श्रीमत समझकर सहना और समाना है

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मेरा नहीं है तो ‘मैं-पन’ भी खत्म। मैं-पन ही तो सारा नुकसान करता है। मैंने किया, मैं बहुत गुणवान हूँ, मेरे में यह बहुत शक्ति है, मेरे में शक्ति आयी कहाँ से? पहले थी क्या! परमात्मा की देन है।

कइयों में सहनशक्ति है, सहन करते रहते हैं। लेकिन सहन करना भी दो प्रकार से होता है। एक होता है मजबूरी से सहन करना, एक होता है बाबा की आज्ञा से कि तुमको सहनशीलता धारण करनी है। तो अगर हम बाबा की आज्ञा मानते हैं तो उसकी खुशी हमारे अन्दर आ जाती है। और मजबूरी से करते हैं तो अंदर रोते रहेंगे, बाहर से सहन करते रहेंगे। उसका फल नहीं मिलेगा, खुशी नहीं होगी। और सचमुच बाबा की श्रीमत समझकर हमने सहन किया तो उसी समय खुशी होती है। भले लोग समझें कि इसकी हार हुई, इसकी जीत हुई। लेकिन वह हार भी हमको खुशी दिलाती है, क्योंकि मैं परमात्मा के आगे तो ठीक रही। चलो उसने मेरे को समझा कि यह तो ढीली है, यह तो सामना कर ही नहीं सकती है। इसने हारा मैंने जीत लिया। चलो जीत लिया लेकिन परमात्मा के आगे तो मैंने जीता ना! आत्मा के आगे हारा, परमात्मा के आगे जीता। आखिर साथ मेरे को परमात्मा देगा या क्रोधी आत्मा देगी? उसमें तो मैं पास हो गयी ना! तो बाबा की आज्ञा समझ करके अगर हम ठीक चलते हैं तो उसका फल ज़रूर मिलता है। उसी समय हमको खुशी होती है वाह! बाबा ने कितनी शक्ति दी हम जीत गये और उसमें अहम नहीं। मैं बहुत होशियार हो गयी, नहीं। बाबा ने शक्ति दी, बाबा की देन है, प्रसाद है। प्रसाद को कोई अपना नहीं समझता है। चाहे बनाने वाली वही माता हो, उसी ने भोग लगाया हो, लेकिन प्रसाद जब हो गया तो कोई नहीं कहेगा मेरा है। बांट रही हूँ। मेरा नहीं है तो ‘मैं-पन’ भी खत्म। मैं-पन ही तो सारा नुकसान करता है। मैंने किया, मैं बहुत गुणवान हूँ, मेरे में यह बहुत शक्ति है, मेरे में शक्ति आयी कहाँ से? पहले थी क्या! परमात्मा की देन है। तो बाबा-बाबा कहते चलो, बाबा ने यह दिया, बाबा ने यह दिया…। बस, बाबा दिल से निकले तो बेड़ा पार। और कुछ बोल नहीं सकते हो, एक प्वाइंट भी रिपीट नहीं कर सकते हो लेकिन दिल से बाबा-बाबा कहते रहते हो तो आप नम्बर ले लेंगे, क्योंकि बाबा शक्तियां देगा, समय पर मदद करेगा, मैं सच्ची दिल से बाबा का हूँ, तो सच्ची दिल पर साहिब राज़ी ज़रूर होगा। बंधा हुआ है मेरी सच्चाई पर। मुझे नहीं देगा तो किसको देगा और वह दाता है, उसको क्या कमी है जो हमको न देवे। इसीलिए बाबा कहते हैं वर्तमान समय जो बातें हैं, उन्हें रियलाइज़ करो। रियलाइज़ अपने को करना है दूसरे को नहीं क्योंकि बाबा ने एक बार कहा है कि हमारे बच्चों की दूर की आँख बहुत तेज है, नज़दीक की आँख थोड़ी धुंधली है, वह तेज नहीं है। अपने को देखने की आँख हिलती है और दूसरे को देखने की, दूर की नज़र बड़ी तेज है। दूसरे की कमी को मैं बढ़ाऊंगी, विस्तार भी करूंगी, रामकथा बनाके सुनाऊंगी। लेकिन अपनी कमी छिपाऊंगी, दबाऊंगी तो ये सेल्फ रियलाइज़ तो नहीं हुआ ना!

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