स्वच्छ दिल में ही बाप समा सकता

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विश्व का मालिक बनना है, विश्व को संभालना है तो बातें आयेंगी, लेकिन अभ्यास होगा तो आपको मदद बहुत मिलेगी। और बाबा ने कहा हुआ है कि कोई भी बात हो, उसी टाइम मेरे को दे दो।

जो भी गलतियां हमसे होती हैं, वह मन के संकल्पों द्वारा ही होती हैं। हम कर्मेन्द्रियों के राजा हैं तो मन के ऊपर भी हमारा राज्य होना चाहिए। मन मेरा मुख्य मंत्री है, मालिक नहीं है। हम आत्मा मालिक हैं, तो मंत्री के ऊपर ऑर्डर होना चाहिए। मन में कई ऐसी बातें होती हैं, उसे मन से निकाला नहीं है तो वही बातें बार-बार होने से वो व्यर्थ का रूप बन जाता है।
बाबा कम्बाइंड है, यही माया डाकू भुला करके अकेला कर देती है। फिर अन्दर ही अन्दर मन में बाबा को उल्हना देते रहेंगे। बाबा कहते बच्चे कम्बाइंड होकर रहो, फिर अधिकारी होकर रहो कि बाबा आपको मदद करना है, तो बाबा मदद ज़रूर करेंगे। यदि बाबा टाइम पर हाजि़र नहीं होता तो ज़रूर इसका कारण है कि हम श्रीमत पर सदा जी हाजि़र नहीं होते हैं। अभी प्रैक्टिस करो बाबा और मैं, और कोई संकल्प न चले। जैसे यहाँ अभी मन में और कोई भी कारोबार आदि के संकल्प नहीं हैं तो ट्रायल करो कि मैं फरिश्ते रूप में आत्मा हो सकती हूँ? यहाँ चांस अच्छा है क्योंकि वायुमण्डल अच्छा है, कोई संस्कार नहीं, कोई विघ्न नहीं है इसलिए इसका अभ्यास और अनुभव बहुत अच्छा, जल्दी और ज्य़ादा से ज्य़ादा कर सकते हैं। आगे चलकर जि़म्मेवारियां तो बढऩी ही हैं क्योंकि विश्व का मालिक बनना है, विश्व को सम्भालना है तो बातें आयेंगी, लेकिन अभ्यास होगा तो आपको मदद बहुत मिलेगी। और बाबा ने कहा हुआ है कि कोई भी बात हो, उसी टाइम मेरे को दे दो। ऐसी कोई बात आ गई तो उसी समय मेरा बाबा कह दो, तो मैं हाजि़र हो जाऊंगा। आपको जो नहीं सहन हो सकता, नहीं सम्भाल सकते तो मेरे को दे दो तो हल्के हो जायेंगे। जो चीज़ किसी को दी जाती है, तो वो अपनी नहीं होती है। दूसरे की हो गयी। अगर हम उसको यूज़ करना चाहते हैं तो अमानत में ख्यानत हो जाती है। एक बार दिल से बाबा को बात दे दी फिर भी कई बार वो बात आ जाती है। तो यह समझें कि पराई चीज़ को हम अपना क्यों मानें? उस समय आप छोटे बन जाओ।
मन खाली होगा तो सिर्फ बाबा याद आयेगा क्योंकि बाबा व्यर्थ के किचड़े में बैठ ही नहीं सकता, तो हम ऐसे ही नहीं समझें कि मेरे दिल में बाबा बैठा है या बाबा के दिल में हम हैं। बाबा दिल में समाया रहे उसके लिए स्वच्छता ज़रूर चाहिए। मन में और कोई संकल्प नहीं हो। सेवा का हो या स्व-उन्नति का हो, स्व उन्नति के स्वरूप में स्थित हो जायें। अगर स्वरूप में स्थित नहीं होते हैं तो भी वो मजा नहीं आता है। सिर्फ वर्णन होता है, जैसे वह मन्त्र होता है वैसे बाबा मैं आपकी हूँ, आप तो मेरे हो, बाबा आप सुखदाता, शान्तिदाता हैं… परन्तु इससे ताकत नहीं मिलेगी। ऐसे ज्ञानी भक्त नहीं बनना है। पहले मन खाली रखो, कोई भी बात हो उसे बाबा को दिया यानी अपना दिल दे दिया। कोई भी बात का लिंक जुटा हुआ होता है तो ऑटोमेटिकली वो याद आती रहेगी। तो बीच-बीच में 12-13 बारी समय निकाल बाबा का होमवर्क करने की आदती बन जायें।
बाबा को यूज़ करो, स्वराज्य अधिकारी प्वाइंट स्वरूप को समय पर यूज़ करो। मुरली में प्वाइंट सुनते समय तो बहुत अच्छा लगता है लेकिन प्वाइंट बनने में दिक्कत होती है। अष्ट शक्तियों का तो सब वर्णन करते लेकिन समय पर काम में आती हैं? हम मन जीत बने हैं, मन पर पूरा अधिकार है तब शक्तियां ऑर्डर मानेंगी।

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