हमारे संस्कार हमारी एक्टिविटी, दृष्टि और शब्दों को प्रभावित करते…

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जिसका त्याग महान उसका योग गहरा

जिसका त्याग महान् होगा, उसका योग गहरा होगा। इसलिए त्याग के साथ तपस्या का संबंध है। जब तक त्याग की वृत्ति प्रबल नहीं है, तब तक तपस्या की स्टेज निखर कर नहीं आ सकती।

जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि पुरूषार्थ में दो बातें कही जाती हैं- एक अटेन्शन दो, दूसरा चेकिंग करो। हम अटेन्शन उस बात पर दें, जो कॉन्शियसनेस है और जो सबकॉन्शियस माइंड है, संस्कार हैं, जो छिपे हुए हमारे भाव हैं, जो हमारी वृत्ति-दृष्टि को प्रभावित करते हैं उनकी चेकिंग करने की ज़रूरत है। अब आगे…

योग की गहराइयों का अनुभव करने के लिए कुछ मनुष्य बातों पर ध्यान देने की आवश्यकता है-

  • आसक्ति : अन्दर छिपी हुई जो आसक्तियां हैं, जो हमें प्रभावित करती हैं, अपनी ओर खींचती हैं- ऐसा खाना चाहिए, ऐसा पहनने को चाहिए, यह सहूलियतें चाहिए… वह चीज़ें जो हमें आकर्षित करती हैं, जिन डोरों से हम बंधे हुए हैं, उस पर पहले अटेन्शन दें कि जो एक्टिविटी हम कर रहे हैं वह किसी आसक्ति के वशीभूत तो नहीं हैं। उसके लिए बाबा बार-बार कहते हैं- कर्मेन्द्रियों पर विजय प्राप्त करो। हमारा योग यही सिखाता है कि यह जो पदार्थ व व्यक्ति हैं या कर्मेन्द्रियों के जो विषय हैं, उसके प्रति आकर्षण न हो। यही आसक्तियां हैं। आसक्ति का परिणाम है परिग्रह। चीज़ों को इका करने की हम कोशिश करेंगे। कोई चीज़ विशेष अच्छी लगी तो वह काफी मात्रा में अपने पास जमा कर लेंगे। सुनने की आसक्ति होगी तो कैसेट बजती ही रहे, उसमें फिर एकान्त का अनुभव खत्म हो जायेगा। जिस-जिस विषय की आसक्ति होगी उसमें और आगे ही बढ़ेंगे। चीज़ें इकी करते जायेंगे और कहेंगे- हमारा तो सहजयोग है ना। परन्तु हमें जो आसक्ति खींच रही है उसकी चेकिंग हम नहीं करते। हम अपने व्यवहार पर अटेन्शन नहीं देते। लोगों को हम त्याग की बातें सुना देंगे लेकिन अपने पर वह लागू नहीं करेंगे। क्योंकि इससे विवेक पर पर्दा आ जाता है। हम साधना पर ध्यान न देकर साधनों को इकठ्ठा करने लग जाते हैं तो योग की जो गहराई है या उसकी जो ऊंचाई या लम्बाई है उसका अनुभव नहीं होता। इसके लिए बाबा ने त्याग पर समझाया है। इसका इलाज ही है त्याग। जिसका त्याग महान् होगा, उसका योग गहरा होगा। इसलिए त्याग के साथ तपस्या का संबंध है। जब तक त्याग की वृत्ति प्रबल नहीं है, तब तक तपस्या की स्टेज निखर कर नहीं आ सकती। अगर कहीं पर भी हमारा मन उलझा हुआ होगा तो वह अपनी तरफ खीचेंगा और गहरे अनुभव नहीं हो पायेंगे।

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