निमित्त हम बैठे हैं। खुद तो बाबा द्वारा पावन बने हैं, दुनिया को भी पावन बनाने के लिए बैठे हुए हैं। बाकी इस देह से कोई लगाव नहीं है। लगाव होगा तो अभिमान भी होगा, अहंकार भी होगा।
निरहंकारी बनेंगे तो नम्रता आयेगी। ज़रा भी अहंकार होगा तो नम्रता ठहर नहीं सकेगी। अहंकार नम्रता को धक्का देकर निकाल देता है। नम्रता बड़ा मीठा बनाती है। अहंकार किसी को दबाने की कोशिश करता है। नम्रता स्नेही, सहयोगी बना देती है। नम्रता भाव से हम भगवान के भी नज़दीक आ जाते हैं, अहंकार से भगवान से भी दूर चले जाते हैं। नम्रता से भगवान के भी सहयोगी बन सकते हैं। तो संगमयुग की घडिय़ों में हम ऐसा पुरूषार्थ करें जो दिन-प्रतिदिन हमारी चढ़ती कला हो। दिन तो छोड़ो, सुबह से रात तक आज मेरी कितनी चढ़ती कला हुई? कल क्या थे, आज कितना आगे बढ़े हैं! आगे बढ़ते जा रहे हैं तो लगता है अभी उड़ती कला भी आ जायेगी। पहले जैसे रूकती या ठहरती कला न हो, उतरती कला न हो, इससे छूट जायें। दिनों-दिन चढ़ती कला हो तो अपने में विश्वास बैठता है। अभी दिखाई पड़ता है ड्रामा में हमारी चढ़ती कला का अच्छा पार्ट है। हमारे निमित्त औरों को भी फायदा मिल रहा है। उसकी खुशी और नशा उड़ती कला में ले आता है। जैसे बाबा उड़ा रहा है, बाबा चला रहा है। साथ चल रहे हैं। अभी उड़ा रहा है। उडऩे में क्या चाहिए? वायब्रेशन। पंछी एक-दो से न्यारे हैं। एक-दो
से अलग हैं। लेकिन वायब्रेशन ऐसा होता है जो एक उड़ता है तो दूसरे का दिल करता है मैं भी उडूं। दिन-प्रतिदिन इतने प्योर बनते जा रहे हैं, वृत्ति शुद्ध बनती जा रही है, प्युअर वायब्रेशन से उड़ते जा रहे हैं। पंछी हल्का है तब उड़ सकता है। किसी भी प्रकार की डाली को पकड़ कर नहीं रखता। कैसे उडूं यह संकल्प भी आया तो किसी बात को पकड़ कर बैठा है। उसको कोई आधार चाहिए परन्तु अपने को निराधार बना लें। एक बाबा का सूक्ष्म सहारा है, साथ है। एक ही परमात्मा बाप सर्वशक्तिवान है, वो सहारा भी देता है, साथ भी देता है, लेकिन निराधार भी बनाता है। और कोई भी ऐसा नहीं कर सकता। आगे-पीछे हमारी देखभाल करता है। हम भी उनको अन्दर से छोड़ते नहीं हैं। बहुत सूक्ष्म तार मज़बूत रखी है जो खींच कर ले जा रही है। इसी कारण से कभी माया खींच नहीं सकती। कोई भयानक रूप डरा नहीं सकता।
डरना भी देहभान की निशानी है। जितनी देही अभिमानी स्थिति होगी उतना निर्भय होंगे।