एक अच्छे लक्ष्य के साथ उसके प्राप्ति की विधि भी अच्छी हो

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कई लोग होते हैं, उनके साथ न्याय नहीं हुआ तो जोश में आ जाते हैं, क्रोध में आकर कुछ कर बैठते हैं। वे नहीं समझते कि ठीक है, उनको न्याय नहीं मिला लेकिन उसके लिए क्रोध में आना, अत्याचार कर बैठना, यह भी न्याय नहीं है! न्याय नहीं मिला और न्याय प्राप्त करने के लिए क्रोध करते हैं, हिंसा करते हैं। अच्छा प्राप्त करने के लिए खराब काम कर लेते हैं। यह ठीक नहीं है। हमारा लक्ष्य भी अच्छा होना चाहिए और उसको प्राप्त करने की विधि भी अच्छी होनी चाहिए। यह हमने देखा है कि इसमें भी हम धोखा खा लेते हैं। हमारे कोई भाई-बहन हैं, वे हमसे व्यवहार ठीक नहीं करते। हमारे पीछे ही पड़ जाते हैं। हमसे ईर्ष्या करते हैं, द्वेष करते हैं। मान लो किसी वजह से हमारा और उनका स्वभाव-संस्कार नहीं मिलता। इसके लिए बाबा ने कहा है कि उनके प्रति हमें मधुरता, सहनशीलता, क्षमा, दिव्यता, सन्तोष, मिलनसार इत्यादि दिव्यगुणों की धारणा होनी चाहिए। इसके बदले उनकी बात या व्यवहार देख हम भी उत्तेजित होकर बोलने लगते हैं, व्यवहार करने लगते हैं तो हमारी जो स्थिति होनी चाहिए फरिश्ता स्वरूप की, बिन्दु स्थिति की या प्रभामण्डल की, वो न होकर हम नीचे की अवस्था में, शरीर अभिमान की अवस्था में आ जाते हैं।
हमारे सामने ज़रूर एक मूल्य होता है। फलाना आदमी इतने सालों से ज्ञान में होते हुए भी कई लोगों को परेशान कर रहा है, इसको कोई नहीं बोल रहा है, हम कुछ बोलें, हम इसको ठीक कर दें। लेकिन यह जि़म्मेदारी आपको किसने दी है? बाबा कहते हैं, लॉ अपने हाथ में नहीं उठाओ। मैं न्यायकारी हूँ, मैं बैठा हूँ, मैं देखूंगा। आप अपना फर्ज पूरा करो, आपके लिए जो धारणा बतायी है, उनको धारण करो। मैंने जो स्थिति बनाने के लिए कहा है, वो बनाओ। धारणा करने में भी हम देखते दूसरों को हैं। अपने आसुरी गुणों को छोडऩे के लिए जो पुरूषार्थ करना है, उसके लिए भी हम दूसरों को देखते हैं। इससे अपने दिव्यगुण को खो बैठते हैं। उससे अपनी स्थिति से नीचे आ जाते हैं। इसके बाद क्या होता है, मैंने पहले बताया था कि चित्र के बारे में, उसके मन में उस व्यक्ति का चित्र सामने आता रहता है कि वह व्यक्ति कैसा है। हमारे में जो चित्र आना चाहिए हमारे फरिश्ता स्वरूप का, प्रभामण्डल का, सारी सृष्टि को सकाश देने का, वो चित्र समाप्त हो जाता है। मैंने बताया था कि जब आपके विचार निगेटिव में बदल जाते हैं तो आपके मन में आने वाला चित्र भी निगेटिव में बदल जायेगा। इसलिए अपने सामने श्रेष्ठ चित्रों को कायम रखें या मूल्यों को कायम रखें तो निश्चित रूप से वो हमारी स्थिति बन जायेगी जो बाबा चाहते हैं।

बड़े हमें समझाते हैं, इशारा करते हैं तो स्वीकार करना चाहिए

तीसरी एक बात यह है कि जो हमारे में कोई कमी-कमज़ोरी आ जाती है, जिसका हमारे बड़े इशारा देते हैं, हमारा ध्यान उसपर नहीं है, जिसको हम ठीक समझ रहे हैं, जिससे हमें रूकावट पड़ रही है, जिसके कारण जो स्थिति होनी चाहिए, वो है नहीं। उसमें कोई हमें समझाता है, मार्गदर्शन करता है, इशारा करता है तो उसको हमें स्वीकार करना चाहिए लेकिन हम उसको नकार देते हैं। उसको हम सही सिद्ध करने की कोशिश करते हैं। इससे भी जो हमारी स्थिति बननी चाहिए, वो नहीं बन पाती। समझते हुए भी उसको हम नहीं मानते हैं क्योंकि हम समझते हैं कि आगे के लिए हमारे व्यक्तित्व पर दाग लग जायेगा, लोग समझेंगे कि देखो, इसने अपनी गलती मान ली, उनके सामने हार स्वीकार कर ली। इससे कई बार हमारा विकास रूक जाता है। बाबा ने जो लक्ष्य दिया है, अगर उसके चित्र को सामने रखकर, उपरोक्त बातों का ध्यान रखकर पुरूषार्थ करते हैं तो हम अपने लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।

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