‘मेरा’ कहने के बजाय कहो ‘मेरा बाबा’

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चेक करें कि सारे दिन में मेरा शब्द कितने बार कहते हैं? बाबा ने देखा कि इन्हों को मेरा-मेरा कहने की आदत पक्की है, इसलिए कहा कि मेरा कहने के बजाय कहो ‘मेरा बाबा’

अवतार जो आते हैं वो मैसेज देते हैं, धर्म पिताओं को अवतार कहते हैं, वो क्यों आते हैं? दुनिया को गॉड का मैसेज देने के लिए। हमारा तन भी अभी इसीलिए है। ये तन भी बाबा का है, बाबा ने हमको सेवा में यूज़ करने के लिए दिया है। इसलिए हम भी अपने को चलते-फिरते अवतार समझें। ऐसी स्थिति होगी तो अटैचमेंट नहीं होगी। पहले है देह, जब देह में अटैचमेंट होती है तो देह के साथ ही देह के सम्बन्ध हैं। अगर देह ही नहीं तो न देह में, न सम्बन्ध में, न देह के पदार्थों में किसी में भी अटैचमेंट व आकर्षण न हो। तो हम अपने को मैसेन्जर समझेंं। बाबा ने यह शरीर अमानत के रूप में दिया है। मेरा नहीं है। जहाँ मेरापन आता है वहाँ पाँच विकार प्रकट हो जाते हैं। माया के आने का दरवाज़ा ‘क्र’मेरा’ञ्ज’ है, माया को भगाने का फाटक है ‘क्र’तेरा’ञ्ज’। तो चेक करें कि सारे दिन में मेरा शब्द कितने बार कहते हैं? बाबा ने देखा कि इन्हों को मेरा-मेरा कहने की आदत पक्की है, इसलिए कहा कि मेरा कहने के बजाय कहो मेरा बाबा। बाबा का हमसे इतना प्यार है जो बाबा हमको मेहनत नहीं कराना चाहते। एक मेरा में सब मेरा आ जाता है। इसमें सब समाया हुआ है। दुनिया में चाहिए क्या? एक सम्बन्ध चाहिए, दूसरा सम्पत्ति चाहिए। हमारा सम्बन्ध एक के साथ है। अलग-अलग सम्बन्ध निभाना मुश्किल होता है। एक को याद करना सहज है। बाबा ने इतना सहज बना दिया, बस मेरा बाबा। तो सर्व सम्बन्ध उसमें हैं ही। और खज़ाने भी बाबा ने कितने दिए हैं! कोई भी खज़ाना हो, कोई भी अच्छी चीज़ हो, लेकिन यूज़ क्यों करना चाहते हैं? क्योंकि उससे हमें सुख मिलेगा, खुशी मिलेगी, शान्ति मिलेगी, इसलिए यूज़ करते हैं। लेकिन अविनाशी सुख, शांति, सम्पत्ति बाबा से ही मिलेगी। इसलिए बाबा कहते हैं दिल से कहो मेरा बाबा। दिल से कहेंगे तो कभी भी भूल नहीं सकते।
योग के टाइम देही-अभिमानी का अभ्यास करते फिर भी बार-बार देह अभिमानी क्यों हो जाते हैं? क्योंकि शरीर मेरा है, बहुत काल का अभ्यास है। इसलिए अपने को अवतार समझो, बाबा ने यह शरीर मैसेज देने के लिए दिया है तो देहभान रहेगा ही नहीं, अवतरित हुए हैं, काम किया और चले। निराकार बाप समान बनने के लिए हम ये दो विशेष अनुभव कर सकते हैं। आप जैसे हो, आपको कम्पनी भी ऐसी ही अच्छी लगेगी। चाहे मर्तबे में हो, चाहे ऑक्यूपेशन में हो, चाहे स्वभाव-संस्कार में हो या दिल का प्यार हो तो समीप आते जायेंगे। वैसे भी फैमिली में 4-6 बच्चे हैं लेकिन फिर भी माँ का प्यार उस बच्चे से ज्य़ादा होता जो स्वभाव-संस्कार में अच्छा हो। क्योंकि जो माँ चाहती है वो बच्चा करता है। तो समान हो गया इसलिए समीप है। इसी रीति से हमको बाबा के समीप आना है तो उसका आधार है समान बनना। निराकार के रूप से तो हम इसी रीति से समान बन सकते हैं।
साकार में हमारे सामने ब्रह्मा बाबा है। जैसे हम जन्म-मरण के चक्कर में आते हैं वैसे ब्रह्मा बाबा भी 84 जन्म लेते हैं। तो उनके समान बनने के लिए हमें मन्सा-वाचा-कर्मणा में पूरा फॉलो करना है।

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