हमारे जीवन के लिए आदर्श कौन हो सकता है

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हमारा ओरिज़नल नेचर है वो बिल्कुल ही स्टेबल है, स्थायी है, क्लीन है, और वो जो ओरिज़नल नेचर है वो हमको कर्म के बंधन से मुक्त करता है। तो कर्म के बंधन से मुक्त कराने वाला, जो कार्य कराने वाला है उसको हम अपना आदर्श बनायें।

आप सभी जब भी किसी अच्छी बात की शुरूआत करते हैं तो हमेशा कहते हैं कि हमारा जीवन उनसे प्रेरित है। किसी महान आत्मा का नाम ले लेते हैं जिनसे आपका जीवन प्रेरणा लेता है। आप उसी के आधार से आगे भी बढ़ते हैं और आपको अच्छा भी लगता है। और ये सच बात भी है। निश्चित रूप से किसी न किसी को जीवन में हम प्रेरणा तो बनाते ही हैं। लेकिन कई बार जब हम जिसको प्रेरणा बनाये हुए होते हैं और जिसके आधार पर अपना कर्म शुरू किया होता है, लेकिन जब उनकी कोई भी ऐसी बात कुछ दिन बाद हम सुन लेते हैं, देख लेते हैं तो हमारे मन के भाव बदल जाते हैं कि मैंने तो इनको अपना आदर्श बनाया था। तो मेरे को लगता है कि मैंने कहीं शायद गलत तो नहीं चूज़ कर लिया! फिर हम विकल्प तलाश्ते हैं। फिर हम कुछ दिन बाद किसी और को, तो ऐसे करते-करते हमारा सारा जीवन एक उलझन में बीत रहा होता है कि किसको अपना आदर्श बनाया जाये। क्योंकि हर कोई जो भी इस दुनिया में एक-एक रोल में है वो एक दायरे में है, एक लिमिटेशन में है, और जो व्यक्ति दायरे में होता है, सीमाओं में बंधा होता है तो उसके फिर कर्म भी वैसे ही होंगे। तो जो भी हमको आदर्श रूप में दिखता है या दिखाया जाता है उसकी भी एक सीमा है। वो सीमा से परे नहीं हो सकता। वो हमेशा एक दायरे में ही हमको दिखाई देगा।
तो अब इसके लिए हम क्या ऐसा करें कि हमारे लिए एक आदर्श भी बन जाये और सीमा भी न हो। उसका दायरा भी बड़ा ऊंचा हो। उसके लिए सबसे पहले अध्यात्म को अपने जीवन में अपनाना पड़ेगा। वैसे तो हम सभी आध्यात्मिक ऑलरेडी हैं ही। हमारे अन्दर अध्यात्म है लेकिन उसके अन्दर पहचानने का मतलब ये है कि जो भी हम कर्म करते हैं, तो कर्म करने का आधार ये है कि क्या कर्म करते हुए हम उस कर्म के मालिक हैं या गुलाम हैं? जब हम किसी कर्म को करने के बाद भूल जाते हैं तो मालिक हैं और कर्म करने के बाद जब हमको सारी बातें याद रहती हैं तो हम उसके गुलाम हैं। जैसे किसी भी कर्म को करते हुए आपको ये कॉन्शियस होता है कि उन्होंने मेरे लिए, इस बात के लिए ऐसा कहा था। अगर किसी ने किसी बात के लिए आपको कमेंट कर दिया अच्छा या बुरा, तो उसके आधार से जो कर्म होता है वो कर्म भी बंधन बनाता है हमारे जीवन में। तो हमारे जीवन में बंधन का कारण क्या हो गया? जितनी भी लोगों ने प्रतिक्रियायें की चाहे अच्छी या बुरी उसके आधार से, उसी सोच के आधार से हमने अपने आप को बांधा है।
लेकिन अध्यात्म सिखाता है कि जब आप किसी भी चीज़ में बंधन महसूस करते हैं उसी समय से आप अपनी ऊर्जा को कम पायेंगे। एनर्जी को हमेशा लॉ पायेंगे। क्योंकि आप उस आधार से उसको खुश करने के लिए, उस लेवल पर जाने के लिए बहुत सारे वैसे तरीके भी अपना सकते हैं, लेकिन परमात्मा एकदम अलग सिखाते हैं। वो सिखाते हैं कि आप सभी जो भी कर्म करते हो, जो भी संस्कार बनाते हो वो संस्कार आप थोड़े दिन के लिए बनाते हो। फिर वो संस्कार भूल जाते हैं अगले जन्म में। तो फिर अगले जन्म में नया संस्कार बनता है। लेकिन जो हमारा ओरिज़नल संस्कार है। जो हमारा ओरिज़नल नेचर है वो बिल्कुल ही स्टेबल है, स्थायी है, क्लीन है, और वो जो ओरिज़नल नेचर है वो हमको कर्म के बंधन से मुक्त करता है। तो कर्म के बंधन से मुक्त कराने वाला, जो कार्य कराने वाला है उसको हम अपना आदर्श बनायें। क्योंकि हर कोई हमें कर्म में बांध रहा है। अपने-अपने दायरे के हिसाब से हमको बांधता जा रहा है। लेकिन जो हमको कर्मके बंधन से मुक्त कराता है, हमको ये सिखाता है कि सुकून तभी है जब उस बात को तुम भूल जाओ, जिसको तुमने किया है। तो वो चीज़ हमको हमेशा सुखदाई लगेगी। अब ये कार्य सिर्फ और सिर्फ परमात्मा ने किया। और परमात्मा ने जिसको अपना रथ चुना, अपना निमित्त चुना, अपना इंस्ट्रूमेंट चुना उसको भी परफेक्ट बनाया। और उस परफेक्शन को देखते हुए लगता है कि अगर आदर्श बनाना हो तो या तो प्रजापिता ब्रह्मा बाबा को बनायें, या तो परमात्मा शिव को बनायें क्योंकि परमात्मा शिव निराकार है, ज्योतिबिन्दु स्वरूप है लेकिन साकार में परफेक्शन अगर किसी के अन्दर है जो कर्म से परे था, कर्मातीत था, कर्म करके भूल जाते थे तो वो प्रजापिता ब्रह्मा थे।
इस तरह से हम अपने आपका पैरामीटर सेट करेंगे। जो कर्म बांधने वाला है, हर व्यक्ति जो हमारा आदर्श इस दुनिया में बनता है उसको फॉलो करने के बाद हम बंधते ही हैं, मुक्त नहीं होते। लेकिन परमात्मा ये है कि कर्म जो हमको मुक्त करे, हमको बांधे नहीं। नहीं तो बंधन से व्यक्ति के अन्दर बहुत सारे विकार पैदा हो जाते हैं। और वही हमें तंग करते हैं। तो आदर्श केवल और केवल परमात्मा या परमात्मा का निमित्त बनाया हुआ ये भागीरथ, भाग्यशाली रथ जिसे हम प्रजापिता ब्रह्मा कहते हैं। इसके आधार से ही सही रूप से हम इस जीवन में खुश रह सकते हैं। शांत रह सकते हैं और आगे बढ़ सकते हैं। तो चलो आज हम इनको ही अपना आदर्श बनाकर अपने जीवन को इस पट्टे पर चलाके देखते हैं।

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