जीवन की सुख-शांति को कायम रखने के लिए रियलाइज़ेशन ज़रूरी…

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संगदोष और परचिंतन से बचते हुए बाबा की छत्रछाया का अनुभव करें
आज के समय में जैसे-जैसे साधनों की आवश्यकता बढ़ रही है, वैसे-वैसे मनुष्य उसके अधीन भी होता चला जा रहा है। उसी अधीनता के कारण उसका सुख-चैन भी खोता चला जा रहा है। अगर सुख-चैन चाहिए तो इसकी आवश्यकता को जानें और जीवन को सुखी बनायें।

जैसा कि पिछले अंक में आपने पढ़ा कि बाबा के संग में हम जितना रहते हैं तो हमारी उन्नति भी उतनी ही है। लेकिन जितना ये इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के साथ आज मनुष्य ने अपना संग बना दिया है, उससे संसार भर में कितनी अधोगति भी होती जा रही है। अब आगे…
अमेरिका के अन्दर एक रिसर्च हुआ कि दस लोगों को लिया गया और कहा कि आपको दस दिन मोबाइल से परहेज करनी है। आपको कमरे के अन्दर रखा जायेगा,वहाँ आपको खाना-पीना सबकुछ पहुंचाया जायेगा। किताबें रखी होंगी वो आप पढ़ सकते हैं लेकिन लैपटॉप और मोबाइल नहीं मिलेगा। इंटरनेट कनेक्शन नहीं होगा। आप भी अपने आप को देखो। तो उन्होंने बड़ी खुशी से कहा कि हाँ दस दिन तो कोई बड़ी बात नहीं है हमारे लिए। लेकिन पहला दिन ही जैसे-तैसे निकला। दूसरे दिन तो जैसे इतना फ्रस्ट्रेशन क्रियेट होने लगा। तीसरे दिन तो क्या करें, क्या नहीं करें ऐसी हालत होने लगी उन लोगों की। क्योंकि उन सबके कमरों में सीसीटीवी लगा दिया गया था ताकि उनका ऑब्र्वेशन रहे कि ये कमरे में क्या करते हैं। इतनी किताबें अच्छी-अच्छी पढऩे के लिए रखी गई लेकिन उसमें उनका ध्यान नहीं जा रहा था, मेडिटेशन तो उनको आता ही नहीं, क्या करेंगे मेडिटेशन! चौथे दिन तो ऐसी हालत हो गई कि उन्होंने बिस्तर फाडऩा चालू किया। दीवारों के साथ सर मारना चालू किया। ऐसी-ऐसी हालत उनकी हो गई।
पाँचवे, छठे दिन में तो माना वो इतने हो गये कि आखिर उन्होंने दरवाज़ा ज़ोर-ज़ोर से ठोकना चालू किया। हमको निकालो बाहर यहाँ से। इतना उनको घुटन हुई बिना इंटरनेट के। ये परवशता जिसको कहा जाये। पराधीनता, साधनों की भी पराधीनता कहा जाये। ये इसी का नाम है। ब्राह्मणों के दस दिन तो बहुत अच्छे से गुज़र जायें। ज्ञान-योग करो। क्या कहेंगे? अच्छे से निकल जायेगा दिन या नहीं निकलेगा? मोबाइल इंटरनेट न हो। हाँ बुक्स रहेंगी। मुरली रहेगी। मुरली पढऩे के लिए होगी, सुनने के लिए नहीं। न टीवी होगा, न इंटरनेट होगा, न मोबाइल होगा। तीनों चीज़ों का परहेज। पढ़ सकते हैं आपको जो पढऩा है। कभी ट्रायल करके देखो कि कितने दिन ऐसा कर सकते हैं आप।
तो कहने का भावार्थ यही है कि बाबा जो हम बच्चों को कहते हैं कि ये संगदोष से अपने आपको बचाने के लिए आवश्यकता है कि हमारी रूचि ज्ञान-योग में जितनी हम बढ़ा सकें उतनी हम बढ़ायें। क्योंकि उसी से हमारे अन्दर बल आयेगा। एक है ज्ञान का बल, दूसरा है योग का बल, तीसरा है सेवा का बल। बाकी धारणाओं में तो कई बल हैं। पवित्रता का बल है, साइलेंस का बल है, सत्यता का बल है, ये सब धारणाओं में आ जाता है। तो धारणाओं में तो अनेक बल मिलता है, लेकिन विशेष ज्ञान-योग के बल से अपने आप को मजबूत, सशक्त करना आवश्यक है। क्योंकि अन्तिम समय में वही चल सकेंगे।
बाबा ने हम बच्चों को तो पहले से ही इन बातों का जैसे अटेन्शन खिंचवा दिया है कि बच्चे अंतिम समय जब सैटेलाइट ही काम नहीं करेगी तो आपका कोई भी साधन ये काम करने वाला नहीं है। और जब दुनिया वालों की हालत देखते हैं, सुनते हैं कि आधे पागल हो जाते हैं ये लोग कि सर दीवारों में ठोकना पड़ता है उनको। मतलब इतना दीवानापन हो गया है कि दस दिन भी इसकी परहेज नहीं कर सके। तब कहा कि जब हमारी चालीस परसेंट बहनों ने ये प्रतिज्ञा ली और लिखकर गये कि हम हफ्ते में एक दिन या दो दिन मोबाइल परहेज ज़रूर रखेंगे, चालू ही नहीं करेंगे। उसको स्विच ऑफ करके रख देंगे। महसूस करो उसको और ट्राई करो।

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