दातापन और रहमदिल से प्रकृतिजीत स्थिति

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जब हम संकल्प करते हैं कि मैं बहुत शक्तिशाली हूँ या मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ तो हमारे चारों ओर शक्तियों का आभामंडल बन जाता है। जानते हो न आभामंडल क्या होता है? हमारे चारों ओर शक्तियों का घेरा। जो जितना शक्तिशाली बनेंगे उसका आभामंडल दूर-दूर तक बनेगा, संसार तक फैलेगा।

दाता पन और रहम से प्रकृति जीत भव:। रहम तो मनुष्य की एक नैचुरल प्रवृत्ति है। बस इतना है कि कोई केवल अपनों पर रहम करता है और कोई सब पर। हम सभी बाबा के बच्चे, देखो, जिसका जो बच्चा होता है कलयुग के अन्त तक भी माँ-बाप के कुछ न कुछ गुण बच्चों में अवश्य आते हैं। सारे नहीं, बाकी तो पूर्वजन्मों से अपने ही लेकर आते हैं। हम भगवान के बच्चे हैं, यह चिंतन करेंगे सभी। हैं या नहीं पूछने की तो बात नहीं है। यह तो सब जो ज्ञान में नहीं हैं वो भी उत्तर देते हैं हम भगवान के बच्चे हैं। तो उसके गुण हमारे में कई सारे हैं। सब आज देख लें कौन-कौन से हैं। हम ज्य़ादा गुणों की चर्चा नहीं करेंगे उसके क्योंकि सभी जानते तो हैं कि उसके गुण कितने हैं! वो सुख दाता है, मैं क्या हूँ? होना चाहिए ये या नहीं! चेक करेंगे मैं क्या हूँ। एक समझदार और बुद्धिमान ज्ञानी वही है जो अपनी कमियों को भी जानते हों और महानताओं को भी। अगर केवल कमी जानेंगे तो निराश रहेंगे, महानतायें भी यानी स्वमान भी।
हम एक जगह गये थे जोधपुर में ट्रीटमेंट के लिये जो हाथ से करते हैं, जिसे ऑस्टियोपैथी कहते हैं। जो हमारा कर रहा था वो कहने लगा कि मैं आपकी क्लास बहुत सुनता हूँ, मुझे स्वमान बहुत पसंद आये। अभी उसे ज्ञान नहीं है। मैं सोचने लगा कि इसने स्वमान की बात समझ ली! तो दुनिया वाले भी जो देवकुल की आत्मायें हैं सब, वो अब बाबा की बातों को समझने लगी हैं। तो पूछेंगे अपने से कि मैं शिवबाबा की सन्तान, वो दु:खों को हरने वाला, मैं क्या हूँ? वो शान्ति का सागर, मैं क्या हूँ? यह नहीं मैं शान्त स्वरूप हूँ, वो बात हम नहीं कर रहे हैं। मैं क्या हूँ, मैं शान्ति में हूँ या नहीं? वो प्यार का सागर, मैं प्यार देता हूँ, देती हूँ? चेक करेंगे।
पाँच चीज़ें कोई भी ले लो, पवित्रता की बात है। शक्तियों की बहुत बड़ी बात है। वो सर्वशक्तिवान, उसकी बहुत सारी शक्तियां हमारे अन्दर हैं। हम यह बात बहुत सुनाते आये हैं लोगों को लेकिन इस बात को गहराई से रियलाइज़ करने में हमें भी बहुत समय लगा था। मधुबन में आकर भी बाबा बताते थे, लेकिन आत्मा उस चीज़ को ठीक से समझ ले उसमें समय लगता है। बाबा कहते रहते थे कि मैंने सारी शक्तियां तुम्हें दे दी हैं लेकिन हमारे अन्दर यह बात उतरती नहीं थी। हम अब यह चाहते हैं कि आप सभी इसको जल्दी से जल्दी स्वीकार कर लें। बाबा ने हमें अपनी बहुत सारी शक्तियां