पूर्ण विश्वास के साथ कार्य सौंपने की ताकत, व्यवस्था की जिम्मेवारी, बातचीत करने का सलीका, अपनापन देने का हुनर, सेवा को अहमियत, योग्य बनाकर योग्यता को सेवा में प्रयोग करने वाली, सभी को सजाने और संवारने का पूरा प्रबंधन, हम सभी को उमंग-उत्साह दिलाने वाली हम सबकी आदरणीय प्यारी दादी जी ही थीं।
दादी जी के मधुर मुस्कान व प्यार कभी भूलता नहीं
दादी जी के अंग-संग रहने के कारण कोई भी योग्यता पैदा करने में मुझे कोई खास मेहनत नहीं करनी पड़ी। जैसे पारस के संग रहकर लोहा भी पारस बन जाता है, ऐसे दादी जी के संग रहकर मैं भी योग्य बन गई। सुबह से सायंकाल तक की व्यस्त दिनचर्या में सैकड़ों बार उनके सम्मुख जाना होता, उनकी प्यार भरी दृष्टि पड़ती और मेरे अंदर उमंग-उत्साह की लहरें हिलोरे मारने लगतीं। उनके सामीप्य में थकान किसे कहते हैं, मैंने नहीं जाना। मुझे महसूस होता रहा कि ये नजऱें दादी जी की नहीं, स्वयं भगवान की हैं, जो मुझे निहाल कर रही हैं। उनके स्पर्श मात्र से दिव्य शक्ति का मुझमें संचार होता था। ओम् शांति भवन, ज्ञानसरोवर, शांतिवन आदि सभी यज्ञ के बड़े-बड़े भवनों को सजाने-संवारने का पूरा प्रबंधन दादी ने मुझे सिखाया। दादी खरीददारी की चीज़ें खुद बैठकर लिखवाती थीं। दादी की हर आज्ञा को साकार करने में मैं दिल से जुट जाती थी, मुझे बहुत खुशी मिलती थी। – राजयोगिनी ब्र.कु. मुन्नी दीदी,संयुक्त मुख्य प्रशासिका,ब्रह्माकुमारीज़
दादी की सोच विश्व कल्याण के प्रति हमेशा रहती
जब विदेश में सेवा शुरु हुई, तो लंडन तथा हॉन्गकॉन्ग में सेवाकेंद्र था। फिर गयाना, कैरेबियन की तरफ निमंत्रण मिला। मैं वहां गयाना में गई, तो दादी जी और रमेश भाई यात्रा पर निकले तो दादी जी प्लेन से अमेरिका से क्रॉस कर रही थीं तो उनकी नजऱ नीचे गई, तो उन्होंने कहा कि ये तो बहुत बड़ा देश है, यहां सेवाकेंद्र क्यों नहीं है? यहां बाबा की सेवा क्यों नहीं होती? तो उन्होंने मेरे से बात की और कहा कि देखो, आप यहां बैठी हैं, इतना बड़ा देश है, आपको तो वहां होना चाहिए, आपको तो दिल्ली का अनुभव है। कुछ करो। तो उन दिनों में हमारे अंकल स्टीव थे गयाना में तो सारे परिवार से, लौकिक-अलौकिक परिवार से उन्होंने बात की और इस तरह से न्यूयॉर्क में मेरा आना हुआ। यहां एक बहुत छोटा सा फ्लैट लिया और वहां से सेवायें शुरु की।
सबसे बड़ी बात थी कि यूएन में ही एक ऑफिस होने से अंतर्राष्ट्रीय रूप से इसका बहुत प्रभाव था, क्योंकि उस तरह की सामाजिक जो बातें होती हैं वो यूएन डील करता है, तो केवल धार्मिक संस्था के रूप में ही नहीं, बल्कि समाज के विभिन्न वर्गों हेतु किये जाने वाले मूल्य आधारित कार्यों के तहत इस संस्था को मान्यता मिली। तब दादी ने कहा कि यहां बाबा का झण्डा लहराना चाहिए। – राजयोगिनी ब्र.कु. मोहिनी दीदी,अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका,ब्रह्माकुमारीज़
दादी में शिवबाबा की छवि दिखाई देती थी
ओम् निवास में जो भी छोटी-छोटी कुमारियां थी, उनकी संभाल करने की जि़म्मेदारी बाबा ने दादी जी को ही दी थी। बाबा अपनी जि़म्मेवारियां दादी को ही सौंप दिया करते थे, साथ-साथ उनको सिखाते जाते थे। कारोबार कैसे चलाना है, किस प्रकार बातचीत करनी है, किस प्रकार संभालना है वो सब कला दादी में बाबा से आ गई। बाबा समान ही दादी के अंदर फीलिंग थी कि यह मेरा ही परिवार है, ये मेरे ही बच्चे हैं। बाबा का परिवार अर्थात् मेरा परिवार। दादी में सबके प्रति अपनापन होने के कारण सभी को भी दादी के प्रति अपनापन आता था। सब समझते थे कि दादी हमारी हैं। दादी को देखने का, उनके साथ रहने का, उनके साथ सेवा में सहयोगी बनने का पार्ट हमारा भी रहा। बाबा के साथ मम्मा भी रहती थीं लेकिन बाबा के साथ सेवा में बाहर जाना ज्य़ादा दादी का ही होता था। – राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी,मुख्य प्रशासिका,ब्रह्माकुमारीज़
दादी का निर्णय बाबा की तरह परफेक्ट और एक्यूरेट होता
मां की तरह दादी ने इतनी प्रेम की पालना दी। भारत ही क्या सारे विश्व को, सारे विदेश को भी। जिस समय विदेश की सेवाएं शुरू हुई, उस समय दादी का शुरू से ही हर प्रकार से न सिर्फ सहयोग रहा अथवा योगदान रहा परंतु दादी लीडर के रूप में एक विशाल बुद्धि होने कारण, दूरांदेशी बुद्धि होने कारण दादी समझ सकती थी कि विदेश की सेवा के लिए किस प्रकार से पालना देनी होती। तो जब हम दादी के पास आते थे दादी से राय-सलाह कोई भी बात करते थे, दादी का बिल्कुल बाबा की याद में एक सेकण्ड रूकना और फिर दादी हमें जो राय-सलाह देती थीं वह बहुत ही योगयुक्त, युक्तियुक्त, राजयुक्त कहें, हमें एक्यूरेट गाइडेंस मिल जाती थी। तो उस आधार पर ना सिर्फ एक देश परंतु जैसे आपने सुना सारे विश्वभर में बाबा का कार्य चल रहा है। तो हम कहेंगे कि दादी की लिडरशिप के हिसाब से दादी ने इतनी पे्ररणादायक बातें बताई जिससे आज विश्व की सेवाएं भी चल रही हैं। – राजयोगिनी ब्र.कु. जयन्ती दीदी,अतिरिक्त मुख्य प्रशासिका,ब्रह्माकुमारीज़