भोरा कलां : शिक्षाविदों के तीन दिवसीय राष्ट्रीय सम्मेलन का समापन

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– प्राचीन भारतीय ज्ञान और योग प्रणाली के प्रयोग से ही जीवन पद्धति में सुधार – बीके शिवानी
– शिक्षा में आध्यात्मिक मूल्यों के समावेश पर दिया गया विशेष जोर

भोरा कलां-गुरुग्राम,हरियाणा: प्राचीन भारतीय ज्ञान और योग प्रणाली के प्रयोग से ही सुखद जीवन पद्धति का निर्माण हो सकता है। उक्त विचार सुप्रसिद्ध प्रेरक वक्ता बीके शिवानी ने व्यक्त किए। यह बात उन्होंने ब्रह्माकुमारीज़ के ओम शांति रिट्रीट सेंटर में शिक्षाविदों के सम्मेलन में कही। दादी प्रकाशमणी सभागार में आयोजित कार्यक्रम में उन्होंने कहा कि पाठ्यक्रम अपडेट हो सकता है। लेकिन संस्कृति और संस्कार अपडेट नहीं हो सकते। उन्होंने कहा कि संकल्प से हमारी दुनिया बनती है। मन की कमजोरी से ही जीवन का हर पहलू कमजोर होता है।

– रोल महत्वपूर्ण है लेकिन आत्मिक शक्ति सबसे महत्वपूर्ण हैं

बीके शिवानी ने कहा कि रोल से अधिक महत्वपूर्ण आत्मशक्ति है। रोल तो कुछ समय का होता है। उन्होंने कहा कि हमारी सोच सूचनाओं के आधार से बनती है। ये हमारे पर निर्भर करता है कि हम किस प्रकार  की सूचनाएं इकट्ठी करते हैं। उन्होंने कहा कि बच्चों की चिंता करने के बजाय उन्हें सशक्त बनाएं। उन्होंने कहा कि स्कूल, कॉलेज एवं विश्वविद्यालय स्तर पर ऐसा वातावरण बनाएं, जिससे बच्चों का मनोबल बढ़े।
तीन दिवसीय सम्मेलन में शिक्षाविदों के लिए राजयोग के विभिन्न सत्र आयोजित हुए। पैनल डिस्कशन के माध्यम से भी शिक्षा में सुधार विषय पर चर्चा हुई। ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान के अनुभवी वक्ताओं के द्वारा ईश्वरीय ज्ञान एवं योग की बारीकियां समझाई गई। कार्यक्रम में आए हुए कई शिक्षाविदों ने अपने अनुभव साझा करते हुए कहा कि इस कार्यक्रम से उन्हें काफी प्रेरणा मिली। उन्होंने कहा कि इस प्रकार के आयोजन से भारतीय संस्कृति को सहज ही पुनर्जीवित किया जा सकता है। सभी ने शिक्षा में आध्यात्मिक मूल्यों के समावेश पर विशेष जोर दिया।

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