हमारा पुरूषार्थ ऐसा हो जो भगवान भी हमारा सम्मान करे

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पवित्रता सुख-शांति की जननी है। आज दु:ख, अशांति बढ़ ही इसीलिए रहे हैं क्योंकि इम्प्योरिटी बहुत बढ़ गई है। दृष्टि भी इमप्योर, बोल भी इमप्योर तो फीलिंग भी इमप्योर, दैहिक दृष्टि, इनसे जो योगी हट जाता है उसको परम शांंति प्राप्त होती है।
बाबा कहते बच्चे, मैं तुम्हारे लिए हथेली पर स्वर्ग लाया हूँ। स्वर्ग मेरी रचना है, मेरी सम्पदा है, तुम उसके मालिक हो। तुम स्वर्ग में जाओगे, तुम सब उसके मालिक होंगे। तुम सब कहेंगे हमारा भारत। वहाँ हमारा प्रकृति पर भी अधिकार होगा। तो हमें राजाई पानी है ये उमंग-उत्साह हमारे मन में होना चाहिए। हमें आठ घण्टे योग की ओर चलना है। कर्म करते हुए बहुत अच्छी योग युक्त स्थिति बनानी है। ताकि हम परम सुख के अधिकारी बन जायें। ये परम सुख सवेरे बहुत मिलता है। जब प्रकृति शीतल होती है। जब चारों ओर सबकुछ शांत होता है उस टाइम परमात्म मिलन का सुख प्राप्त करना, वो सतयुगी राजाई से भी श्रेष्ठ है। परंतु राजाई प्राप्त करनी है तो रजाई तो छोडऩी पड़ेगी सवेरे-सवेरे। अगर रजाई खिंचती रहेगी, बेड खिंचता रहेगा तो वो सुन्दर समय हमारे हाथ से निकल जायेगा।
भगवान सवेरे-सवेरे वरदान देने आते हैं। हमें बहुत कुछ सिखाने आते हैं। समस्याओं का हल सुझाते हैं। हमारे सिर पर अपना वरदानी हाथ रखते हैं। हमें बहुत प्यार और पुचकार देते हैं। हल्का कर देते हैं, और बोझ हर लेते हैं। सवेरे परम सुख उनसे प्राप्त करें। सतयुगी राजाई तो है ही बहुत बड़ी प्राप्ति।
इस समय ये जो पुरुषोत्तम संगमयुग चल रहा है जबकि इस धरा पर भगवान का गुप्त कार्य चल रहा है। जो ज्य़ादा मनुष्यों को पता नहीं है। पर बहुत सारे लाखों लोग इससे जुड़ चुके हैं। उनका परमात्म मिलन हो चुका है। वो सभी विकारों से मुक्त हो चुके हैं। उन्होंने अपने खान-पान को शुद्ध कर लिया है। मलेच्छ खान-पान ये देवताओं का भोजन नहीं है। ये गंदगी आसुरी सम्पदा का भोजन है। आजकल वही हाल हो गया सबका, रॉयल कहलाने वाले लोग इस मार्ग पर चल पड़े, इसको रॉयल्टी समझ बैठे हैं। लेकिन रॉयल्टी और पर्सनैलिटी कुछ और है। ईश्वरीय महावाक्यों में दोनों की बड़ी गुह्य डेफिनेशन सुनी है।
तो सवेरे-सवेरे हम परमात्म सुख प्राप्त करें। परमात्म सुख इतना भर लें अपने में कि जो भी हमारे वायब्रेशन्स में आ जाये, हमारे औरा के बीच में आ जाये उसके दु:ख समाप्त होने लगें। उसका चित्त शान्त होने लगे, वो सुखी हो जायें। एक खज़ाना है ये बहुत बड़ा। ये सुख सांसारिक सुखों से बहुत बढक़र है, इसको अतीन्द्रिय सुख कहा जाता है। और ये भगवान के महावाक्य हैं कि अतीन्द्रिय सुख पूछना हो तो उन बच्चों से पूछो जो आत्मभिमानी होकर रहते हैं। देह भान से न्यारे होकर चलना। आत्मा के सभी गुणों और शक्तियों का स्वरूप बनते चलना। इससे ये अतीन्द्रिय सुख, बहुत गहरा सुख, सच्चा आत्मा का सुख प्राप्त हो जाता है। ये हमें प्राप्त करना है। जो ये सुख प्राप्त कर लेंगे वो जन्म-जन्म कलियुग के अन्त तक भी सुखी रहेंगे।
