मोदू (अरुणाचल प्रदेश):
गुणवान बच्चे देश की सच्ची सम्पति हैं। विद्यार्थियों के सर्वांगिण विकास के लिए भौतिक शिक्षा के साथ-साथ नैतिक शिक्षा की भी आवश्यकता हैँ। नैतिक शिक्षा से ही चरित्र का निर्माण होता है | चरित्र निर्माण ही शिक्षा का मूल उद्देश्य हैं।भोतिक शिक्षा भौतिकता की ओर धकेल रही है| वर्तमान बच्चो को संस्कारित बनाने के लिए भौतिक शिक्षा के साथ नैतिक शिक्षा की आवश्यकता हैं।नैतिक शिक्षा से नैतिकता आएगी | वर्तमान में बच्चो को अच्छे संस्कार कि आवश्यकता है | उक्त उदगार माउंट आबू राजस्थान से पधारे हुए प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्व विद्यालय के राजयोगी ब्रह्माकुमार भगवान भाई ने कहीं । वे आस्था एकेडमी में सभी छात्राओ और शिक्षक को जीवन में नैतिक शिक्षा का महत्त्व विषय पर बोल रहे थे |
भगवान भाई कहा कि नैतिक मूल्यों का ह्रास व्यक्तिगत, सामाजिक, राष्ट्रीय सर्व समस्या का मूल कारण है। इसलिए विद्यार्थियों को नैतिक मूल्यों एवं उच्च आदर्शों से आत्मविश्वास व आत्मचेतना मजबूत होती है | उसके अंदर सच्चाई का बोलबाला होता है | उसमे समस्या के समाधान के लिए सही समय पर सही निर्णय लेने की क्षमता होती है | उन्होंने कहा कि भौतिक शिक्षा से हम रोजगार प्राप्त कर सकते हैं, लेकिन परिवार, समाज, कार्यस्थल में परेशानी या चुनौती का मुकाबला नहीं कर सकते। नैतिक मूल्यों से व्यक्तित्व में निखार, व्यवहार में सुधार आता है।
उन्होंने कहा कि समाज सुधार के लिए नैतिक मूल्य जरूरी है। नैतिक शिक्षा की धारणा से, आंतरिक सशक्तीकरण से इच्छाओं को कम कर भौतिकवाद की आंधी से बचा जा सकता है। नैतिक शिक्षा से ही सदगुणों का विकास होता है | नैतिक शिक्षा बच्चों को संस्कारों से जोड़ती है | उन्हें उनके कर्तव्यों का ज्ञान कराती है | परिवार, समाज, समूह के नैतिक मूल्यों को स्वीकारना तथा सामाजिक रीति – रिवाजों, परम्पराओं व धर्मों का पालन करना सिखाती है |
स्थानीय के ब्रह्माकुमारी राजयोग सेवाकेंद्र की संचालिका बी के जयंती बहन जी ने कहा कि जिन बच्चों को बचपन से ही सच बोलना, सहयोग करना, दया करना, निष्पक्षता, आज्ञापालन, राष्ट्रीयता, समयबद्धता, सहिष्णुता, करुणा, आदि मानवीय गुणों को सिखाते है उन्हीं बच्चों में बाद में चलकर ये ही गुण पुष्पित, पल्लवित, व विकसित होकर चरित्र निर्माण में सहायक होते है |
वरिष्ठ पत्रकार बी के राणा जी ने सभी को राजयोग सेवाकेंद्र पर आकर नैतिक शिक्षा सिखने का निमंत्र्ण दिया |
उप प्रिंसिपल सुनाली उपाध्याय जी ने बताया की बचपन से ही बच्चों को नैतिक शिक्षा का पाठ पढ़ाने से उन्हें भले – बुरे, उचित – अनुचित का ज्ञान हो जाता है | वह समझने लगता है कि कौन सा व्यवहार सामाजिक है और कौन सा व्यवहार असामाजिक | किन व्यवहारों को करने से समाज में प्रतिष्ठा, प्रंशसा एवं लोकप्रियता मिलती है और किससे नहीं |
प्रिंसिपल श्री राजन उपाध्याय जी ने कहा कि केवल भौतिक शिक्षा से जीवन की समस्या का मुकाबला नहीं कर सकते। चरित्र उत्थान और आंतरिक शक्तियों के विकास के लिए आचार संहिता जरूरी है।
इस मोके पर बी के विश्वजीत भाई और सभी शिक्षक स्टाफ उपस्थित था |