आज्ञाकारी मतलब कदम के ऊपर कदम रखना

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आज्ञाकारी का मतलब यह है कि कदम के ऊपर कदम रखना और कदम भी पूरा फिट हो। बाबा ने कहा है कि ज्ञान की सेवा करो लेकिन नि:स्वार्थ सेवा करो।

शिवबाबा ने ब्रह्मा बाबा के 4 कदम सुनाये हैं- एक तो आज्ञाकारी बने, आज्ञाकारी बनने के कारण शक्तिशाली बन गये। दूसरा- सर्वंश त्यागी बने, तीसरा- वफादार और चौथा- फरमानबरदार बने। अगर हमें भी ब्रह्मा बाबा के समान बनना है, समीप आना है, तो ब्रह्मा बाबा की इन चार विशेषताओं को अपने में धारण करना है।
ब्रह्मा बाबा की पहली विशेषता है- आज्ञाकारी। अमृतवेले उठना कैसे है, बैठना कैसे है, योग कैसे लगाना है वो सब आज्ञा मिली हुई है। हम अमृतवेले से लेकर देखें बाबा की जो भी आज्ञा है उसको हमने पालन किया? कई अमृतवेले उठते हैं, आज्ञा मानकर बैठते हैं लेकिन चले जाते हैं निद्रालोक में। बाबा की आज्ञा है कि उठो, सकाश दो, अपने में भी शक्ति भरो, दुनिया के वायुमण्डल को चेंज करो, वो तो किया ही नहीं, सिर्फ आधी बात मानी उठकर बैठ गये। मन किसी भी उलझन में उलझा हुआ होगा तो खुशी नहीं होगी, खुशी नहीं होगी तो भारी होंगे। जैसे शरीर भारी होता तो नींद आती है। कईयों को नींद नहीं आती, लेकिन मन-बुद्धि भटकती रहती है। या तो मन की थकावट रहती है या तन की थकावट। हार्ड वर्क किया, 12 बजे सोये, दिन में आराम नहीं किया, तो तन की भी थकावट हो सकती है, जिसके कारण योग में मज़ा नहीं आयेगा, भारी-भारी लगेगा। उस समय कोशिश नहीं करो कि मैं आत्मा शान्त स्वरूप हूँ, बाबा भी शांति का सागर है, बस शांति में

चला जाऊं। ऐसे टाइम पर ज्ञान की किसी बात को मनन करना चाहिए। जब कोई भी बात सोचो तो नींद कम आती है। उस समय फरिश्ता बनकर बाबा से रूहरिहान करो, मधुबन की सीन-सीनरियां याद करो। तो पहले अपने को फ्रेश करो, पीछे परमधाम की सैर करो।
बाबा कहते हैं कर्मयोगी बनो तो कर्म करते-करते कहीं कर्म कॉन्शियस तो नहीं बन जाते? काम करते-करते काम के ही विचार चलते हैं, जो ज़रूरी नहीं होते। कई काम ऐसे होते हैं जिसमें हाथ-पाँव चलते हैं, बुद्धि से सोचने की बात कम होती है। जैसे कपड़े धुलाई कर रहे हैं, इसमें फुल बुद्धि लगाने की ज़रूरत नहीं है। कर्म और योग दोनों का बैलेन्स रखो- यह है बाबा की आज्ञा। कभी भी कोई भी काम में आज्ञाकारी हैं तो फुल आज्ञाकारी हैं? जैसे बाबा ने कहा कि प्रवृत्ति में रहना है। तो कई कहते हैं कि बाबा ने तो कहा है कि प्रवृत्ति में रहना है लेकिन यह भूल जाते हैं कि प्रवृत्ति में कमल पुष्प समान पवित्र रहना है। आज्ञाकारी का मतलब यह है कि कदम के ऊपर कदम रखना और कदम भी पूरा फिट हो। बाबा ने कहा है कि ज्ञान की सेवा करो लेकिन नि:स्वार्थ सेवा करो। नाम-मान-शान के स्वार्थ में फंसकर नहीं करो। स्वार्थ है तो वह सेवा भाव नहीं हुआ। सेवा भाव की निशानी है अगर सेवा भाव है तो हम अपने को निमित्त समझेंगे और निमित्त वाले की निशानी है निर्मान अर्थात् मान से परे।
तो हर बात में जो भी बाबा की आज्ञायें हैं जैसे याद में बैठकर भोजन बनाओ, याद में बैठ कर खाओ। लेकिन जब भोजन आता है तो पहले तो याद कर लेते हैं फिर भूल जाते हैं। बाबा ने यह तो कहा नहीं है कि एक गिट्टी मुझको खिलाओ, बाकी आप खाओ। बाबा ने तो कहा है कि याद में नहीं खाते तो माया खा जाती है। फिर माया में ताकत ज्य़ादा आ जाती है इसलिए आपका सामना करती है। हमको यहाँ की कमाई ही सतयुग में खानी है। तो 21 जन्मों के लिए हमको अभी ही जमा करना है।

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