दी हुई हैं। हम बहुत शक्तिशाली हैं। और जो योग करते हैं, कॉमेन्ट्री से अमृतवेले कराते भी हैं, वैसे भी एक चीज़ बहुत अभ्यास में लानी है, और वो है जब हम संकल्प करते हैं कि मैं बहुत शक्तिशाली हूँ या मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ तो हमारे चारों ओर शक्तियों का आभामंडल बन जाता है। जानते हो न आभामंडल क्या होता है? हमारे चारों ओर शक्तियों का घेरा। जो जितना शक्तिशाली बनेंगे उसका आभामंडल दूर-दूर तक बनेगा, संसार तक फैलेगा। तो यह अभ्यास भी सबको दो बार बस, ज्य़ादा नहीं, रोज़ दो बार कभी भी अवश्य करना है। मैं बहुत शक्तिशाली हूँ। मेरे चारों ओर शक्तियों का आभामंडल है, प्रभामंडल, इंग्लिश में औरा कहते हैं। यह हम सबके चारों ओर है, पर है उतना बड़ा जितना हम यह अभ्यास करेंगे।
हम दाता के बच्चे दाता हैं। हमें क्या-क्या देना है संसार को? एक तो आप में से वो आत्मायें जो बहुत अच्छा स्वमान का अभ्यास करते हैं, जो बहुत पवित्र हैं, जो बहुत अच्छे योगी हैं, उन्हें अब से ही संसार को साकाश बहुत देनी है। दाता बनना है। बाबा कहा करते थे हमें याद है, शुरू में ही हमें कहा, तब तो हमें इतना ज्य़ादा पता नहीं था जब किचन में आये। बाबा कहते थे, जैसे भोलेनाथ का भण्डारा अखुट गाया जाता है, तुम्हारा भी अखुट दान चलता रहे। उन दिनों ज्य़ादा ये बातें प्रकाश में नहीं थीं लेकिन धीरे-धीरे समझ में आया कि हमें निरंतर संसार को देना है। हमारे गुण ऐसे हों, हमारी भावनायें ऐसी हों, हमारे वायब्रेशन्स ऐसे हों, हमारा स्वमान और योग ऐसा हो जो निरंतर हम सबको देते चलें। थोड़ी बातें उनमें से अगर हम अभ्यास करते हैं, शान्ति के सागर की शान्ति की किरणें मुझे मिल रही हैं, तो हमसे संसार को शान्ति पहुंचती रहती हैं ऑटोमेटिक। कुछ करना नहीं है, खुद-ब-खुद। अगर हम अशरीरी बनने का अभ्यास करते हैं तो।
बाबा के महावाक्य हैं याद रखना, जब तुम अशरीरी होते हो तो विश्व को शान्ति का दान मिलता है। और जब स्वदर्शन चक्रधारी होते हो तब विश्व को सुखों का दान मिलता है। सुख और शान्ति दोनों गुह्य बातें हो गईं। स्वदर्शन चक्र माना पाँच स्वरूपों का अभ्यास, यह देने का स्वरूप है। अगर हम बहुत पवित्र होते जा रहे हैं, पवित्रता में एक बात ज़रूर जोड़ लेनी है कि व्यर्थ संकल्पों से मुक्त आत्मा ही परम पवित्र है। ब्रह्मचर्य के बाद किसी भी तरह का व्यर्थ हमारे पवित्रता के तेज को धुमिल कर देता है। अगर हम ऐसे अच्छे पवित्र हैं तो हमसे ऑटोमेटिक प्रकृति को पवित्रता का दान मिलता जाता है। अगर हम इस स्वमान में हैं कि मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ तो अनेक निर्बल आत्माओं को शक्तियां मिलती रहेंगी, आपके घर में शक्तियां फैलती रहेंगी। सभी को अपने घरों को चार्ज कर देना है।

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