पृथ्वी भर की सारी सम्पदायें भी आपकी सोच के आगे नगण्य हैं…

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चेहरे का सौंदर्य 15 प्रतिशत ही जीवन की किसी सफलता में आधारमूर्त बनता है, जबकि सोच और जीवनशैली का योगदान 85 प्रतिशत है। व्यक्ति की जैसी सोच होगी वैसे ही उसके कर्म होंगे। वैसा ही उसका चरित्र बनेगा।

स्वास्थ्य बेशकीमती दौलत है। स्वस्थ जीवन का स्वामी होने के लिए जितना शरीर का स्वस्थ होना ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी मनोमस्तिष्क का स्वास्थ्य है। स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मन का आधार बनता है, और स्वस्थ मन ही स्वस्थ शरीर का निमित्त। शारीरिक स्वास्थ्य की उपलब्धि के लिए दुनिया भर के बहुत चिकित्सक हैं तो कई चिकित्सालय भी हैं। सात्विक और संतुलित आहार, व्यायाम, स्वच्छ जलवायु, शरीर के स्वास्थ्य को उपलब्ध करने का यह सहज सोपान है। सम्पूर्ण स्वास्थ्य की दृष्टि से शरीर स्वास्थ्य भी उतना ही ज़रूरी है।
अगर हम शरीर की दृष्टि से देखें तो इंसान शरीर से बहुत ही निर्बल और असहाय नज़र आता है। वह न तो किसी चिडिय़ा की तरह आसमान में उड़ सकता है और न ही किसी मछली की तरह पानी में तैर सकता है और न ही किसी तितली या भंवरे की तरह फूलों पर मंडरा सकता है। मनुष्य के पास न तो बाज-सी दृष्टि है और न बाघ-सी ताकत, न ही चीते-सी फूर्ति है। इंसान की हैसियत इतनी-सी होती है कि छोटा-सा मच्छर, एक छोटा-सा बिच्छू भी डंक मार दे तो वो तिलमिला उठता है। उसकी काया उसी समय धराशायी हो जाती है।
इंसान अपनी शरीर की दृष्टि से बहुत समर्थ, सक्षम नहीं होता मगर कुदरत ने मनुष्य को एक बहुत बड़ी अकूत संपदा दी है। जिसके आगे पृथ्वी भर की सारी संपदायें तुच्छ और नगण्य हैं। वह है क्रसोचने की क्षमताञ्ज। अगर मनुष्य के जीवन से सोचने की क्षमता को अलग कर दिया जाये तो शायद मनुष्य पशु तुल्य ही होगा और किसी जानवर को सोचने की क्षमता प्रदान कर दी जाए तो उसकी स्थिति मनुष्य के समकक्ष होगी।

सोच ही मनुष्य है…
मनुष्य के पास विचार शक्ति एक ऐसी अनुपम सौगात है जिसके चलते वो धरती के सारे पशु और पक्षियों के बीच अपने आप में सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ कृति बन सकता है। आप ज़रा ऐसे इंसान की कल्पना करें कि जिसके पास सोचने की क्षमता नहीं है। आप ताज्जुब करेंगे, तब हर मनुष्य चाहे वो बालक हो या प्रौढ़, वनमानुष का चेहरा लिए हुए होगा। कोई व्यक्ति इसलिए जड़बुद्धि कहलाता है क्योंकि उसका मस्तिष्क विकसित नहीं हुआ है। मस्तिष्क की अपरिपक्वता व्यक्ति को पूरे शरीर से अपंग भी बना देती है। जीवन-विज्ञान कहता है कि व्यक्ति का मस्तिष्क विकसित हो चुका है, वह भले ही हेलेन केलर की तरह अंधा, बधीर या मूक हो, लेकिन ऐसा सृजन कर सकता है जो अविस्मरणीय हो, अनुकरणीय हो।
सोच ही मनुष्य है, सोच को अगर किसी भी जन्तु के साथ जोड़ दिया जाये तो वह भी मनुष्य हो जायेगा। इंसान के पास जीवन की एक ऐसी अनुपम सौगात है, फिर भी कोई इंसान अपनी सोच को स्वस्थ रखने के लिए सचेष्ट(प्रयत्नशील) नहीं है। अगर शरीर जुकाम या बुखार से ग्रस्त हो जाये तो हम तुरंत डॉक्टर की तलाश करते हैं, मगर अपनी विकृत, परिस्कृत सोच को संस्कारित करने के लिए, उनको स्वस्थ बनाने के लिए भला कितना उपाय कर पाते हैं! जीवन में पाई जाने वाली किसी भी सफलता का अगर वास्तविक रूप से किसी को श्रेय दिया जाना चाहिए तो वह व्यक्ति की अपनी सोच और कार्यशैली है।

