परमात्म ऊर्जा

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ज्ञानस्वरूप होने के बाद व मास्टर नॉलेजफुल, मास्टर सर्वशक्तिवान होने के बाद अगर कोई ऐसा कर्म जो युक्तियुक्त नहीं है वह कर लेते हो, तो इस कर्म का बन्धन अज्ञान काल के कर्मबन्धन से पद्यगुणा ज्य़ादा है। इस कारण बन्धन युक्त आत्मा स्वतन्त्र न होने कारण जो चाहे वह नहीं कर पाती। महसूस करते हैं कि यह नहीं होना चाहिए, यह होना चाहिए, यह मिट जाए, खुशी का अनुभव हो जाए, हल्कापन आ जाए, सन्तुष्टता का अनुभव हो जाए, सर्विस सक्सेसफुल हो जाए व दैवी परिवार के समीप और स्नेही बन जाएं। लेकिन किए हुए कर्मों के बन्धन कारण चाहते हुए भी वह अनुभव नहीं कर पाते हैं। इस कारण अपने आपसे व अपने पुरूषार्थ से अनेक आत्माओं को सन्तुष्ट नहीं कर सकते हैं और न रह सकते हैं। इसलिए इस कर्मों की गुह्य गति को जानकर अर्थात् त्रिकालदर्शी बनकर हर कर्म करो, तब ही कर्मातीत बन सकेंगे। छोटी गलतियां संकल्प रूप में भी हो जाती हैं, उनका हिसाब-किताब बहुत कड़ा बनता है। छोटी गलती अब बड़ी समझनी है। जैसे अति स्वच्छ वस्तु के अन्दर छोटा-सा दाग भी बड़ा दिखाई देता है। ऐसे ही वर्तमान समय अति स्वच्छ, सम्पूर्ण स्थिति के समीप आ रहे हो। इसलिए छोटी-सी गलती भी अब बड़े रूप में गिनती की जाएगी। इसलिए इसमें भी अनजान नहीं रहना है कि यह छोटी-छोटी गलतियां हैं, यह तो होंगी ही। नहीं। अब समय बदल गया। समय के साथ-साथ पुरूषार्थ की रफ्तार बदल गई। वर्तमान समय के प्रमाण छोटी-सी गलती भी बड़ी कमज़ोरी के रूप में गिनती की जाती है। इसलिए कदम-कदम पर सावधान! एक छोटी-सी गलती बहुत समय के लिए अपनी प्राप्ति से वंचित कर देती है। इसलिए नॉलेजफुल अर्थात् लाइट हाउस, माइट हाउस बनो। अनेक आत्माओं को रास्ता दिखाने वाले स्वयं ही रास्ते चलते-चलते रूक जाएं तो औरों को रास्ता दिखाने के निमित्त कैसे बनेंगे? इसलिए सदा विघ्न विनाशक बनो।

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