दादी का प्रेमपूर्ण प्रशासन हमारे लिए पथ प्रदर्शक

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अव्यक्त बापदादा की श्रीमत, निमित्त भाई-बहनों के साथ विचार विमर्श करके सबकी राय को सम्मान देकर चलने वाली, मुस्कुराते हुए सबके सिर को सहलाकर उनके अन्दर के भाव को परख, स्नेहपूर्ण पालना दे निश्छल भाव को व्यक्त करने वाली, दूरदर्शिता की एक अहम मिसाल, जिन्होंने न किसी के अवगुण देखे, न परचिंतन किया। विशेषताओं की प्रतिमूर्ति, दैवी परिवार का सदा ध्यान रखने वाली, दूरदर्शी, पारदर्शी, मर्मस्पर्शी दादी जी का प्रेमपूर्ण निश्छल भाव आज भी हमें सुख और सुकून देता है।

दादी का जीवन फरिश्ता समान रहा

दादी जी को हमेशा सतयुगी विश्व की स्थापना हेतु नई-नई ईश्वरीय सेवाओं की योजना बनाने का बहुत ही उमंग-उत्साह रहता था कि जल्द से जल्द इस सृष्टि पर भगवान की प्रत्यक्षता हो जाये, इसके लिए वह सदा प्रयासरत रहती थीं। भगवान की प्रत्यक्षता करने के लिए उनके मन में भी कई श्रेष्ठ विचार आते थे लेकिन वो हमेशा अन्य निमित्त वरिष्ठ भाई-बहनों के साथ विचार-विमर्श करके सभी की राय लेकर हर वर्ष नई-नई योजनाएं बनाती तथा उसको कार्यान्वित कराती। हर वर्ष जब वाॢषक मीटिंग होती थी तो उसके पूर्व वह सभी कार्य योजनाओं का पुनर्वलोकन करती तथा बीते हुए अनुभवों के आधार पर ईश्वरीय सेवाओं को नया आयाम देती। दादी जी के जीवन व पुरूषार्थ को देखते हुए यही प्रेरणा मिलती है कि फरिश्ता सो देवता बनने का लक्ष्य सदा सामने रखें और अव्यक्त बापदादा की श्रीमत को सदा आदरपूर्वक स्वीकार करते अपने जीवन में उतारते रहें तो हम भी दादी के पद् चिन्हों पर चलते हुए अपनी सम्पूर्ण स्थिति को प्राप्त कर उड़ते-उड़ते सूक्ष्म वतन के फरिश्ते बन सकते हैं। – राजयोगी ब्र.कु. निर्वैर, महासचिव, ब्रह्माकुमारीज़

दादी जी का वो हँसमुख चेहरा व निश्छल स्नेह भुला नहीं पाये

दादी सदा कहती कि मीडिया वाले शिवबाबा के राइट हैंड हैं। इन्हीं द्वारा सारे विश्व में ईश्वरीय संदेश पहुंचेगा। मीडिया वाले जब भी व्यक्तिगत रूप से या कॉन्फ्रेंस में आते थे तो दादी सबसे मिलती थी और आध्यात्मिक ज्ञान के बारे में उमंग-उत्साह दिलाती थी। आज भी वे यहां आते हैं तो उन्हें याद करना नहीं भूलते। दादी का हँसमुख चेहरा व निश्छल स्नेह भरा व्यवहार आज भी वे भुला नहीं पाये हैं। दादी का उमंग सदा रहता था कि बाबा का संदेश सारे विश्व में पहुंचे। पहले-पहले क्रज़ी टी.वी.ञ्ज की सेवा शुरू हुई। उस समय बाबा का संदेश देने के लिए समय दिया गया। यह सुनकर दादी बहुत खुश हुई। टी.वी. द्वारा ईश्वरीय सेवा दादी के होते ही शुरू हो गई थी। दादी की दूरदर्शिता गजब की थी। सेवा के विस्तार को देख दादी ने सर्व सेवा साथियों के बीच यह संकल्प रखा कि इन सेवाओं से सभी लोगों को अवगत कराने के लिए सेवा समाचार हरेक के पास पहुंचे उसके लिए एक अपना क्रन्यूज़ पेपरञ्ज होना चाहिए। तब सबकी राय से पंद्रह दिन में एक बार क्रओमशान्ति मीडियाञ्ज निकालने का निर्णय लिया गया। जो आज बाबा का संदेश विश्व के हर कोने में पहुंच रहा है। यह सेवा वर्ष 1999 में ही शुरू हो गई थी। – राजयोगी ब्र.कु. करूणा, मल्टीमीडिया चीफ,ब्रह्माकुमारीज़

