मुख पृष्ठब्र.कु. उषासंगदोष और परचिंतन से बचते हुए बाबा की छत्रछाया का अनुभव करें

संगदोष और परचिंतन से बचते हुए बाबा की छत्रछाया का अनुभव करें

बाबा जैसे मुरली में कहते हैं कि अपने आप से बातें करो और जब आपस में बात करते हैं तो भी हमें क्या लेन-देन करना है। स्व उन्नति की बातों का ही लेन-देन करना है।

संगमयुग पर बाबा ने ये श्रेष्ठ भाग्य दिया कि बाबा की छत्रछाया में हम सभी पल रहे हैं। दुनिया की आत्माओं को जब देखते हैं तो हमेशा जैसे बाबा कहते हैं कि निधन के हैं, भले उनके पास में भी अपने लौकिक मात-पिता की छत्रछाया होते हुए भी निधन के ही हो जाते हैं क्योंकि परमात्मा मात-पिता को नहीं पहचानते। और इसीलिए बाबा कहते कि जिसके ऊपर छत्रछाया ही न हो वो सहजता से रूलते-पिलते हैं। और इसीलिए सबसे पहले तो माया के संगदोष में आना स्वाभाविक हो जाता है।
माया जब देखती है कि ये कच्चे हैं, गफलत कर रहे हैं बार-बार तो माया सहजता से अपने वश में करना आरम्भ करती है। और इसीलिए चाहे माया किसी को निमित्त बनाकर ले आती है या जैसे कहा आजकल ये साधनों के माध्यम के वश हो जाते हैं। और एक बार जब किसी की आदत लगती है तो फिर पैर फिसलता ही जाता है। क्योंकि कहा जाता है कि वो रोड बड़ा स्लीपरी होता है और इसीलिए फिसल के कहाँ से कहाँ पहुंच जाते हैं। कभी-कभी तो होश भी नहीं आता है और पहुंचने के बाद समझ में आता है कि अरे ये कहाँ पहुंच गये हम! और फिर वहाँ से बाहर निकलना बहुत कठिन होता है।
इसलिए बाबा ने हम बच्चों को यह सबसे बड़ा सौभाग्य दिया है कि बच्चे बाबा की छत्रछाया के नीचे रहो तो माया का कोई भी प्रभाव हमारी बुद्धि को प्रभावित न करे। बाबा जैसे मुरली में कहते हैं कि अपने आप से बातें करो और दूसरा है जब आपस में बात करते हैं तो भी हमें क्या लेन-देन करना है। स्व उन्नति की बातों का ही लेन-देन करना है। या सर्विस के विषय को लेकर लेन-देन करना है कि सर्विस कैसे वृद्धि को पाए या फिर बाबा कहते ज्ञान का मनन-चिंतन करो। क्योंकि उसी से ही हमारी उन्नति होगी बाकी और कोई भी बातचीत करते हैं तो उसको बाबा परचिंतन में ही गिनती करता है। बाबा कहते कि परचिंतन पतन की जड़ है। आत्म चिंतन उन्नति की सीढ़ी है। और इसीलिए जैसे-जैसे आत्म चिंतन करते जाओ, देखो फिर कितना ऊंचा चढ़ते जाते हैं। मैं कई बार सोचती हूँ कि कितना व्यक्ति को मानसिक रूप से कमज़ोर करता है ये संगदोष। चाहे व्यक्ति का संगदोष हो स्थूल में, चाहे इलेक्ट्रॉनिक संगदोष हो, मोबाइल आदि का।
आज जब दुनिया में देखते हैं तो इसका भी एक प्रकार का एडिक्शन हो गया है और एडिक्शन इस तरह का हो गया है कि उससे अपने आप को अलग करना बहुत मुश्किल है लोगों को।
एक बहन के लिए बताया गया है कि वो ऑफिस में थी, और मीटिंग चल रही थी और मीटिंग में वो मोबाइल लेकर बैठी थी। तो उसका बॉस जो था मीटिंग के दौरान उसको बार-बार देख रहा था, दो-तीन बार उसको कहा लेकिन फिर भी वो छोड़ नहीं पा रही थी। तो उसके बॉस ने उसको छीन लिया और जैसे ही छीना तो अन्कॉन्शियस हो गई, कुर्सी पर ही गिर गई, और पाँच मिनट के बाद झाग निकलने लगा मुँह से। इतना एडिक्शन है इस चीज़ का। जिस तरह से किसी को ड्रग्स का एडिक्शन होता है और एडिक्शन माना ही जब व्यक्ति के अन्दर वो कैमिकल रिएक्शन जो होता है वो ब्रेन से रिलीज़ होते हैं। जो एक प्रकार का ड्रग एडिक्शन में लोगों को होता है वैसे ही होता है।
तो जैसे ही बेहोश होकर झाग निकलने लगा तो उसका बॉस घबरा गया उसको वापिस दे दिया कि ले लो तुम। और जैसे ही दिया तो झाग भी चला गया और वापिस वो देखने लगी। आजकल तो दुनिया के अन्दर छोटा बच्चा भी बिना मोबाइल के खाना नहीं खाता है। वहाँ से एडिक्शन हो रही है। तो ये एक प्रकार की तामसिकता जिसको कहा जाए मन-बुद्धि की भी तामसिकता।
इसीलिए कहा कि ये कलियुग का जैसे सबसे बड़ा अन्तिम समय का अभिशाप है। जिसके संग में कई ब्राह्मण भी फंसते जा रहे हैं। और इसीलिए उन्नति करने की बजाय, दुर्गति की ओर ज्य़ादा जाते हैं। तो जो कहा जाता है संग तारे कुसंग डुबोए।
बाबा के संग में हम जितना रहते हैं तो हमारी उन्नति भी उतनी ही है। लेकिन जितना ये इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के साथ आज मनुष्य ने अपना संग बना दिया है, उससे संसार भर में कितनी अधोगति भी होती जा रही है।

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