सर्वशक्तियों व सर्वगुणों के मर्म को जानें…

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जैसे सामान्य व्यक्ति भी अपनी रोज़मर्रा की आवश्यकताओं का स्टॉक अपने पास जमा रखता है, एक हफ्ते के लिए, महीने के लिए व साल भर के लिए। ताकि उसके जीवन की ज़रूरतें समय पर पूरी हो सकें। एक यात्री जब कहीं जाता है तो भी अपनी ज़रूरी चीज़ों को अपने साथ ले जाता है ताकि उसकी यात्रा चाहे दो दिन की हो, चाहे तीन दिन की, चाहे महीने भर की, उसमें उन आवश्यक चीज़ों की कमी महसूस न हो। लेकिन जिन्होंने श्रेष्ठ और महान बनने की राह को चुना है और सही अर्थ में पहचाना है, वे भी आवश्यक स्टॉक जमा कर जीवन की आगे की यात्रा को सुगम बनाते हैं। अगर हम महान बनने की दिशा में अग्रसर हैं, तो हमें भी आवश्यक स्टॉक जमा करना ही होगा। जब हम कहते हैं और बाबा ने भी हमें सुनाया है कि तुम्हारा एक छोटा-सा ये जन्म बहुत मूल्यवान है। सारे कल्प में सुख, शांति और समृद्धि बनी रहे, उसके लिए स्टॉक जमा करने का समय अभी ही है। बाबा ने कहा, तुम मास्टर सर्वशक्तिवान हो, जो चाहो आप शक्तियों का स्टॉक जमा कर सकते हो। महान वो है जो सर्वशक्तियों से स्टॉक को सम्पन्न कर दे, भरपूर कर दे ताकि जीवन में आने वाली चुनौतियों, परिस्थितियों और उलझनों में उन शक्तियों का प्रयोग कर आगे बढ़ सकें। अगर शक्तियों का स्टॉक पर्याप्त नहीं होगा तो परिस्थितियों के वश हो जायेंगे, निर्बल हो जायेंगे और रुक जायेंगे।
देखा जाये तो देवताओं की महिमा में भी गाते हैं, सर्वगुण सम्पन्न, सोलह कला सम्पूर्ण, सम्पूर्ण निर्विकारी, मर्यादा पुरुषोत्तम, अहिंसा परमो धर्म। लेकिन यहां समझने की बात यह है कि देवताओं को सर्वशक्ति सम्पन्न नहीं कहा गया है, सर्वगुण सम्पन्न कहा गया है। इस मर्म को अच्छी तरह से समझना है। जैसे कहते हैं, ब्राह्मण सो फरिश्ता, फरिश्ता सो देवता। ब्राह्मण माना परमात्मा को पहचानना, परमात्मा द्वारा दी गई श्रीमत अनुरुप जीवन को ढालना और चलना, उसी को ब्राह्मण कहेंगे। फरिश्ता माना सर्वशक्तियों से सम्पन्न, परमात्म कार्य को धरा पर साकार करना और निर्बल की सहायता करना, मदद करना। तो ब्राह्मण जो परमात्मा द्वारा प्राप्त शक्तियों का जीवन में प्रयोग और उपयोग करते हैं तो वे गुण बनते हैं। जैसे किसी को हम देखते हैं तो कहते हैं कि ये शांत है। शांति को शक्ति भी कहते हैं और शांति को गुण भी कहते हैं। क्योंकि लगातार व्यक्ति शांति के सागर की शांति का प्रयोग अपने जीवन में करता है तो वो गुण बन जाता है। ऐसे ही प्रेम के सागर परमात्मा के प्रेम की शक्ति का प्रयोग अपने जीवन में करता है तो वो प्रेम के गुण के रूप में परिवर्तित होता है। सबके लिए प्रेम उसकी एक निजी सम्पत्ति बन जाती है। कैसी भी परिस्थिति हो, कैसी भी बात हो, लेकिन एक उस शक्ति की मास्टरी होने के कारण वो सील बन जाता है, उसी में निपुण बन जाता है, सम्पूर्ण बन जाता है। तब तो हम कहते हैं कि ये व्यक्ति तो जैसे शांत मूर्त है, प्रेम स्वरूप है।
इसी तरह हमें एक-एक शक्ति को गुणों में परिवर्तित करना है अर्थात् उस शक्ति का यथार्थ रूप में उपयोग व प्रयोग करते हुए उच्चता को बनाये रखना है और सदा बनाये रखना है, तभी हमें वो पदवी व डिग्री मिलती है गुणों(वर्चूज) की। तब हम देवता बनते हैं। ये कार्य, ये स्टॉक जमा करने का समय अभी ही है जबकि परमात्मा हमारे साथ है और वो हमें देवता बनाने के लिए ही आया है। कैसे बनेंगे, उसकी विधि भी हमें बता रहा है और हमारी हर तरह से पालना, मार्गदर्शन कर रहा है, यह हमें कभी नहीं भूलना चाहिए। इसका लाभ जो ले लेगा वो लक्की स्टार बन जायेगा। स्टार वही बनता है जिसके पास ऐसा स्टॉक है। तो आइये, हम सभी इस तरह से परमात्मा के निर्देशन में स्वयं को संवारे, सजायें और उन्हीं के अनुरूप स्टार बनकर हम अपने पूरे कल्प के स्टॉक को जमा करें। अभी नहीं तो कभी नहीं। ये कभी नहीं भूलना।

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