मन की बातें – राजयोगी ब्र.कु. सूरज भाई

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प्रश्न : मैं मनोचिकित्सक हूँ। रोज़ दस से पंद्रह रोगियों को मुझे देखना पड़ता है, उनकी सब बातें मुझे सुननी पड़ती हैं। अब लम्बे समय से ऐसा करते-करते उनका असर मुझ पर आने लगा है और कभी-कभी डिप्रेशन के जो लक्षण हैं वो मुझमें दिखाई देने लगते हैं, मुझे ऐसे में क्या करना चाहिए?
उत्तर : ऐसे केसेज बहुत देखने में आते हैं लेकिन ये सत्य है कि धीरे-धीरे उनके वायब्रेशन आने लगते हैं। ऐसे कई केस मेरे सामने भी आये, एक तो डॉक्टर ही आया, उन्होंने बताया कि मैं डिप्रेशन के केस ही ट्रीट करता आया हूँ आज तक। अब मुझे भी डिप्रेशन हो गया मैं क्या करूँ? तो ऐसे में राजयोग आपको बहुत मदद करेगा। मैं अपने सभी साइकेट्रिक डॉक्टर्स से एक बात कहना चाहता हूँ कि ये जो डिप्रेशन होता है ये होता है मन में। और डॉक्टर्स ट्रीटमेंट देते हैं ब्रेन को। इसलिए ब्रेन थोड़ा-सा ठीक हो जाता है यानी जो मन के कारण ब्रेन पर इफेक्ट हुआ है उसको ठीक कर दिया। मन को तो ठीक किया नहीं तो फिर मन की स्थिति ब्रेन को डैमेज करने लगती है। कई चीज़ों को ब्लॉक करने लगती है। इसीलिए मन को ट्रीट करने की ज़रूरत है। मन को पॉजि़टिव करने की ज़रूरत है। जब तक हम किसी व्यक्ति को बहुत खुश नहीं कर देंगे, जब तक उसको पॉजि़टिव नहीं कर देंगे उसके अन्कॉन्शियस माइंड से गुड एनर्जी ब्रेन को नहीं जायेगी, उसका डिप्रेशन ठीक नहीं होगा। इसलिए आपको मैं यही कहूँगा कि रोज़ सवेरे उठकर अपने को कुछ अच्छे स्वमान याद कराकर अपना औरा पॉवरफुल बना लेना चाहिए। उसमें एक है मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ,ये संकल्प किया और देखो मुझसे शक्तियों की लाल किरणें फैल रही हैं। देखेंगे कि वो किरणें आपके चारों ओर फैल रही हैं। फिर दुबारा करें मैं मास्टर सर्वशक्तिवान हूँ, फिर ये किरणें और फैलने लगेगीं। फिर तीसरी बार करें और दूर तक फैलने लगेंगी। और फिर चौथी बार करें और दूर तक…। ऐसा शुरू में तो 21 बार कर लेना चाहिए। इसमें दस मिनट देना चाहिए। आपके प्रभामंडल चारों ओर हो जायेगा। तो उनकी जो निगेटिव एनर्जी आ रही है प्रभामंडल उसको रोक देगा, वापिस करेगा।
एक चीज़ आपको याद रखनी पड़ेगी मैं एक डॉक्टर हूँ। ये जो अपने दु:ख की बात सुना रहे हैं, ये उनकी अपनी कहानी है। उसको एक्सेप्ट नहीं करना है। उसे रिसीव नहीं करना है। तो बहुत अच्छे अनुभव रहेंगे। साथ-साथ उन्हें हँसाना-बहलाना भी चाहिए अच्छी तरह से, ताकि माहौल बहुत खुशी का हो जाये। हम दो चीज़ सिखाते हैं, ये आपके लिए भी है- रात को सोने से पहले 108 बार लिखेंगे मैं एक महान आत्मा हूँ। इससे क्या होगा, आत्मा से प्युअर एनर्जी ब्रेन को जायेगी। ब्रेन बहुत अच्छा होने लगेगा। नींद बहुत अच्छी आने लगेगी। क्योंकि डिप्रेशन वालों को नींद नहीं आती। धीरे-धीरे ठीक होने लगेगी। बहुत सारे केसेज 21 दिन में ठीक हो गये हैं। बहुत बुरे केस तीन मास में ठीक हो गये हैं। बहुतों के केस 11 दिन में ठीक हो गये हैं। और एक बहुत इम्पोर्टेन्ट चीज़ जो डॉक्टर्स नहीं जानते, जो आम व्यक्ति भी नहीं जानता। डिप्रेशन का असली कारण कोई घटना नहीं। ये वर्तमान की घटना है, जो हम दिखते हैं कि इसकी माँ की मृत्यु हो गई तब से डिप्रेशन में आ गया, इसका पति मर गया तब ये डिप्रेशन में आ गई। लेकिन असली कारण होता है पूर्व जन्म के पाप कर्म, उसमें भी पाप कर्म क्या? उस व्यक्ति ने दूसरों को बहुत सताया है। कष्ट दिया है। उनके निगेटिव वायब्रेशन अब इनको चैन से नहीं रहने दे रहे हैं। इसलिए एक चीज़ और करनी होगी ऐसे पेशेन्ट्स को। राजयोग करें और उन सबको इमर्ज करें जिनको हमने सताया है, कष्ट दिया है, पीड़ा दी है। उनका चैन छीना है। उनसे हाथ जोडक़र मन ही मन क्षमा-याचना करें। उनको दुआयें दें। रोज़ करना है ये लम्बे समय। तो ये जो निगेटिव एनर्जी आ रही है उनसे वो कटने लगे तब आप फे्रश होंगे। आपके मन में खुशी आयेगी, आपको अच्छी नींद आयेगी। तब डिप्रेशन जायेगा।

