महाभारत के युद्ध का समय है, यानी सारे विश्व में लड़ाई है। कोई स्थान नहीं है जहाँ इन्सान बचने का स्थान बना सके। पर ठिकाना अगर बनाना है तो बुद्धि को ठिकाने पर लगाओ। राइट टाइम पर राइट टङ्क्षचग आयेगी। यह करना है, यह नहीं करना है क्योंकि बुद्धि का कनेक्शन कल्याणकारी बाप के साथ है। श्रीमत में मनमत मिक्स करने की आदत नहीं है। मनुष्य मत श्रीमत को समझने नहीं देती है, बीच में टीं-टीं करता है। अरे तू सुन तो सही ना – वर्तमान समय भगवान क्या कहता है! सुनने और ग्रहण करने की शक्ति है बुद्धि में। मन शान्त रहे तो बुद्धि स्वीकार करती है। संस्कार बीच में आते हैं पर उसको बुद्धि चुप करा देती है। संस्कारों में देह अभिमान भरा पड़ा है तो बुद्धि यह रियलाइज़ कराती है।
मेरी बुद्धि में मम्मा, बाबा और दीदी के सिवाय और कुछ भी नहीं है। मेरे बड़ों ने जो सिखाया है, उनके जैसा उदाहरण बनना है। जो शिक्षा मिली है उसी अनुसार चलना है। इतना बुद्धि को अच्छी तरह ठिकाने लगाना, यह अपने लिए पुण्य कर्म करना है, इसमें कमाई है बहुत। एक कदम भी हमारा कमाई बिगर न जाये। पदमापदमपति का टाइटल हमारा है। हमारे पास अथाह धन है, पहले गुणों का धन है, ज्ञान का धन है, यह धन कहाँ से आया? समय ने दिया, भगवान ने दिया। समय नहीं गँवाया, हर कदम में पदमों की कमाई जमा की है। कमाई कैसे करो, यह बाप ने सिखाया है। शिवबाबा कहता है ब्रह्मा बाबा के द्वारा इसके कर्म देख फॉलो करो।
स्थिति को अच्छा बनाके रखना- यह हमारी शान है। बिगर पूछे झुटके आवें! अपने को सीधा बैठना सिखाओ। बार-बार अन्दर प्रैक्टिस करो क्योंकि आत्मा देह-अभिमान में इतनी फंस गई है, जैसे कीड़ा बन गयी है। कीड़े के संग से इंफेक्शन हो जाता है। कीड़ों की वृद्धि जल्दी होती है, ब्राह्मणों की वृद्धि देर से होती है। ब्राह्मणी वो जो भ्रमरी हो उड़ती भी है और कीड़े को उठा के उसको अपने संग का रंग देकर चेंज कर देती है। अपने से पूछना है मेरी डयूटी क्या है। हर संकल्प में, कर्म में, भूँ-भूँ मुख से कहेंगे तो असर नहीं होगा। संकल्प और कर्म का असर होगा। संकल्प शुद्ध और कल्याण वाला हो, अच्छा हो तो वह संकल्प काम करता है। ऑटोमेटिक वो बदलता है, चेहरा चेंज होता जाता है।
सबसे अच्छा अपना मित्र बनना हो तो रियलाइज़ेशन के महत्व को जानो। एक बार मम्मा से पूछा मैं क्या पुरूषार्थ करूं। तो मम्मा ने कहा महसूसता की शक्ति सदा अच्छी रखना। आपेही मम्मा-बाबा को बताये मेरी यह भूल हुई। मैं भी आप लोगों से पूछती रहती हूँ कि मेरी कोई भूल हो तो मुझे बताओ। मैं सुधारने चाहती हूँ अपने आपको। कभी भी यह नहीं आयेगा कि औरों की गलती है। दूसरों की गलती देखना, अपनी गलती न देखना। कोई रियलाइज़ कराये तो हर्ट हो जाना,(दर्द पडऩा) फिर हर्ट को हील करना – वह क्या पुरूषार्थ करेगा। देह अभिमान वाले को कोई भी इशारा मिलेगा तो दर्द हो जायेगा। अरे, सुनते ही शक्ल चेंज क्यों होती, थैंक्स मानो जो इशारा दिया। इसमें फिर बाबा का प्यार चाहिए। हाथ छोड़ के जाने वाला नहीं चाहिए।
तो एक महसूसता की शक्ति ऐसी हो जो पता चले कि मेरे में अन्दर अब तक कौन-सा कीड़ा बैठा है। काम का कीड़ा महान दुश्मन है। दृष्टि-वृत्ति कभी भी रूहानियत और ईश्वरीय स्नेह सम्पन्न नहीं बनेंगी। अगर इसमें हम वंचित रह गये तो क्या भाग्य हुआ!