व्यर्थ संस्कारों को परिवर्तन कैसे करें…!

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प्रश्न : संस्कारों को बदली किया जा सकता है या नहीं? किस आधार पर हम परख सकते हैं कि मेरे संस्कार ठीक हैं?
उत्तर : ज्ञान का अर्थ ही है पुराने संस्कारों को बदलना। हम संस्कारों को ही तमोप्रधान से सतोप्रधान बनाते हैं। जहाँ परखने की बात है वह तो सहज है। यूँ तो अपने संस्कारों को जान सकते हैं परन्तु फिर भी समझों नहीं पता पड़ता तो जैसे किसके गुण वर्णन करते हैं – फलाने में यह यह गुण हैं, तो देखना है मेरे में वे गुण हैं? इसको कहा जाता है अपने को परखना। अगर मैंने अपने संस्कार को जान लिया तो फिर उसको ज्ञान से परिवर्तन करना है। परिवर्तन किया तो उसको कहा जायेगा रियलाइज़ किया। अगर परिवर्तन नहीं किया तो कहेंगे पूर्ण रूप से रियलाइज़ नहीं हुआ है। जिस संस्कार को मैंने रियलाइज़ किया कि यह ठीक है, वह देखना है- सबको ठीक लगता है? यदि औरों को वह ठीक नहीं लगता तो उसे ठीक नहीं कहेंगे। हम देखते हैं यह मेरा संस्कार औरों को रूकावट डालता है तो समझना चाहिए इसको बदलना ज़रूरी है। अब उसको बदलने के लिए ज्ञान की शक्ति चाहिए। एक है अपने से रियलाइज़ करना, दूसरा है कि दूसरे हमको रिज़ल्ट में राइट नहीं समझते हैं तो रियलाइज़ माना मैं उसको चेंज करूं।
यदि हमारा संस्कार सर्विस का सबूत नहीं देता है तो इसका मतलब कि वह संस्कार हमारा ठीक नहीं है उसको हमें बदलना है। नहीं बदलते तो ज्ञान से रियलाइज़ नहीं किया है। हमें संस्कार को उस दृष्टि व उस अन्तर में देखना है कि सर्विस करता है व नुकसान करता है।

प्रश्न : कई बार ऐसा होता है कि अपने को परख भी लेते परन्तु फिर निर्णय नहीं कर सकते। उसको क्या कहा जाये?
उत्तर : इसे ज्ञान की कमी ही कहेंगे। इस कमी को भरने के लिए रोज़ जो बाबा की मुरली, बाबा की शिक्षायें, समय-समय पर जो बाबा युक्तियां बतलाते हैं उन्हें स्वयं प्रति समझकर उसकी गहराई में जाओ। लक्ष्य हो कि यह बाबा का एक-एक रत्न मुझे प्रैक्टिकल में लाना है। इस प्रकार अटेन्शन रखने से भी कमी भर सकती है।
ज्ञान की कमी को भरने के लिए जो शक्ति चाहिए उसके लिए मैं समझती हूँ एक तो बाबा की मुरली बहुत ज़रूरी है और दूसरा जो ऐसा शक्तिशाली हो उसके संग से भी खुद में शक्ति भर सकते हैं। जितना-जितना उसके संग में कत्र्तव्य करते जायेंगे तो अपने में शक्ति भरती जायेगी। हरेक कमज़ोरी को मिटाने के लिए मैं समझती हूँ रूहानी नशा ज़रूर चाहिए।

प्रश्न : अपने में निर्बलता व कमज़ोरी उत्पन्न ही न हो उसके लिए क्या करना चाहिए?
उत्तर : इसके लिए अमृतवेले के योग और मुरली पर पूरा-पूरा ध्यान दो। कभी भी किसी भी कारण से यह मिस न हो। दूसरा – कभी भी अपनी कमज़ोरी का वर्णन न करो, सदा अपनी हिम्मत को देखो। अपनी हिम्मत पर निश्चय। निश्चय और बाबा-बाबा की धुन लगी हुई हो तो निर्बलता का खात्मा होता जायेगा। मेरा बाबा बैठा है। हर बात में मुझे बाबा ज़रूर मदद करेगा। बस, बाबा बैठा है फिर क्या।
दृढ़ संकल्प कमज़ोरी को मिटा देता है। दृढ़ संकल्प करो कि मुझे करना है तो देखो कर लेंगे। दृढ़ संकल्प किया कि हमें स्वराज्य लेना है तो ले ही लिया ना। हम तो सर्वशक्तिमान बाप के बच्चे हैं, हमारा दृढ़ संकल्प है हमें विश्व का कल्याण करना ही है, तो हम क्यों नहीं कर सकते। है सारी दृढ़ संकल्प की बात।

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