करेली: श्रीकृष्ण के चरित्र को आत्मसात करना होगा -ब्रह्माकुमारी  

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करेली, मध्य प्रदेश : प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय के स्थानीय सेवाकेंद्र प्रभु उपहार भवन करेली में श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का महापर्व धूम-धाम से मनाया गया। कार्यक्रम में फरिश्ते ग्रुप के बाल कलाकारों ने श्री कृष्ण की सुन्दर रास नृत्य की प्रस्तुति दी, जिसके साथ सभी भाई बहनें भी अपने आपको नाचने से रोक नहीं पाए l

करेली सेवाकेंद्र की मुख्य संचालिका राजयोगिनी ब्रह्माकुमारी सरोज दीदी जी ने कृष्ण जन्माष्टमी की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि भारत देश में मनाये जाने वाले पर्व और जयन्ति मनुष्य को उसकी विवेचना करने, उनकी महानताओं को आत्मसात करने तथा स्मृतियों को ताजा करने का होता है। वैसे जन्म तो हर एक मनुष्य के मनाये जाते हैं परन्तु कुछ महापुरुष अथवा देवपुरुष ऐसे हैं जिससे लोगों को अलौकिक एवं आध्यात्मिक शक्ति तथा महान कर्म करने की प्रेरणा मिलती है। यही कारण है कि विज्ञान के युग में भी इसकी महत्ता दिनों-दिन बढ़ती जाती है। ऐसे भी आज के युग में श्रीकृष्ण की जन्माष्टमी मना लेना ही पर्याप्त नहीं बल्कि उनके द्वारा किये महान कर्मों के बारे में गहराई से चिंतन करने की आवश्यकता है। उनका जन्म एक ऐसे वक्त पर हुआ जब संसार में अधर्म, पापाचार, अत्याचार, पारिवारिक ताना- बाना छिन्न-भिन्न होना, आसुरी वृत्ति का बोलबाला, सत्यता लुप्त होकर झूठ का साम्राज्य था। उनकी बाल लीलाओं तथा प्रत्येक कर्मों की आध्यात्मिक व्याख्या मनुष्य के लिए सन्देश है।

अगर सामान्य तौर पर देखा जाये तो उनका जन्म, केवल एक साधारण मनुष्य की जन्म की तरह दिखायी देगा परन्तु जब हम तार्किक और उनके कर्तव्यों की व्याख्या करेंगे तब उनकी मानवीय कल्याणकारी संदेशों का आभास होने लगेगा। गीता में कृष्ण ने अर्जुन को मानवीय धर्म का विस्तृत वर्णन कर युद्ध के लिए प्रेरित करना, परमात्मा में विश्वास के लिए जगत नियंता परमात्मा के असली स्वरूप का साक्षात्कार कराना मनुष्य को गहराई से सोचने के लिए काफी है। 

श्रीकृष्ण ने अर्जुन को मनुष्यों के देह से ऊपर उठते हुए आत्मकेन्द्रित होने के लिए आत्मा और उसकी सम्पूर्ण क्रियाओं का विवेचन किया था। अर्जुन को उपदेश देते हुए कहा था कि जिनको तुम अपना समझ रहे हो और जिन्हें सगे-सम्बन्धी कह रहे हो, ये सब केवल शारीरिक रूप में हैं।  आत्मा कभी मरती नहीं है। वास्तव में, अर्जुन अर्थात् ज्ञान का अर्जन करने वाला। इसलिए आज प्रत्येक मनुष्य को अर्जुन बनने की आवश्यकता है। श्रीकृष्ण ने प्रत्येक मनुष्य के मनःस्थिति की अवस्थाओं का रूप बताया है। महाभारत में प्रत्येक घर की कहानी बतायी है। जिसका बिगड़ता रूप प्रत्येक घर में दिखायी दे रहा है। आज प्रत्येक घर में भाई-भतीजावाद इतना है कि लालचवश एक-दूसरे का खून, व्यभिचार और अत्याचार की सीमा को पार कर दिया है।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी और गीता की सार्थकता इसी में है कि आज की परिस्थिति में प्रत्येक मनुष्य अर्जुन बनें, श्रीकृष्ण की विशेषताओं को आत्मसात करें तथा सच्ची-सच्ची गीता का अध्ययन और विवेचन कर उससे जीवन में उतारने का प्रयास करें। महाभारत काल में तो केवल एक द्रोपदी का चीर हरण हुआ था परन्तु आज तो लाखों द्रोपदियों का चीर हरण हो रहा है। वास्तव में यह कौन कर रहा है? इसके लिए कौन जिम्मेदार है? इसके बारे में भी हमें सोचना चाहिए। कोई भी मनुष्य किसी का शत्रु नहीं होता है। इसका स्पष्ट उल्लेख भागवद्गीता में मिलता है जिसमें श्रीकृष्ण ने कहा है कि हे अर्जुन ! मनुष्य के अन्दर व्याप्त काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार ही मनुष्य के शत्रु है। जब हम इन पर विजय प्राप्त करेंगे तभी हम सुख-शान्ति से रह सकेंगे तथा एक सुखमय साम्राज्य की स्थापना कर सकेंगे। आप जरा इस पर विचार करें कि जब मनुष्य काम के वशीभूत होता है तब अत्याचार और व्यभिचार करता है।क्रोध में आता है तब हिंसा और लोभ के कारण लूटपाट तथा हत्या करता है। मोह के कारण जंजाल में जकड़ना तथा अहंकार के कारण अपनी अच्छाइयों को त्याग देता है। जब हम इन विकारों से मुक्त हो जायेंगे तब ही मन के अन्दर जो बुराइयां है उनसे मुक्ति मिलेगी।

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी पर यही ईश्वरीय संदेश है कि श्रीकृष्ण के अन्दर जो मूल्य और विशेषतायें है उन्हें अपने जीवन में उतारने का प्रयास किया जाये तथा गीता में वर्णित मनुष्य के अन्दर छिपे शत्रुओं का नाश करें तभी छोटी- मोटी बातों के लिए जो हर घर में महाभारत चल रहा है उसे समाप्त कर सकेंगे और तभी श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व सार्थक हो सकेगा। इसके पश्चात कार्यक्रम के समापन पर सभी ने केक काटकर माखन मिश्री का प्रसाद स्वीकार किया l

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