो जायेंगी। और आप अच्छे से वॉकिंग किया करें। हो सके तो जॉगिंग करें। चाहे दस मिनट ही सही। तो इससे आप चुस्त रहेंगी और योग में भी नींद नहीं आयेगी। ईश्वरीय महावाक्य सुनने में भी नींद नहीं आयेगी और आपकी ये प्रॉब्लम समाप्त हो जायेगी।

प्रश्न : मेरा नाम रागिनी है, मैं लखनऊ से हूँ। मेरे पति की कैंसर से मृत्यु हो गई। मेरे दो बच्चे हैं। एक यूएसए में है और एक नोयडा में। दोनों की शादी हो गई है। वो दोनों अपनी-अपनी फैमिली में हैं। ना तो मुझे फोन करते हैं और न ही मुझसे मिलने आते हैं। ऐसे में मैं बहुत अकेलापन महसूस करती हूँ। बहुत दु:खी और अशांत रहती हूँ। मैं क्या करू ?
उत्तर : जिसके पति की भी मृत्यु हो गई हो और जिसने अपने बच्चों की जी जान लगाकर पालना की हो और वो बच्चे आज उन्हें पूछते नहीं तो निश्चित रूप से माँ का दिल तो टूट जाता है। लेकिन ये बच्चों का कत्र्तव्य है कि वो अपनी माँ की भी भावनाओं को समझें। कम से कम फोन तो करें। ताकि माँ का भी प्यार जो है वो तृप्त होता रहे। और उसको भी लगे कि ये सारा हमारा परिवार है। बच्चे हमारे हैं। वो हमसे अलग नहीं हुए हैं। मैं इस माध्यम से सभी बच्चों को युवकों को संदेश देना चाहूँगा कि भले ही आप कहीं भी चले जायें, अमेरिका में चले जायें माँ का प्यार तो माँ का प्यार ही होता है। उसे यूँ भुलाया नहीं जाना चाहिए। रही बात आपकी, आपको डिप्रेशन होना नैचुरल है। जिसने अपना पति खो दिया हो और बच्चे भी एक तरह से खो ही गए। तो आपको मैं कहूँगा कि आप राजयोग सीखें। ईश्वरीय ज्ञान लें आपका चित्त शांत होगा। जब आप राजयोग करेंगी तो आपको लगेगा कि पति आपका मृत हो गया है तो परमपिता हमारा प्रियतम भी है। वो पतियों का पति भी है। वो हमें सच्चा प्यार देता है। उसको भी प्रियतम कहा गया है। मीरा ने भी उसको प्रियतम कहा था। तो सचमुच आपका वो प्रियतम बन जायेगा। और आपको आभास होने लगेगा कि सांसारिक पति मेरा मृत्यु को प्राप्त हो गया लेकिन एक पारलौकिक पति मुझे फिर से प्राप्त हो गया। तो बच्चों के जो इस मिलन का, प्यार का अभाव आपको महसूस हो रहा है वो अभाव पूरी तरह से भर जायेगा। आपके जीवन में तृप्ति होगी, चित्त शांत होगा। और आपके मन में जो डिप्रेशन की स्थिति है वो समाप्त होकर जीवन में खुशी आ जायेगी।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें