मुख पृष्ठब्र.कु. शिवानीपरिस्थिति पर नहीं…स्व-स्थिति पर ध्यान दें

परिस्थिति पर नहीं…स्व-स्थिति पर ध्यान दें

वर्तमान समय में हर घर में एक ऐसी आत्मा चाहिए, जो पूरे घर को बदल दे। एक संकल्प, एक शक्तिशाली मन, एक सोच आई हुई परिस्थिति का सामना करने की शक्ति दे देती है। लेकिन बोलने का तरीका, सुनाने का तरीका और उसके बारे में सोच करके, बोल करके छोटी बात को बड़ा बना दिया। अगर छोटी बात बड़ी बन सकती है तो क्या बड़ी बात छोटी नहीं बन सकती है? परमात्मा कहते हैं हम चाहें तो राई को पहाड़ बना दें और पहाड़ को राई बनाके, उसे रूई बनाके, फूँक मारकर उड़ा दें। फिर तो बात ही खत्म हो जाती है। छोटी भी नहीं होती है, खत्म ही हो जाती है। हमारे जीवन में हर रोज़ बातें आती हैं। बातें मतलब जीवन की कोई बहुत बड़ी मुसीबत नहीं। छोटी-छोटी बातें सारा दिन आती हैं।
जब बातें या परिस्थितियां हमारे अनुसार नहीं होतीं, तो हमारे मन की स्थिति डिस्टर्ब हो जाती है। आप अपने जीवन को देखें। इस पिछले हफ्ते में बातें आई थी। आज सारा दिन भी वो बातें आई थी, जो मेरे अनुसार नहीं थी। जब वो बात आई थी, तो मेरे मन की स्थिति कैसी थी। मेरे शब्द और व्यवहार कैसे थे। क्या उस बात ने मेरे मन की स्थिति को थोड़ा-सा हलचल में लाया? चिंता, परेशानी, चिड़चिड़ापन, नाराज़गी आई? ये सब है परिस्थिति का मेरे मन की स्थिति पर असर। और कुछ नहीं तो थोड़ा-सा उस बात के बारे मेें सोचना। उसको ऐसा नहीं करना चाहिए था, उसने ऐसा क्यों किया, सोचना। अब देखना कि क्या उस परिस्थिति ने मेरे मन की स्थिति पर प्रभाव डाला।
इसे एक प्रयोग से समझते हैं। अपने दोनों हाथ आगे कीजिए। बाएं हाथ पर परिस्थिति को रखिए और दाएं हाथ पर मन की स्थिति को रखिए। परिस्थिति यानी पर-स्थिति। मतलब किसी और की स्थिति। स्व-स्थिति मतलब मेरी स्थिति। अब दूसरा प्रश्न अपने आपसे करें कि दोनों में से मेरे नियंत्रण में कौन-सी है? पर-स्थिति या स्व-स्थिति?
आज का सबसे पहला होमवर्क कि जब भी कोई परिस्थिति आए तो सबसे पहले स्व-स्थिति पर ध्यान रखना। क्योंकि वो मेरे नियंत्रण में है। कहीं कुछ होता है, वो हमारे नियंत्रण में नहीं है। अभी कुछ और भी होगा, जो अपने नियंत्रण में है नहीं। मौसम में गर्मी है, अपने कंट्रोल में है? नहीं। इन सबके बारे में सोचना कैसे है? आप सोचते जाओ, कितनी गर्मी है। गर्मी तो वैसे ही रहेगी, लेकिन जितना सोचेंगे कितनी गर्मी है, कितनी गर्मी है तो उस सोच के कारण गर्मी मुझे ज्य़ादा तंग करने लगेगी। क्या हम गर्मी के बारे में अपनी सोच बदल सकते हैं? उसकी जगह यह बोल सकते हैं कि कितना बढिय़ा मौसम है? ये सारी प्रकृति मेरा कितना सहयोग करती है। अभी तूफान हो सकता था, बारिश हो सकती थी, लेकिन कितना सुंदर मौसम है।
सोच बदलनी है। परिस्थिति हमारे हाथ में नहीं है लेकिन मन की स्थिति मेरे कंट्रोल में है। जैसे ही उस परिस्थिति के बारे में हम अपनी सोच को बदलते हैं, चाहे परिस्थिति बदले या न बदले, मन की स्थिति बदलनी शुरू हो जाती है। मन को सुकून, शान्ति, खुशी, शक्ति मिलनी शुरू हो जाती है। लेकिन सोच की वजह से जो मन की शक्ति घटी, वो नहीं बढ़ सकती फिर से।

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