मुख पृष्ठब्र.कु. शिवानीहमें वो करना है जो हमारे और दूसरों के लिए सही है

हमें वो करना है जो हमारे और दूसरों के लिए सही है

हम जितना मेडिटेशन करते जाते हैं अपने अन्दर ताकत भरती जाती है। ताकत मतलब क्या कि मेरे मन की स्थिति आपके ऊपर डिपेंडेंट नहीं है। यही है ना सिर्फ! मेरे मन की स्थिति परिस्थिति पर, व्यक्ति पर, वस्तु पर डिपेंडेंट नहीं है। मेरे मन की स्थिति मेरी अपनी है। इसका मतलब धागा कट बीच का। अब जैसे ही ये धागा कटेगा, अभी भी प्यार है, बहुत प्यार है, लेकिन अब क्या नहीं है? अब अगर वो दर्द में जाते हैं तो मेरे पास च्वॉइस है। क्योंकि धागा कट चुका है बीच का, अब धागा कट गया मतलब मैंने ये रियलाइज़ कर लिया है कि अब अगर वो दर्द में जायेंगे तो मुझे जाना ही है। मेरे पास च्वॉइस है।
इस समय अपने लिए और उनके फायदे के लिए है। मैं चूज़ करता हूँ कैसे रहना है स्टेबल, क्योंकि मैं स्टेबल रहता हूँ। उस समय भी प्यार दे रहा हूँ, ये बहुत बड़ी गलतफहमी है। जो हम कहते हैं कि अगर अध्यात्म का अभ्यास करेंगे, मेडिटेशन करेंगे तो हम बहुत डिटैच हो जायेंगे। तो डिटैच शब्द को कैसे लेते हैं? बहुत निगेटिव। डिटैच हो जायेंगे तो ये समझते हैं कि ये अपने घर से, अपने परिवार से कैसे हो जायेंगे, बहुत रूखे-रूखे हो जायेंगे। ये ख्याल नहीं करेंगे, ये ध्यान नहीं देंगे। वास्तव में तो वो क्या करेंगे और भी ज्य़ादा अच्छी तरह से कर सकेंगे क्योंकि अब वो जो करेंगे उनके लिए करेंगे। वो गुस्सा करेंगे तो भी आप शांत रहेंगे तो आपका रिश्ता पहले से भी बैटर हो जायेगा। इसका मतलब आपकी एक्सपेक्टेशन्स औरों से कम होती जायेगी। क्योंकि अब हमारी स्थिति उनके बोल या उनके व्यवहार पर डिपेंडेंट नहीं है। जैसे ही ये स्थिति की प्रैक्टिस होने लगी वैसे ही एक्सपेक्टेशन्स धीरे-धीरे खत्म।
आपको ये करना आपके लिए अच्छा है। आप पढ़ोगे तो आपके माक्र्स अच्छे आयेंगे, ये आपके लिए अच्छा है। मेरी खुशी में कोई ऊपर-नीचे नहीं होने वाला आपकी परसेंटेज के साथ। अभी क्या हो रहा है एक प्रतिशत ज्य़ादा तो ज्य़ादा खुशी, 2 प्रतिशत कम आ गये तो हमारे भी दो प्रतिशत कम खुशी। तो हमारी भी खुशी उनके साथ ऊपर-नीचे होती है, तो हम उनके ऊपर डिपेंड हुए। तो डिटैचमेंट हमें और भी क्या बना देगी? स्ट्रॉन्ग। और जितना स्ट्रॉन्ग बना देगी उतने हमारे रिश्ते? इस बात का ध्यान रखना है कि कई बार हमारे परिवार में से एक जन आता है मेडिटेशन करने के लिए, सीखने के लिए तो बाकी घर के लोग रोकने लगते हैं उनको। पिक्चर जायेंगे कोई नहीं रोकेगा, किटी पार्टी में जायेंगे, इधर-उधर जायेंगे कोई नहीं रोकेगा, और ये बोलेंगे कि जाना चाहिए, मिलना चाहिए सबको, करना चाहिए सब, जो सारी दुनिया कर रही है। लेकिन यहाँ जायेंगे तो… क्योंकि हमें लगता है वहाँ जायेंगे तो ये गया। तो ये सोचना है कहाँ हमारा और कहाँ हमारे परिवार का फायदा हो रहा है और कहां और ही नुकसान हो रहा है, ये ज़रूरी है। लेकिन हम सिर्फ ये देखते हैं कि सब लोग क्या कर रहे हैं! यही देखेंगे ना! तो जो सब लोग कर रहे हैं वो सही हो गया। ये नहीं देखते कि जो सब लोग कर रहे हैं वो सभी लोगों का रिज़ल्ट क्या है, वो सब कर-कर के। जो सब लोग कर रहे हैं वो भी हम करेंगे, तो जो सबका रिज़ल्ट होगा वो ही फिर हमारा भी रिज़ल्ट होगा। अगर हम अच्छा कोई और रिज़ल्ट चाहते हैं तो हमें कुछ डिफ्रेंट करना पड़ेगा। और उसके लिए हमें डिफ्रेंट सोचना पड़ेगा।

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