प्रश्न : मेरा अपना कॉलेज है जिसमें आठ हज़ार स्टूडेंट्स हैं। मैं खुद कॉलेज का डायरेक्टर और प्रोफेसर हूँ। लेकिन समस्या ये है कि मेरे कॉलेज के बच्चे मोबाइल से ही चिपके रहते हैं। कहना नहीं मानते और होमवर्क भी नहीं करते। इससे मुझे अब क्रोध आने लगा है। मेरी निगेटिविटी बढऩे लगी है और जिसका प्रभाव अब मेरी हेल्थ पर भी पडऩे लगा है। क्या इसका समाधान हो सकता है?
उत्तर : जैसा आपका केस है ऐसा ही एक केस मेरे पास आया। अच्छे व्यक्ति थे जिन्होंने खुद कई कॉलेजेस बनाये हैं और अच्छा संचालन अब तक हो रहा था। बहुत अच्छा रिज़ल्ट इनके कॉलेजेस का था। लेकिन यही हुआ। ये जो मोबाइल संस्कृति है ना, मोबाइल कल्चर, देखिए, है तो बहुत अच्छी चीज़। हम भी मोबाइल रखते हैं। बहुत फायदे हो गए। बहुत सेवाएं हो गई। कहीं किसी चीज़ के लिए वेट नहीं करना पड़ता। लेकिन जब इसका प्रयोग निगेटिवली होने लगा, व्हाट्सएप्प का बहुत अच्छा प्रयोग भी हो सकता है। लेकिन जब इसका प्रयोग निगेटिवली होने लगा और लम्बा काल होने लगा तो मनुष्य की, बच्चों की जो एकाग्रता है वो नष्ट होने लगी। और वो उसमें लग जाते हैं तो पढ़ाई पर ध्यान नहीं रहता। फिर क्लास में भी फोन ही यूज़ करते रहेंगे, किसने क्या मैसेज दिया, किसको क्या देना है। इसमें ही लगे रहेंगे। माँ-बाप भी इसमें कुछ नहीं कर सकते।
मुझे बताया उस व्यक्ति ने कि जब पैरेन्ट्स की हम लोगों ने मिटिंग रखी और कहा आप अपने बच्चों से मोबाइल ले लो, तो कहा कि हम ले ही नहीं सकते। फिर तो बच्चे ही नहीं रहेंगे, बड़े हिंसक बन जायेंगे हमारे लिए। अगर मोबाइल यूज़ करना है तो कॉलेज के बाहर जो एक्स्ट्रा टाइम है उसमें यूज़ करना चाहिए। जब टीचर लेक्चर पढ़ा रहा है उसपर फोकस करेंगे तो फायदेमंद होगा। वर्तमान जो संस्कृति हमारी हो गई है उसको स्वीकार कहीं न कहीं करना ही पड़ेगा। क्योंकि पैरेन्ट्स भी उसमें कुछ नहीं कर सकते, सरकारें भी उसमें कुछ नहीं कर रही हैं, तो टीचर, प्रोफेसर क्यों परेशान होके अपने जीवन को नष्ट करें! क्रोध आपको अगर आ रहा है तो क्रोध तो जीवन को ही नष्ट करता है। ब्लड प्रेशर हो जायेगा, हार्ट पर इफेक्ट आयेगा। ज्य़ादा चिंता करते हैं क्योंकि आप मालिक हैं। ज्य़ादा चिंता ये है कि रिज़ल्ट बहुत सुन्दर होना चाहिए। तो टेन्शन होना लाज़मी है। इसलिए ऐसे व्यक्ति को ईश्वरीय ज्ञान लेना चाहिए। इस समय का क्या प्रभाव है मनुष्य पर उसको पहचान लेना चाहिए। और अपने को निगेटिव नहीं करना चाहिए। क्योंकि अगर अपनी मनोस्थिति बिगाड़ ली, अगर अपना हाल बुरा कर लिया, अगर आपकी बॉडी पर बुरा असर आ गया तो ये सब चीज़ें किस काम की? क्या करेगा मनुष्य? इसलिए आपको बहुत हल्का रहना है। पॉजि़टिव रहना है बच्चों के लिए। डांट-डपट का तो ज़माना है ही नहीं। वो अभी सरकार ने भी नियम बना दिए हैं।
तो कुछ चीज़ों को एक्सेप्ट करें, अपने को बहुत हल्का रखें और राजयोग की प्रैक्टिस से रोज़ सवेरे ही अपने को पीसफुल बनाकर आयें। और जो स्टूडेंट्स हैं उन सबको आत्मा देखें एक बार। क्योंकि ऐसे व्यक्ति जो हैं ना वो अपने कार्य में बड़े ऑनेस्ट और सिनसिअर होते हैं। तभी उन्हें क्रोध आता है कि ये क्या हो रहा है, हमारी मेहनत बेकार जा रही है। तो समय अनुसार अपने को ढालना भी पड़ेगा और राजयोग आपको ट्रेनिंग देगा, एक कंट्रोलिंग पॉवर देगा, अपने पर भी कंट्रोल करना और विद्यार्थियों पर भी कंट्रोल करना। और जब मनुष्य की अपनी मनोस्थिति श्रेष्ठ होती है तब अगर वो बच्चों को कहेगा कि एक घंटा मोबाइल बंद कर लो बच्चों, तुम्हें पढऩा है, तुम्हारा बहुत गुड टाइम है तो बच्चे स्वीकार करेंगे। और जब बच्चे देखते हों कि सर भी वही काम कर रहे हैं तो हम क्यों न करें! ऐसा होता है। इसलिए हमें अपने पर भी ध्यान देना है।

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