शांति का खज़ाना बहुत बड़ा है। परमात्म शांति हमें प्राप्त हो रही है। उसने इतना सुन्दर ज्ञान दे दिया कि ज्ञान को सुनते-सुनते ही चित्त शांत हो जाता है। सारी बेचैनियां, जीवन की सारी टेन्शन, सारी अशांति, सारे मन के बोझ, मन का विचलित होना सब रूक जाता है। ये ईश्वरीय ज्ञान से ही सम्भव है। अगर कोई जबरदस्ती करेगा तो उसके ब्रेन पर इसका बुरा असर आयेगा। वो जीवन के लिए अच्छा नहीं होगा। तो नैचुरल हम अपने जीवन को, अपने चित्त को शांत कर लें ज्ञान के द्वारा, राजयोग के द्वारा। ये बहुत बड़ा खज़ाना है, हमारे खज़ाने हैं पवित्रता, संसार में जिसमें लोगों को ज्य़ादा नॉलेज नहीं है। पवित्रता सुख-शंाति की जननी है। आज दु:ख, अशांति बढ़ ही इसीलिए रहे हैं क्योंकि इम्प्युरिटी बहुत बढ़ गई है। दृष्टि भी इम्प्युअर, बोल भी इम्प्युअर तो फीलिंग भी इम्प्युअर, दैहिक दृष्टि, इनसे जो योगी हट जाता है उसको परम शांंति प्राप्त होती है। वो पवित्रता के खज़ाने से स्वयं को भरपूर कर लेता है। उसको सम्पूर्ण प्रकृति भी बहुत साथ देती है। तो सभी को ये मालूम होना चाहिए भगवान गुप्त रूप से ये दिव्य कार्य कर रहे हैं। पर इतना गुप्त भी नहीं है कि किसी को पता भी न हो। बहुतों को पता चल चुका है और बहुत इससे जुड़ भी चुके हैं। स्वयं को इन सभी खज़ानों से भरपूर कर रहे हैं।
शिवबाबा(भगवान) कहते हैं मैंने तुम्हें भाग्य की रेखा खींचने की कलम दे दी है। श्रेष्ठ कर्म ही वो कलम है। किसी को भगवान से मिला देना, किसी को मुक्ति-जीवनमुक्ति का मार्ग दिखा देना, किसी के जीवन में आने वाली समस्याओं और बाधाओं को समाप्त करा देना, किसी को ऐसी राजयोग की विद्या सीखा देना कि वो स्वयं बहुत शक्तिशाली बन जायें। ये श्रेष्ठ कर्म, ये पुण्य कर्मों का खज़ाना बहुत ही बड़ा है। इसका जो फल मिलता है वो स्वर्ग का भाग्य।
वर्तमान समय जब युग परिवर्तन होगा तो अचानक बहुत कुछ होता रहेगा। अचानक खेल बिगड़ता हुआ नज़र आयेगा। जो कभी मन में सोचा नहीं था वो अचानक दिखाई देगा। मनुष्य भयभीत हो जायेंगे। वो तो समझ में नहीं आयेगा कि करें क्या? तो हम सभी अभी से बहुत अच्छा अभ्यास कर लें। भगवान हमारा साथी है, वो हमें साथ दे रहा है। तो उस टाइम उसका साथ होने के कारण हमें समझ में आ जायेगा कि हमें क्या करना है। तो परमात्म सुख, परमात्म साथ उसकी गाइडेन्स सबको निरंतर मिल रही हैं। ये बहुत बड़े खज़ाने हैं।
एकान्त में उसका चिंतन करने से हमारी बुद्धि बहुत शुद्ध हो जाती है, डिवाइन हो जाती है। और ये बुद्धि जन्म-जन्म हमारे साथ चलेगी। तो आइए हम गहन चिंतन करें। पुरुषोत्तम संगमयुग पर शिव बाबा से हम अच्छे से अच्छा क्या लें ताकि हम भरपूर हो जायें। और जब हम इस संसार से जायें तो खाली हाथ नहीं, भरपूर होकर जायें। जब भगवान के पास पहुंचें तो वो भी खड़े होकर हमारा सम्मान करे।

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