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संत ने खोल कर रखे ब्रह्माकुमारीज़ के सारे राज़ तपस्या के लिए माउण्ट आबू उपयुक्त स्थान

यदि छोटेबच्चे केकोमल हृदय में श्रेष्ठ संस्कार केबीज बो दिये जायें और उसे परवरिश देकर, पालना कर पोषित करें तो वे दूसरों के आदर्श बन जाते हैं। इसीलिए परमात्मा ने छोटी बालिकाओं को अपने साथ ले वास्तविक संस्कारों से सिंचित कर परिवर्तन की आधारशिला के निमित्त बनाया।

रपोर्टर : मेरा सवाल आपसे यह है कि महाराज जी दादा लेखराज कृपलानी ने माउण्ट आबू को क्यों चुना? और उन्होंने इस मिशन के लिए कुंवारी लड़कियों को अपने साथ क्यों लिया?

संत: दादा लेखराज कृपलानी को जब साक्षात्कार हो गया परमात्मा का तो सारा अंधकार मिट गया, अज्ञान समाप्त हो गया, भीतर से इनके घृणा समाप्त हो गई, पे्रम की लहरें बहने लगीं। इन्होंने माउण्ट आबू को इसलिए चुना क्योंकि माउण्ट आबू पहले भी एक तपोस्थली रही है। जितने भी आपने देखा होगा हमारे भारतवर्ष में माताओं के स्थल हैं। चाहे वो माता वैष्णो देवी का है, या नैना देवी का है, किसी भी देवी का स्थल हो या कोई भी तीर्थ स्थल हो वो अधिकतर आपको पहाड़ों पर ही मिलते हैं। और माउण्ट आबू में तो बहुत सारे तपस्वियों ने, ऋषियों ने तप किया हुआ है। जैनियों का सबसे बड़ा तीर्थ, सबसे बड़ा मन्दिर वहाँ पर है। वहाँ जाकर देखें आप। उसकी नक्काशी देखें। इन्होंने भी वहाँ जाकर तप किया। क्योंकि तपस्वियों की भूमि में तपस्वी ही तप कर सकता है। तो इन्होंने वहाँ जाकर तप किया। आचरण शुद्ध था ही। जो छोटी बालिकाएं साथ में इनके गई थी, उनके अंदर इन्होंने देखा कि वे एक शक्ति है, नारी शक्ति है। क्योंकि बेसिक शक्ति जो है वो है भगवती, मां दुर्गा की शक्ति। नारी शक्ति माँ दुर्गा का प्रतीक। हमारे यहाँ भी तो माना जाता है, पूजा की जाती है नारियों की। तो इन्होंने देखा कि नारी को ही अगर हम आगे बढ़ायें, नारी को ही आगे रखें तो वह दूसरों के भीतर एक माँ के रूप में, एक बहन के रूप में, स्वयं स-चरित्र बनकर दूसरों के भीतर उनके चरित्र का निर्माण कर सकती है। तो चरित्र निर्माण सबसे पहला कार्य इन्होंने करना शुरू किया। और कैसे किया जाए? तो उन्होंने एक विद्यालय की स्थापना की। उसको नाम दिया ईश्वरीय विश्व विद्यालय, आध्यात्मिक विश्व विद्यालय। तो धीरे-धीरे, करते-करते इसलिए इन्होंने नारियों को अपने साथ लिया, नारी शक्ति को अपने साथ लिया और वह सारी दादियां बिल्कुल, आपने कुंवारी शब्द यूज़ किया है। हां वह कुंवारी हैं… कुमारी हैं वो।

रिपोर्टर: कुंवारी रहती हैं या उनकी शादी भी होती है?
संत: हां, शादी होती है, दो तरह की शादी होती है। एक होती शारीरिक जिसे बोलते लौकिक शादी होना। और एक होता है आध्यात्मिक तौर पर शादी हो जाना, किसी को अपना मान लेना। यहां ब्रह्माकुमारीज़ भी शादी करती हैं, मैं आपको बता दूं। लेकिन वे सिर्फ भगवान शिव के साथ करती हैं। आध्यात्मिक स्तर को ऊंचा उठाने के लिए करती हैं। यूं ही नहीं शादी कर लेती कि आओ संतान पैदा करें। उसके लिए शादियां नहीं होती हैं। इसीलिए यह कहा गया कि हम ईश्वरीय संताने हैं, उस परमपिता परमात्मा के बच्चे हैं। बच्चे हैं तो आपस में फिर भाई-बहन का रिश्ता इससे पवित्र रिश्ता तो मेरे ख्याल से कोई हो नहीं सकता।

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