दादी के हृदय में हरेक के लिए महत्वपूर्ण स्थान रहा

दादीजी सदैव परिवार के एक-एक सदस्य को बहुत ही महत्वपूर्ण और खास समझती थीं। दादी की नज़रों में सभी एक समान महत्व रखते थे इसलिए उन्होंने कभी किसी को अलग से कोई खास टोली या गिफ्ट नहीं दिया। उन्होंने कभी किसी के अवगुण नहीं देखे, बल्कि सभी की विशेषताओं की सराहना करती रहीं। जब भी मधुबन में कोई ग्रुप आता तो दादी सभी के रहने की व्यवस्था तथा उनकी संतुष्टता का पूरा ध्यान रखती थीं। उन्होंने दैवी परिवार का मुखिया होने का रोल बखूबी निभाया। दादी पूर्णत: निरहंकारी थीं। इतने विशाल आध्यात्मिक संस्था की मुख्य प्रशासिका के रूप में अपने अधिकारों का मानवीय सद्भावना के साथ इस्तेमाल करती थीं। वह हमेशा याद कराती थीं कि यह कार्य बाबा का है और वो करा रहा है। उन्होंने बाबा पर दृढ़ निश्चय एवं समर्पण होकर सभी परिस्थितियों को पार किया। – राजयोगी ब्र.कु. बृजमोहन,अतिरिक्त महासचिव,ब्रह्माकुमारीज़

दादी जी का व्यक्तित्व पारदर्शिता से ओत-प्रोत रहा

एक बार लोकसभा के तत्कालीन विपक्ष के नेता माननीय वाजपेयी जी आबू आये थे। हमने उनको ज्ञानसरोवर में आने के लिए निमंत्रण दिया था। वहां उन्होंने भरी सभा में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहा कि दादी जी खुद ही एक बड़ी नेता हैं, उन्होंने अपने जैसे इतने सारे कार्यकत्र्ताओं को तैयार किया है, यह बहुत प्रशंसनीय कार्य है। दादीजी का व्यक्तित्व पारदॢशता से ओत-प्रोत रहा। उनके नेतृत्व में ईश्वरीय विश्व विद्यालय समाज परिवर्तन की बहुत बड़ी सेवा कर रहा है। ईश्वरीय विश्व विद्यालय एक खुली किताब है। दादी न केवल ब्रह्माकुमार-ब्रह्माकुमारियों की, राजनेताओं की भी प्रेरणास्रोत थीं। और साथ ही साथ धर्म नेताओं की भी श्रद्धेया थीं। कोई महामंडलेश्वर हो, जगद्गुरू हो, साधु-संत-महात्मा हो, चाहे उत्तर भारत के हों, चाहे दक्षिण के, दादी को बहुत सम्मान और पूज्य भावना से देखते थे। उनके लिए भी दादी आदर्श थीं।
दादी के नेतृत्व में मुख्यालय आबू पर्वत पर और देश के अन्य स्थानों पर अनेक धाॢमक सम्मेलन हुए। आये हुए सभी संत-महात्मा-गुरू लोगों ने यह अनुभव किया और अपने भाषणों में व्यक्त किया कि दादी जी एक आदर्श महिला हैं तथा आज के संसार में अनुकरण करने के योग्य एक अद्वितीय आध्यात्मिक नेता हैं। – राजयोगी ब्र.कु. मृत्युंजय,कार्यकारी सचिव,ब्रह्माकुमारीज़

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