मनुष्य अपनी करनी से ही श्रेष्ठ बन सकता

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कई कहते हैं कि हमारे पास टाइम नहीं है। अगर हमें परमात्मा को याद करना है तब हमें अपनी रोज़मर्रा की जि़ंदगी के आवश्यक कार्यों में से कुछ कटौती कर परमात्मा के लिए समय निकालना होगा। तब पुण्य जमा हो सकता है।

कई हमसे पूछते हैं कि आप लोग ज्ञान की बातें करते हैं, परमात्मा में विश्वास भी रखते हैं लेकिन कभी मंदिर में पूजा-पाठ या व्रत-उपवास करते हुए नहीं देखा।
लेकिन ऐसा नहीं है कि हम मंदिरों में नहीं जाते। हम ज़रूर जाते हैं। देवी-देवताओं को हम अपने जीवन का आदर्श मानते हैं। वैसे भी ब्रह्माकुमारीज़ ईश्वरीय विश्व विद्यालय का ये लक्ष्य है कि जो भी भाई-बहनें आते हैं उनके लिए कि नर ऐसी करनी करे जो श्रीनारायण बने, और नारी ऐसी करनी करे जो श्रीलक्ष्मी बने। अर्थात् मनुष्य अपनी करनी से ही श्रेष्ठ बन सकता है। तो गृहस्थ जीवन में रहते हुए कैसे गृहस्थ जीवन को श्रेष्ठ बना सकते हैं ये प्रेरणा लेने जाते हैं। आज जब भक्ति के अन्दर पूजा-पाठ आदि जो भी करते हैं ये सब एक आधार हैं क्योंकि भगवान में मनुष्य का मन नहीं लगता है इसीलिए वो सोचता है कि कोई न कोई आधार अपना लें ताकि मन लगे, किसी भी माध्यम से मन लगे।
बहुत सुन्दर पौराणिक कथा याद आती है मुझे इसके ऊपर कि एक बार एक बनिया था और वो दोपहर को दुकान बंद करके अपने घर जा रहा था तो स्वाभाविक रीति से उसने देखा कि बाहर एक महात्मा जी भिक्षा के लिए खड़े थे। उसने महात्मा जी से कहा कि महात्मा जी भोजन का समय है आप आ जाइए। साथ में मिलकर भोजन करते हैं। भोजन के बाद महात्मा जी ने स्वाभाविक रीति से बनिये से पूछा कि सारे दिन में भगवान को कितना याद करते हो? बनिये ने कहा टाइम कहाँ मिलता है? सारा दिन तो दुकान पर बिज़ी रहते हैं। फिर समय ही कहाँ भगवान को याद करने का? महात्मा जी मुस्कुराये और कहा कि अच्छा समय नहीं मिलता है, बनिया बोला कि हाँ बहुत व्यस्त रहता हूँ समय ही नहीं मिलता है। तो महात्मा जी ने पूछा कि एक बात बताइए कि तुम भोजन कितनी बार करते हो। बनिये ने कहा कि तीन टाइम, सुबह नाश्ता, दोपहर को और रात को। तो कहा कि एक टाइम भोजन करने में कितना समय लग जाता है। तो कहा कि आधा घंटा तो कम से कम जाता ही है। तो महात्मा जी ने विधि बताई ऐसा करें कि एक दिन अगर एक टाइम भोजन न करें चल सकता है? आधा घंटा बच जायेगा। और उस आधे घंटे में तुम ईश्वर को याद करो। कलियुग के अन्दर अगर हफ्ते में एक दिन भी आधा घंटा ईश्वर को याद किया तो पुण्य तो जमा होगा। तो बनिये ने सोचकर कहा इतना तो ज़रूर मैं कर सकता हूँ कि एक दिन एक टाइम भोजन नहीं करूंगा, आधा घंटा ईश्वर को याद करूंगा। महात्मा जी ने कहा कि अगर हो सकता है दो टाइम भोजन के बिना चल सकता है तो एक घंटा मिल जायेगा। एक घंटा तुमने याद किया भगवान को इस कलियुग के अन्दर तो भी बहुत पुण्य मिल जायेगा। तो बनिये ने कहा ये भी मैं कर सकता हूँ कि एक दिन अगर दो टाइम भोजन छोड़ कर रात को ही सीधा भोजन कर लूं ये तो चल सकता है। और फिर महात्मा जी ने कहा कि ऐसा अगर हफ्ते में दो बार कर सकते हो तो और भी अच्छा होगा। तो कहा ये भी हो सकता है। और वहाँ से उपवास शुरू हुए।
उपवास का मतलब ही ये है कि उपवास ये शब्द को अगर अलग करें उप+वास अर्थात् उप के दो अर्थ होते हैं उप माना ऊपर, उप माना नज़दीक। ऊपर निवास करने वाले परमात्मा के नज़दीक हमारी बुद्धि का वास रहे ये है उपवास। और वहाँ से उपवास शुरू हुए हैं। कहने का भावार्थ चाहे पूजा-पाठ, व्रत-उपवास ये सबके पीछे भाव यही है कि हम मन को परमात्मा में एकाग्र करें और परमात्मा को याद करें।

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