आपकी सुंदरता का आधार आपकी सोच…
ज्य़ादातर व्यक्ति अपने चेहरे की सुंदरता और स्मार्टनेस पर ही अधिक ध्यान देता है लेकिन किसी का भी ध्यान मन की खूबसूरती और स्वास्थ्य पर नहीं जाता। जबकि चेहरे का सौंदर्य पंद्रह प्रतिशत ही जीवन की किसी सफलता में आधारमूर्त बनता है, किंतु सोच और जीवनशैली का योगदान 85 प्रतिशत है। व्यक्ति की जैसी सोच होगी वैसे ही उसके कर्म होंगे। वैसा ही उसका चरित्र बनेगा। जो व्यक्ति अपने चरित्र को निर्मल रखना चाहता है, अपनी आदतों और कर्मों को सुधारना चाहता है वो अपना ध्यान जड़ों की ओर आकर्षित करेगा। जब तक वो जड़ों तक नहीं पहुंचेगा, वह शरीर से स्वस्थ होकर भी मन से हमेशा रूग्ण बना रहेगा। जिस दिन तुम अपने मन से स्वस्थ हो जाओगे, तुम्हारा शरीर अपने आप स्वास्थ्य के सोपानों को पार करने लग जायेगा।

बेहतर कार्यों के लिए बुवाई…
मनुष्य का मस्तिष्क एक बगीचे की तरह ही है। जिसमें अगर अच्छे बीज बोओ तो अच्छे फल और फूल बनेंगे। और बीज कैक्टस और कांटो के होंगे तो वो कैक्टस और कांटे ही पैदा करेंगे। अगर बगीचे में कुछ भी बोया गया न हो तो निश्चित है कि घास-फूस तो उग ही जायेगी। इंसान दो तरफ प्रयास करते हैं, पहला, अच्छे बीच मस्तिष्क के बगीचे में बोये जायें, दूसरा, अवांछित, खरपतवार, घास-फूस उग आई है, उसे उखाड़ फेंके। ऐसा नहीं कि केवल प्रेम और सम्मान के ही बीज बोने हैं, वरन क्रोध, वैर की जो अनचाही झाडिय़ां उग गई हैं, उन्हें भी समूल नष्ट करना होगा।
व्यक्ति माली की तरह मस्तिष्क के बगीचे की निराई-गुड़ाई का पूरा-पूरा ख्याल रखे, वरना जंगली घासें ऐसी जम जायेंगी कि उन्हें निर्मूल(जिसमें जड़ न हो) करना मुश्किल होगा। आपका अपना दृष्टिकोण आध्यात्मिक बनाना होगा जिससे आप उन्नत संकल्पों को पकड़ सकें जो ऐसी कुछ बातें मिल जायें जो काम की हों। जो भी सार मिले उसे ग्रहण कर लें और थोथा उड़ा दें। हर स्वीकारे सोच और विचार को ग्रहण कर लें और शेष को एक तरफ कर दें।
जैसा बीज बोओगे वैसा ही फल पाओगे। आम के बीज बोओगे तो आम के फल मिलेंगे। बबूल के बीज बोओगो तो बबूल के फल मिलेंगे। जैसा आप सोचेंगे वैसा ही आपके जीवन में घटित होगा।

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